2 माह की उम्र में आंखों की रोशनी खोने के बावजूद 80 ग्रंथ रच दिए, 22 भाषाओं के हैं ज्ञाता (Wikimedia)

 

तुलसीपीठ के संस्थापक

Zara Hat Ke

रामभद्राचार्य जी: 2 माह की उम्र में आंखों की रोशनी खोने के बावजूद 80 ग्रंथ रच दिए, 22 भाषाओं के ज्ञाता

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उदाहरण के साथ गवाही देने वाले रामभद्राचार्य तुलसीपीठ के संस्थापक हैं।

न्यूज़ग्राम डेस्क, Poornima Tyagi

हिंदू संत समाज में बहुत आदर के साथ लिया जाने वाला नाम रामभद्राचार्य (Rambhadracharya) जी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उदाहरण के साथ गवाही देने वाले रामभद्राचार्य तुलसीपीठ के संस्थापक हैं। जब वह श्री राम जन्मभूमि के पक्ष में एक वादी के रूप में सुप्रीम कोर्ट के सामने उपस्थित हुए तो उन्होंने ऋग्वेद के जैमिनीय संहिता से उदाहरण देना शुरू कर दिया उसमें उन्होंने सरयू नदी (Saryu River) के स्थान विशेष से दूसरी दिशा की दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा दिया और श्री राम जन्म भूमि की सही स्थिति बताई।

उनका यह उदाहरण सुनकर जब कोर्ट ने जैमिनीय संहिता मंगवाई और उसे खोलकर देखा तो जगदगुरु द्वारा दिए गए सभी उदाहरण और विवरण सही पाए गए। उन्होंने जिस स्थान पर श्री राम जन्म भूमि की स्थिति बताई थी विवादित स्थल भी उसी स्थान पर स्थित है। उसी वक्त जगतगुरु के इस वक्तव्य ने श्री राम जन्मभूमि मामले में आने वाले फैसले का रुख मोड़ दिया।

वहीं दूसरी ओर जज ने यह स्वीकार कर लिया कि उन्होंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा है। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास आंखों की रोशनी नहीं है वह कैसे इतने वेद और शास्त्रों के बिल्कुल सटीक उदाहरण दिए जा रहे हैं। अगर यह ईश्वर की दी हुई शक्ति नहीं है तो और क्या है? गौरतलब है कि जब जगद्गुरु मात्र दो माह के थे तब उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी और आज वह 22 भाषाओं के ज्ञाता होने के साथ 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। यह एक ऐसे संन्यासी हैं जिन्होंने परमात्मा को हराकर जगद्गुरु की उपाधि हासिल की है।

यह चित्रकूट (Chitrakoot) में रहा करते थे और इनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा (Girdhar Mishra) है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के जौनपुर (Jaunpur) जिले में हुआ। यह एक प्रख्यात शिक्षाविद, बहुभाषाविद, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक, विद्वान और हिंदू धर्म गुरु है।

रामभद्राचार्य जी

यह 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथो की रचना कर चुके हैं चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिंदी) में लिखे हैं।

यह बहुत आश्चर्यजनक है कि जगद्गुरु ना तो लिख सकते हैं और ना ही पढ़ सकते हैं और ना ही यह ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं।

यह केवल दूसरों को सुनकर सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं किसी और से लिखवाते हैं साल 2015 में भारत सरकार (Indian Government) ने इन्हें पद्मा विभूषण (Padma Vibhushan) से सम्मानित किया था।

PT

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