एक अमीर परिवार की महिला हर हफ़्ते चुपके से एक झुग्गी इलाके में जाती थी। उसके पति को शक हुआ कि कहीं उसका किसी से अफेयर तो नहीं चल रहा। सच जानने के लिए उन्होंने एक डिटेक्टिव एजेंसी से संपर्क किया। एजेंसी के मालिक ने बाद में एक इंटरव्यू में बताया कि यह मामला उनके एक क्लाइंट का है। क्लाइंट को शक था कि उसकी पत्नी हर हफ़्ते घर से बिना बताए कहीं जाती है और किसी और से उसका रिश्ता हो सकता है। जब एजेंसी ने जाँच शुरू की तो पता चला कि वह महिला हर हफ़्ते एक स्लम एरिया में जाती है। परिवार अमीर था, इसलिए यह बात और भी अजीब लगी। फिर पता चला की वह एक बाबा के पास जाती है।
आगे की जाँच के लिए एजेंसी ने एक महिला डिटेक्टिव को उस बाबा से मिलने भेजा, जिसके पास वह महिला जाती थी। यह डिटेक्टिव अपनी बनाई हुई पारिवारिक समस्याओं, जैसे सास और इन-लॉज़ से जुड़ी शिकायतें, बाबा को बताने लगी। बाबा ने शुरुआत में पूजा-पाठ जैसे उपाय कराने की सलाह कीं। दो-तीन बार मिलने के बाद बाबा ने डिटेक्टिव से पूछा कि उसे उनके पास आने का रेफरेंस किसने दिया। जब डिटेक्टिव ने उस महिला का नाम लिया तो बाबा ने बातों का रुख बदल दिया। उन्होंने “शुद्धि”, “आत्मसमर्पण” और “पवित्रता” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए समझाना शुरू किया कि आत्मसमर्पण का असली मतलब है, खुद को पूरी तरह से सौंप देना और समर्पित कर देना, जिसमें शारीरिक संबंध भी शामिल हैं। जब महिला डिटेक्टिव ने पूछा कि क्या वह महिला भी यह सब करती है, तो बाबा ने बेहिचक जवाब दिया, “हाँ, यह तो सबको करना पड़ता है।” यह घटना साफ़ दिखाती है कि कैसे आस्था और विश्वास का सहारा लेकर ऐसे बाबा लोगों का शोषण करते हैं।
यह एक अकेला मामला नहीं है जिसमें बाबा को भगवान बना दिया जाता है। 2013 में गुरु माने जाने वाले आसाराम बापू (Asaram Bapu) पर नाबालिग लड़की के बलात्कार का आरोप लगा। अदालत ने उन्हें दोषी मानते हुए उम्रकैद की सज़ा दी। यह मामला बताता है कि जब लोग बाबाओं को भगवान का रूप मानकर उन पर अंधविश्वास करते हैं, तो वही भरोसा उनके खिलाफ इस्तेमाल हो सकता है।
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim) का जीवन चमक-धमक और फिल्मी अंदाज़ से भरा था। उन्होंने अपनी प्रोड्यूस की हुई फिल्मों में एक्टिंग भी की है और “यू आर माय लव चार्जर” (You are my Love Charger) जैसे गानों पर नाच-गाना भी किया है। लेकिन उनके खिलाफ बलात्कार (Rape) और हत्या (Murder) जैसे गंभीर अपराध सामने आए। अदालत ने उन्हें दोषी ठहराकर उम्रकैद की सज़ा सुनाई। उनका केस इस बात का सबूत है कि बाबा संस्कृति और धर्म के नाम पर कैसे भयंकर अपराध छिपाए जाते हैं।
लोग बाबाओं को भगवान क्यों मानते हैं?
भारत (India) जैसे देश में धर्म और अध्यात्म लोगों की ज़िंदगी का गहरा हिस्सा है। जब लोग गरीबी (Poverty), बीमारी, रिश्तों की उलझनों या करियर की चिंता से परेशान होते हैं, तो वे किसी ऐसे सहारे की तलाश करते हैं जो उन्हें उम्मीद दे सके। बाबा निराशा और अकेलेपन की इसी खाली जगह पर अपनी पकड़ बनाते हैं। वे बड़े-बड़े वादे करते हैं, “हमसे आशीर्वाद लो, सब ठीक हो जाएगा। ये खाओ, ये पहनो, कृपा बरसनी शुरू हो जाएगी।”
उनका रहस्यमयी पहनावा, मीठी बातें और चमत्कारों की कहानियाँ आम आदमी को मोह लेती हैं। यही कारण है कि लोग उन्हें भगवान का रूप मानकर उनकी पूजा करने लगते हैं और उन पर इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी उन्हें बचाते हैं, उनके लिए लड़ते हैं और कहीं-न-कहीं अंधभक्त बन जाते हैं।
इसी विषय में हिंदी की किताब में एक अध्याय है, जिसमें लोगों को “रौशनी बेचने” के बारे में बताया जाता है कि कैसे दो दोस्त होते हैं, एक घरों में लगने वाली लाइट्स या रौशनी बेचता है, वहीं दूसरा बाबा बनकर ज़िंदगी की रौशनी बेचता है।
धर्म, पवित्रता और “चरन सेवा” के नाम पर शोषण
यहाँ सबसे खतरनाक पहलू यह है कि बाबाओं का असली हथियार “धर्म और पवित्रता” (Religion and Purity) का होता है। पुराने समय में इसे “चरन सेवा” (Charan Sewa) कहा जाता था, जैसा फिल्म महाराज (Maharaj) में दिखाया गया। उस दौर में भी बाबा भक्तों से सेवा के नाम पर निजी इच्छाएँ पूरी करवाते थे।
आज भी उन्हीं चीज़ों की नए शब्दों में रीब्रांडिंग कर दी गई है, “शुद्धता”, “मोक्ष” और “ईश्वर भक्ति।” भक्त अपनी आस्था में डूबकर सब कुछ त्याग देते हैं, और बाबा इस भरोसे का इस्तेमाल करते हैं। चाहे पैसा हो, सम्मान हो या शरीर, हर चीज़ धर्म और ईश्वर के नाम पर लूटी जाती है।
निष्कर्ष
ऐसे ढोंगी बाबा से लेकर आसाराम (Asaram) और राम रहीम (Ram Rahim) जैसे मामलों ने साफ कर दिया है कि बाबा संस्कृति केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि शोषण का ज़रिया बन चुकी है। लोग उम्मीद और सहारे की तलाश में बाबाओं के पास जाते हैं, लेकिन कई बार वही लोग उनका सबसे ज़्यादा फायदा उठाते हैं। अब ज़रूरत है आँखें खोलने की, धर्म को इंसानियत और सच्चाई से समझने की, न कि बाबाओं को भगवान बनाने की। अब समय है कि हम धर्म को समझें, न कि धर्म के ठेकेदारों को।
(Rh/BA)