Women Reservation Bill:- बुधवार को वूमेन रिजर्वेशन बिल पास कर दिया गया जिसके तहत महिलाओं के लिए विधानसभा और लोकसभा में 33% सीट को आरक्षित कर दिया गया है। इस नियम से इस बदलाव से दिल्ली विधानसभा की तस्वीर बदलने वाली है क्योंकि अब तक दिल्ली विधानसभा में 12% महिलाएं भी नहीं है। और इसका एक सबसे बड़ा कारण राजनीतिक पार्टियों द्वारा महिलाओं को स्वीकार न करना है लेकिन ऐसी उम्मीद है कि इस बदलते नियम से महिलाओं को उनके खोए हुए आत्मसम्मान और आरक्षण दोनों मिलेंगे।
दिल्ली नगर निगम में 50 प्रतिशत वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। कई सामान्य वार्ड से भी चुनाव जीतकर महिला निगम में पहुंचती हैं। बावजूद इसके विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पार्टियां इन्हें नजरअंदाज करती हैं। इस कानून के बनने से दिल्ली विधानसभा की तस्वीर भी बदल जाएगी, क्योंकि इससे महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा। अभी 12 प्रतिशत से भी कम महिला विधायक हैं। इसका कारण राजनीतिक पार्टियों द्वारा इनकी नेतृत्व क्षमता को नकारना है।
यह पुराने समय से है धरना चली आ रही है की महिलाओं के हाथों में बागडोर देने से बागडोर कमजोर हो जाएगी सालों से महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं कहीं ना कहीं इस नियम के लागू हो जाने से उन्हें काफी मजबूती मिलेगी। सालों से महिलाओं को राजनीति या अन्य किसी क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोका जाता रहा है यही कारण है कि नाम मात्र की महिलाएं विधानसभा में पहुंचती हैं। सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित यहां की मुख्यमंत्री रहीं, लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ। दीक्षित तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन कभी भी महिला विधायकों की संख्या 10 तक नहीं पहुंच सकी।सबसे अधिक वर्ष 1998 में नौ महिलाएं विधानसभा पहुंचने में सफल रही थीं। आरक्षण लागू होने के बाद यह स्थिति बदलेगी, क्योंकि 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 23 महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगे। इससे राजनीतिक पार्टियां इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकेंगी।
दिल्ली विधानसभा में इस समय आठ महिला विधायक हैं। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 672 उम्मीदवार थे जिनमें से 79 महिलाएं थीं। कांग्रेस ने सबसे अधिक 10 महिलाओं को मैदान में उतारा, लेकिन एक भी चुनाव नहीं जीत सकीं।
आम आदमी पार्टी ने नौ को मैदान में उतारा और आठ विधानसभा पहुंच गईं। भाजपा ने सबसे कम तीन महिलाओं को टिकट दिया था और सभी हार गईं।
दिल्ली नगर निगम की पूर्व महापौर और भाजपा नेता आरती मेहरा का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज का असर राजनीति पर भी है। सभी पार्टियों में पुरुषों का वर्चस्व है। स्थानीय निकाय में पहले 33 प्रतिशत और उसके बाद 50 प्रतिशत आरक्षण से स्थिति बदली है।
आरक्षण लागू होने पर शुरुआत में अधिकांश महिला पार्षदों के पति या कोई अन्य पुरुष सदस्य ही राजनीतिक जिम्मेदारी निभाते थे, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता स्थिति सुधरी है। महिला पार्षद अपनी भूमिका समझने लगी हैं।
राजनीतिक दलों में महिला नेतृत्व को महत्व मिलने लगा है। लोकसभा व विधानसभा में आरक्षण मिलने पर राजनीतिक तस्वीर बदलेगी। महिलाओं को अपने पति, पिता के सहारे राजनीति करने की जगह स्वयं सशक्त बनना पड़ेगा जिससे कि इस विधेयक का उद्देश्य पूरा हो सके।