आज के समय में गरबा और डांडिया (Garba and Dandiya) सिर्फ गुजरात (Gujarat) तक सीमित नहीं है। यह नृत्य अब भारत (India) के हर कोने में और यहां तक कि विदेशों में भी धूमधाम से खेले जाते हैं। हर साल नवरात्रि (Navratri) के नौ दिनों में जगह-जगह पंडाल सजते हैं, लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर ग्रुप बनाकर नृत्य करते हैं और देर रात तक उत्सव का माहौल बना रहता है। कॉलेजों से लेकर सोसाइटीज़, बड़े क्लबों से लेकर पांच सितारा होटलों तक हर जगह गरबा और डांडिया का आयोजन देखने को मिलता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह नृत्य क्यों खेले जाते हैं और इनका असली महत्व क्या है?
गरबा और डांडिया (Garba and Dandiya) में सबसे पहले बात करते हैं गरबा की। “गरबा” शब्द संस्कृत के गर्भ (Womb) से निकला है, जिसका अर्थ है गर्भ या जीवन। इसी से “गरबो” शब्द बना, जिसका मतलब है मिट्टी का घड़ा जिसमें अंदर दीया जलाया जाता है। नवरात्रि के दौरान यह दीया ईश्वर की अनंत शक्ति और देवी के प्रकाश का प्रतीक होता है।
जब लोग इस घड़े या दीपक के चारों ओर गोल घेरा बनाकर नृत्य करते हैं तो उसका अर्थ केवल नाचना-गाना नहीं होता। इस गोल घेरे का मतलब है जीवन का चक्र, जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म। यानी सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन बीच में रखा दीपक या देवी शक्ति हमेशा स्थायी रहती है। इसीलिए गरबा केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह नृत्य एक पूजा है, जिसमें ताली, कदम और ताल के माध्यम से देवी को समर्पित किया जाता है।
गरबा और डांडिया (Garba and Dandiya) में दूसरा नृत्य है डांडिया। इसे डांडिया रास भी कहा जाता है। इसमें लकड़ी की डंडियों का इस्तेमाल होता है और आज कल तो लोग रंग बिरंगी सजी हुई डंडियों का इस्तेमाल करते है। उन डंडीयो को देवी दुर्गा की तलवार का प्रतीक माना जाता है। जब लोग डंडियों को आपस में टकराते हैं तो यह मां दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुए युद्ध की याद दिलाता है। यह केवल खेल नहीं, बल्कि अच्छाई और बुराई की लड़ाई का भी प्रतिक है।
परंपरा के अनुसार, गरबा आमतौर पर आरती से पहले खेला जाता है, जबकि डांडिया आरती के बाद। इसका मतलब है पहले शांति और भक्ति का माहौल, फिर जोश और उत्सव का आनंद।
गरबा और डांडिया भले ही अपने तरीके से अलग हो, लेकिन दोनों का मकसद एक ही है, देवी की शक्ति को सम्मान देना।
गरबा जीवन चक्र और स्त्री शक्ति का प्रतीक है, जबकि डांडिया मां की तलवार और उनके बुराई के ऊपर विजय (Good vs Evil) का प्रतीक है। इस उत्सव के लिए अलग अलग जगह और कल्चर्स के लोग एक जगह इकट्ठे होते है और गरबा और डांडिया खेलते है। यह त्यौहार बताता है कि भक्ति और उत्सव सबको जोड़ने की ताकत रखते हैं।
समय के साथ गरबा और डांडिया (Garba and Dandiya) ने आधुनिक रूप भी ले लिया है। पहले जहां केवल ढोल और पारंपरिक गीतों पर नाच होता था, वहीं अब बॉलीवुड (Bollywood) गाने और रिमिक्स बीट्स (Remix Beats) भी शामिल हो चुके हैं। पहले सिर्फ पारंपरिक घाघरा-चोली और कढ़ाईदार कपड़े पहने जाते थे, अब डिज़ाइनर आउटफिट्स (Designer Outfits) और नए फैशन ट्रेंड्स भी दिखते हैं। गरबा और डांडिया अब सिर्फ नृत्य नहीं बल्कि आज की युवा पीढ़ी के लिए एक ट्रेंड बन चुका है।
गुजरात (Gujarat) या मंदिरों तक सीमित रहने के बजाय अब बड़े स्टेडियम (Stadium), क्लब (Clubs), होटल (Hotel) और सोसाइटीज़ (Societies) में इसके विशाल कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह नृत्य अब केवल धार्मिक परंपरा नहीं रहे। विदेशों में बसे भारतीय भी बड़े पैमाने पर गरबा और डांडिया (Garba and Dandiya) का आयोजन करते हैं और अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। (Rh/BA)