Harsiddhi Mandir History : देशभर में हरसिद्धि देवी के कई प्रसिद्ध मंदिर है लेकिन वाराणसी और उज्जैन में स्थित हरसिद्धि मंदिर सबसे प्राचीन है। उज्जैन की हरसिद्धि मंदिर की चारदीवारी के अंदर 4 प्रवेशद्वार हैं। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है। यहां श्रीयंत्र बना हुआ स्थान है। इसी स्थान के पीछे भगवती अन्नपूर्णा की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व द्वार पर एक तालाब है जिसे रुद्रासागर भी कहते हैं। रुद्रसागर तालाब के सुरम्य तट पर चारों ओर मजबूत प्रस्तर दीवारों के बीच यह सुंदर मंदिर बना हुआ है। प्रतिवर्ष नवरात्र के दिनों में 5 दिन तक यहां पर दीप मालाएं लगाई जाती हैं। मंदिर के पीछे अगस्तेश्वर का प्राचीन सिद्ध स्थान है जो महाकालेश्वर के भक्त हैं। मंदिर का सिंहस्थ 2004 के समय पुनः जीर्णोद्धार किया गया है। आइए जानते है इस मंदिर का दिलचस्प इतिहास।
यह मंदिर उज्जैन में महाकाल क्षेत्र का प्राचीन मंदिर है। इसमें देवी वैष्णवी हैं तथा यहां पूजा में बलि नहीं चढ़ाई जाती। परमारवंशीय राजाओं की भी ये कुलदेवी है।
यह स्थान सम्राट विक्रमादित्य की तपोभूमि के रूप में माना जाता है। मंदिर के पीछे एक कोने में कुछ 'सिर' सिन्दूर चढ़े हुए रखे हैं। ये 'विक्रमादित्य के सिर' बतलाए जाते हैं। महान सम्राट विक्रम ने देवी को प्रसन्न करने के लिए 12वें वर्ष में अपने हाथों से अपने मस्तक की बलि दे दी थी। उन्होंने ऐसा 11 बार किया लेकिन हर बार सिर वापस आ जाता था। 12वीं बार जब सिर नहीं आया तो समझा गया कि उनका शासन संपूर्ण हो गया। हालांकि उन्होंने 135 वर्ष शासन किया था।
उज्जैन की रक्षा के लिए आस-पास देवियों का पहरा है, उनमें से एक हरसिद्धि देवी भी हैं। कहते हैं कि यह मंदिर वहां स्थित है जहां सती के शरीर का अंश अर्थात हाथ की कोहनी आकर गिर गई थी। अतः इस स्थल को भी शक्तिपीठ के अंतर्गत माना जाता है। इस देवी मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है।
उज्जैन में दो शक्तिपीठ माने गए हैं पहला हरसिद्धि माता और दूसरा गढ़कालिका माता का शक्तिपीठ। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे। शक्तिपीठ होने के कारण इस मंदिर का महत्व बढ़ जाता है।इस मंदिर और देवी का पुराणों में उल्लेख मिलता है। नवरात्रि में यहां उत्सव का महौल रहता है। यहां श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ पूजा होती है।