Summary
सांता क्लॉज का मूल रूप तीसरी शताब्दी के दयालु संत निकोलस से जुड़ा है।
बच्चों को गिफ्ट देने और मोज़े टांगने की परंपरा तीन गरीब बहनों की मदद वाली कहानी से निकली।
25 दिसंबर को सांता की लोकप्रियता धर्म, लोककथा और आधुनिक बाज़ार संस्कृति के मेल से बनी।
"हो हो हो, मेरी क्रिसमस" ये आवाज जब आप सुनेंगे तो आपके दिमाग में एक छवि बनेगी। सफेद दाढ़ी-लाल ड्रेस और हाथ में गिफ्ट्स का थैला। एक बूढ़ा इंसान रात को आपके घर में चुपके से घुसता है, लेकिन वो चोरी करने नहीं, बल्कि आपको गिफ्ट देने आता है। बच्चे उन्हें प्यार से सांता क्लॉज (Santa Claus) कहते हैं।
कल 25 दिसंबर 2025 का दिन था यानी क्रिसमस डे, जो ईसाई समुदाय के लोगों का त्यौहार है। इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था, इसलिए लोग इस दिन को क्रिसमस डे के रूप में मनाते हैं लेकिन इस दिन सांता क्लॉज (Santa Claus) का भी काफी जिक्र होता है कि वो बच्चों को गिफ्ट्स देते हैं।
हालांकि, क्या आपने कभी ये सोचा है कि आखिर ये सांता क्लॉज (Santa Claus) थे कौन? क्रिसमस डे का उनसे क्या लेना देना है और ये बच्चों के बीच इतने लोकप्रिय क्यों हो गए? ऐसे में आज इसकी पड़ताल करते हैं?
सांता क्लॉज (Santa Claus) का जन्म कब हुआ था, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी तो नहीं है लेकिन कई मीडिया रिपोर्ट्स में 15 मार्च 270 ईस्वी बताया गया है। उनका असली नाम संत निकोलस बताया जाता है। यही संत निकोलस आगे चलकर सांता क्लॉज कैसे बने?
इसकी कहानी भी हम आगे समझेंगे। कहा जाता है कि उनका जन्म पतारा नामक शहर में हुआ था, जो उस समय एशिया माइनर का हिस्सा था। आज ये तुर्की के दक्षिणी तट पर स्थित है। उनका जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था।
कहा जाता है कि माता-पिता काफी धनी थे लेकिन जब निकोलस युवा थे। वो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। लंबे समय तक उनके माता-पिता, थियोफेन्स और नोना निःसंतान रहे थे। दोनों ने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि उन्हें एक पुत्र मिले। जब निकोलस का जन्म हुआ, तो उनके माता-पिता ने तुरंत उन्हें ईश्वर को समर्पित कर दिया।
जब उनके माता-पिता की मृत्यु हुई, तब निकोलस ने यीशु की शिक्षाओं का पालन करते हुए अपनी पूरी विरासत गरीबों, बीमारों और जरूरतमंदों की मदद में लगा दी। इसके साथ ही उन्होंने युवावस्था में ही फिलिस्तीन और मिस्र की यात्रा की। जब वो लीसिया लौटे, तो मायरा जो आज तुर्की में है, वहां के बिशप (ईसाई चर्चों में एक उच्च पादरी का स्थान) बन गए।
एक सवाल जो सबके मन में आता है कि आखिर संत निकोलस सांता क्लॉज (Santa Claus) कैसे बन गए? अब इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। इनके नाम का भी अपना एक सफर है। शुरुआत उनकी संत निकोलस के तौर पर हुई थी लेकिन डच भाषा में लोग उन्हें संत निकोलस की जगह सिंटर क्लास (Sinterklaas), कहने लगे।
यही डच लोग जब अमेरिका पहुंचे, तो सिंटर क्लास (Sinterklaas) नाम बदल गया और लोग उन्हें सांता क्लॉस (Santa Claus) कहने लगे। मतलब “सांता क्लॉज” कोई नया व्यक्ति नहीं है बल्कि ये संत निकोलस के नाम का भाषाई रूपांतरण है।
संत निकोलस उर्फ़ सांता क्लॉस (Santa Claus) बच्चों को गिफ्ट देने के लिए काफी मशहूर हैं। अब इसके पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि निकोलस काफी दयालु स्वाभाव के थे। उस दौर में हर लड़की के पिता को अपने होने वाले दामाद को दहेज़ देना पड़ता था। दहेज़ अगर ज्यादा होता था, तो लड़की को एक अच्छा पति मिलने की संभावना बढ़ जाती थी। उस दौर में बिना दहेज के शादी होना असंभव था।
इसी दौरान निकोलस ने एक ऐसे गरीब परिवार के बारे में सुना जिनकी तीन बेटियां थी लेकिन दहेज के लिए पैसे नहीं थे। अब अगर दहेज़ के लिए पैसे ना हो, तो बेटियों को माता-पिता बेच देते थे, या उन्हें वेश्यावृत्ति की ओर धकेल देते थे। ऐसे में निकोलस ने यह फैसला किया कि वो इस परिवार की मदद करेंगे लेकिन वो अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते थे।
ऐसे में उन्होंने रात के अंधेरे में सोने से भरी एक बड़ी थैली को खिड़की से घर के अंदर फेंक दिया। जब उन्होंने वो थैली फेंकी, तो उस समय आग के पास सूखने के लिए मोज़े रखे थे, वो उसी में गिरी। अगली सुबह जब पिता ने सोने के सिक्के से भरी थैली देखी, तो वो काफी खुश हुए और अपनी पहली बेटी की शादी करवा दी।
इसके बाद निकोलस ने दूसरी बेटी के लिए भी ऐसा ही कदम उठाया और जब तीसरी बेटी के लिए मदद करने का प्रयास किया, तो वो पकड़े गए। बेटी के पिता जाग रहे थे। ऐसे में निकोलस ने यह आग्रह किया कि वो इसके बारे में किसी को ना बताएं। इस कहानी के बाद से ही क्रिसमस पर बच्चों द्वारा मोजे टांगने की परंपरा आगे बढ़ी।
संत निकोलस उर्फ़ सांता क्लॉस (Santa Claus) को लेकर एक और चीज काफी चर्चा में रहती है और वो है उनका लिबास। उनके कपड़े लाल और सफ़ेद रंग के होते हैं। सिर पर एक लंबी टोपी होती है और हाथ में स्टाफ़। कहा जाता है कि उनका ये पहनावा धार्मिक पद का प्रतिक था। उनके लिबास को लोकप्रिय बनाने में 19वीं और 20वीं सदी की चित्रकला, कविताओं और विज्ञापनों की बड़ी भूमिका रही।
खासतौर पर 1930 के दशक में कोका-कोला के एड यानी विज्ञापनों ने सांता की छवि को एक स्थायी रूप दिया जहाँ उन्हें मोटा, हँसमुख, लाल कोट में, सफ़ेद दाढ़ी वाला दिखाया गया और तब से लेकर अब तक उनका रूप इसी तरह दिखाया जाता है।
संत निकोलस उर्फ़ सांता क्लॉस (Santa Claus) के मृत्यु की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा कहा जाता है कि उनकी मृत्यु 6 दिसंबर 343 ई. के आसपास हुई थी। उनकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई। खासकर यूरोप में 6 दिसंबर को 'संत निकोलस डे' के रूप में मनाया जाता है। मृत्यु के बाद उन्हें संत नाम से नवाजा गया था।
हालांकि, एक सवाल यह भी उठता है कि 25 दिसंबर क्रिसमस का दिन है और संत निकोलस का इससे सीधा संबंध नहीं है। फिर इस दिन को उनसे क्यों जोड़ा जाता है, जबकि उनका ना तो कोई जन्मदिन होता है और मृत्यु भी 6 दिसंबर के आसपास मानी जाती है?
तो इसका जवाब ये है कि इसके तार बच्चों को गिफ्ट देने से जुड़े हैं। यही कारण है कि उनकी छवि क्रिसमस की खुशी और तोहफ़ों के साथ जुड़ गई। अमेरिका और यूरोप में यह परंपरा इतनी मज़बूत हो गई कि सांता क्लॉज क्रिसमस का चेहरा बन गए। ऐसे में यह कह सकते हैं कि धर्म, लोककथा और बाज़ार, तीनों ने मिलकर इसे 25 दिसंबर से जोड़ दिया।
संत निकोलस उर्फ़ सांता क्लॉस (Santa Claus) का जीवन विवादों में घिरा था, ऐसा बताया जाता है। एक कहानी के मुताबिक नाइसिया की सभा (Council of Nicaea) में उन्होंने एक अन्य धर्मगुरु एरियस को थप्पड़ मार दिया था, क्योंकि एरियस यीशु मसीह की दिव्यता से इंकार कर रहा था लेकिन इस घटना का कोई प्रमाण नहीं है, तो इसकी पुष्टि करना कठिन है।
बताया जाता है कि निकोलस का जीवन सादगी, सेवा और साहस से भरा था। धनी होने के बावजूद उन्होंने इंसानियत को चुना। वे किसी मंच से भाषण नहीं देते थे, बल्कि अंधेरे में मदद करके चले जाते थे। उनकी हंसी आज उपहार और उत्सव का प्रतीक बन चुकी है। तो ऐसे में कह सकते हैं कि सांता क्लॉज एक काल्पनिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्ति की कहानी है।
(RH/ MK)