Gopashtami:- 2023 में गोपाष्टमी 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। Picasa [Wikimedia Commons]
धर्म

आज गोपाष्टमी के अवसर पर जाने क्या हैं इसका महत्व

गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्वास्थ्य वर्धक कहा गया है। पौराणिक कथाओं में यह व्याख्या है कि किस तरह से भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं में गौ माता की सेवा की है

Sarita Prasad

2023 में गोपाष्टमी 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर पड़ता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार यह दिन भगवान श्री कृष्णा तथा गौ पूजन के लिए समर्पित है। गोपाष्टमी (Gopashtami) के इस पवित्र पर्व पर गायों और बछड़ों को सजाने तथा गोवर्धन, गाय और बछड़े तथा गोपाल की पूजा का विधान है। तो चलिए गोपाष्टमी के अवसर पर हम आपको इस पर्व के महत्व के बारे में बताते हैं।

गोपाष्टमी का महत्त्व

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन गायों को भोजन खिलाता है, उनकी सेवा करता है, तथा शाम में गायों का पंचोपचार विधि से पूजन करता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। आज के दिन श्यामा गाय को भोजन करने की बहुत अधिक मान्यता है। हिंदू मान्यताओं में गाय को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है गाय को गौ माता भी कहा जाता है, अर्थात गाय को मां का दर्जा दिया गया है।

आज के दिन श्यामा गाय को भोजन करने की बहुत अधिक मान्यता है।

जिस प्रकार एक मां अपने संतान को हर सुख देना चाहती है उसी प्रकार गौ माता भी सेवा करने वाले जातकों को अपने कोमल हृदय में स्थान देती है और उनकी हर मनोकामना पूर्ण करती है। ऐसी मान्यता है कि गोपाष्टमी के दिन गौ सेवा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी कोई संकट नहीं आता। गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्वास्थ्य वर्धक कहा गया है। पौराणिक कथाओं में यह व्याख्या है कि किस तरह से भगवान कृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं में गौ माता की सेवा की है अतः यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि हम गौ माता की ऋणी है, और हमें उनका सम्मान और सेवा करना चाहिए।

क्या है गोपाष्टमी की कथा

गोपाष्टमी पर्व की कथा के अनुसार बालकृष्ण ने माता यशोदा से इस दिन गाय चराने की जिद की थी। यशोदा मैया ने कृष्ण के पिता नंद बाबा से इसके अनुमति मांगी। नंद महाराज मुहूर्त के लिए एक ब्राह्मण से मिले ब्राह्मण ने कहा कि गाय चराने की शुरुआत करने के लिए यह दिन अच्छा और शुभ है।

गाय माता का दूध, घी, दही, छाछ और यहां तक कि उनका मूत्र भी स्वास्थ्य वर्धक कहा गया है।

इसलिए अष्टमी पर कृष्णा ग्वाला बन गए और उन्हें गोविंद के नाम से लोग पुकारने लगे। माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैया यदि मेरी गाय जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो। भगवान जब तक वृंदावन में रहे, भगवान ने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे आगे गाय और पीछे-पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल गोपाल इस प्रकार के विहार करते हुए भगवान ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौचरण लीला का आरंभ हुआ और वह शुभ तिथि गोपाष्टमी कहलाई।

8 नवंबर का इतिहास: बड़ी बड़ी घटनाओं से लेकर लालकृष्ण आडवाणी के जन्मदिन तक जानें क्या है ख़ास!

Bihar Assembly Election 2025 LIVE: पहले चरण की वोटिंग खत्म; 64.66% मतदान दर्ज किया गया, जो राज्य के इतिहास में सबसे ज्यादा है।

क्या है वो द्विराष्ट्र सिद्धांत जिसने भारत और पाकिस्तान को अलग किया ?

1100 किलोमीटर ऑपरेशनल मेट्रो नेटवर्क के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मेट्रो नेटवर्क: मनोहर लाल

नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस: ईडी की चार्जशीट पर फैसला सुरक्षित, 29 नवंबर को अगली सुनवाई