भारत में कुछ ऐसे मंदिर हैं जहाँ महिलाओं के प्रवेश पर रोक धार्मिक परंपराओं, पौराणिक मान्यताओं और ब्रह्मचर्य से जुड़ी आस्थाओं के कारण लगाई गई है।
पद्मनाभस्वामी, शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर जैसे कुछ मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह नहीं, बल्कि सीमित या विशेष नियमों के साथ होता है।
सबरीमाला और बाबा बालक नाथ मंदिर जैसे मामलों में यह मुद्दा आस्था बनाम समानता की बहस का केंद्र बन चुका है।
भारत को आस्था की धरती कहा जाता है। यहाँ हर गली-कूचे में कोई न कोई मंदिर जरूर मिलता है, जहाँ लोग श्रद्धा के साथ माथा टेकते हैं। आमतौर पर मंदिरों को सभी के लिए समान रूप से खुला माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ महिलाओं का प्रवेश वर्जित है (Temples where women are not allowed)? यह बात सुनकर कई लोगों को आश्चर्य होता है और कई के मन में सवाल भी उठते हैं।
इन मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर रोक किसी एक कारण से नहीं है। कहीं इसे धार्मिक परंपरा से जोड़ा गया है, तो कहीं पौराणिक कथाओं और मान्यताओं को इसका आधार बताया जाता है। कुछ मंदिरों में कहा जाता है कि वहाँ विराजमान देवता ब्रह्मचारी हैं, इसलिए महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। वहीं कुछ स्थानों पर सदियों पुरानी सामाजिक परंपराएँ आज भी निभाई जा रही हैं। हाल के वर्षों में इन मंदिरों को लेकर विवाद भी सामने आए हैं। कई लोग इसे आस्था का विषय मानते हैं, जबकि कई इसे महिलाओं के अधिकारों और समानता से जोड़कर देखते हैं। अदालतों तक यह मुद्दा पहुँच चुका है और समाज में इस पर खुलकर चर्चा हो रही है। तो आज हम आपको भारत के कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में बताएंगे जहां पर महिलाओं का जाना बिल्कुल वर्जित है।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम (Thiruvananthapuram) में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर (Padmanabhaswamy Temple) भारत के सबसे प्राचीन और सबसे अमीर मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जहाँ वे अनंत शेषनाग पर योगनिद्रा की मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए थे, इसलिए यह मंदिर विशेष धार्मिक महत्व रखता है।
इस मंदिर को लेकर एक आम भ्रम यह है कि यहाँ महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है, जबकि ऐसा नहीं है। महिलाएँ मंदिर में दर्शन और पूजा कर सकती हैं, लेकिन गर्भगृह यानी मुख्य कक्ष में प्रवेश की अनुमति नहीं है। यह नियम भगवान की पवित्रता और मंदिर की परंपराओं को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
मध्य प्रदेश के गुना ज़िले में स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र एक प्राचीन और श्रद्धा से भरा जैन मंदिर (Shri Shantinath Digambar Jain) है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 1236 ईस्वी में किया गया था। मंदिर लाल पत्थरों से बनी सुंदर जैन तीर्थंकर प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। इसके मुख्य देवता भगवान शांतिनाथ हैं, जो जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर माने जाते हैं।
इस मंदिर से जुड़ी परंपराएँ दिगंबर जैन मान्यताओं पर आधारित हैं, जहाँ सादगी, संयम और तप को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि मंदिर में प्रवेश के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। यहाँ महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित नहीं है, लेकिन यदि कोई महिला वेस्टर्न कपड़े पहनकर या मेकअप करके आती है, तो उसे मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाती।
राजस्थान के पवित्र नगर पुष्कर में स्थित कार्तिकेय मंदिर (Kartikey Temple) भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को लंबी चढ़ाई करनी पड़ती है। मान्यता है कि यहाँ भगवान कार्तिकेय की ब्रह्मचारी रूप में पूजा की जाती है।
स्थानीय परंपराओं के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया और आजीवन तप व ब्रह्मचर्य का पालन किया। इसी कारण इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित माना जाता है। यह मान्यता सदियों पुरानी है और कहा जाता है कि यदि कोई महिला यहाँ दर्शन करती है, तो भगवान कार्तिकेय अप्रसन्न हो सकते हैं। इसी विश्वास के चलते महिलाएँ स्वयं ही इस मंदिर में प्रवेश नहीं करतीं।
केरल के पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में स्थित सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) भगवान अयप्पा को समर्पित एक अत्यंत प्रसिद्ध और कठिन तीर्थ स्थल है। यह मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं और कठोर नियमों के लिए जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान अयप्पा नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं और उन्होंने आजीवन तपस्या का मार्ग अपनाया। इसी कारण यहाँ 10 से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना गया, क्योंकि यह आयु मासिक धर्म से जुड़ी मानी जाती है। हालांकि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी, लेकिन आज भी स्थानीय आस्था, विरोध और परंपराओं के कारण यह मुद्दा विवादित बना हुआ है। सबरीमाला आज भी आस्था, परंपरा और अधिकारों की बहस का केंद्र है।
छत्तीसगढ़ के बालौदाबाजार ज़िले में स्थित माता मावली मंदिर (Mata Mavali Temple) एक अत्यंत प्राचीन और आस्था से जुड़ा हुआ शक्तिपीठ माना जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 400 साल पुराना है और यहाँ मां आदि शक्ति के उग्र स्वरूप की पूजा की जाती है। इस मंदिर की ख्याति सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि देश और विदेशों तक फैली हुई है। इस मंदिर से जुड़ी सबसे विशेष और चर्चित मान्यता यह है कि यहाँ महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। स्थानीय विश्वास के अनुसार, माता मावली स्वयं एक कठोर तपस्विनी और उग्र शक्ति स्वरूप में विराजमान हैं। मान्यता है कि मंदिर परिसर में महिलाओं का प्रवेश माता की तपस्या में बाधा डाल सकता है। इसी कारण यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में स्थित बाबा बालक नाथ मंदिर (Baba Balak Nath Temple) एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ माना जाता है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में बना है और बाबा बालक नाथ को नैष्ठिक ब्रह्मचारी योगी के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि बाबा ने बाल्यावस्था में ही तपस्या का मार्ग अपनाया और जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन किया। इसी मान्यता के कारण पहले इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। माना जाता है कि बाबा की तपस्या और ब्रह्मचर्य की परंपरा को बनाए रखने के लिए यह नियम जरूरी है। हालाँकि आज भी आस्था और परंपरा के चलते अधिकांश महिलाएँ गुफा के बाहर बने चबूतरे से ही दर्शन करती हैं। नवरात्र और चैत्र मास में यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। यह मंदिर आस्था, परंपरा और श्रद्धा का अनोखा उदाहरण है, जहाँ नियम से अधिक विश्वास को महत्व दिया जाता है।[R/h]