Jabalpur - जबलपुर को मध्यप्रदेश की न्यायिक राजधानी भी कहा जाता है। थलसेना की छावनी के अलावा यहाँ भारतीय आयुध निर्माणियों के कारखाने तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। पुराणों और किंवदंतियों के अनुसार इस शहर का नाम पहले जाबालिपुरम् था, क्योंकि इसका सम्बंध महर्षि जाबालि से जोड़ा जाता है। यहां की लम्हेटाघाट का धार्मिक तथा पौराणिक महत्व तो है ही साथ ही यहां ऐसे पत्थर पाए जाते हैं जिनमें रचनात्मक गुण मौजूद हैं।
देवताओं के राजा इंद्र ने स्वयं अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान किया था। मान्यता है कि लम्हेटाघाट के समीप स्थित गया कुंड से ही पिंडदान की शुरुआत हुई थी। आज भी यहां हजारों श्रद्धालु पिंड दान करने के लिए पहुंचते हैं। नर्मदा किनारे स्थित इंद्र गया में प्रकृति ने भी इतना सौंदर्य उड़ेला है कि लोग उसके आकर्षण में बंधे रह जाते हैं।
देवराज इंद्र ने अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने एवं मोक्ष के लिए नर्मदा के लम्हेटाघाट स्थित गयाजी कुण्ड में किया था। जिसका प्रमाण गयाजी कुण्ड के पास देवराज इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी के पद चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं। पुराणों के अनुसार पृथ्वी के प्रथम राजा मनु ने भी यहां पर अपने पितरों का श्राद्ध किया था । पौराणिक महत्ता के अनुसार नर्मदा को श्राद्ध की जाननकी कहा जाता है।
लोगों ने बताया कि इंद्र गया कुंड की गहराई आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है।कहते हैं लम्हेटाघाट मध्य प्रदेश के सबसे पुराने घाटों में से एक है, जहां पर कई महापुरुषों ने तपस्या की है। जिनमें से महर्षि जवाली भी एक हैं जिनके नाम पर जबलपुर को अपना नाम मिला, जहां पर मां नर्मदा की गहराई सबसे ज्यादा है।
लम्हेटाघाट में महादेव शिव का प्राचीन मंदिर कुम्भेश्वर तीर्थ भी मौजूद है। मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, लक्ष्मण व हनुमान ने ब्रह्म हत्या व शिव दोष से मुक्ति के लिए 24 वर्ष तक तपस्या व उपासना की थी। इसके प्रमाण स्वरूप यहां एक कुम्भेश्वर तीर्थ मंदिर है।