न्यूज़ग्राम हिंदी: सनातन धर्म में सभी जीव जंतुओं का समान रूप से सम्मान किया जाता है। विशेषकर गौ माता सदा से ही हिंदुओं के लिए पूजनीय हैं। गौ माता की सेवा और उनको भोजन कराना सबसे बड़ी सेवा मानी गई है। इनकी रक्षा के लिए कितने ही वीर पुरुष आज ही के दिन फांसी पर चढ़ गए। आइए जानते हैं पूरी कहानी
यह बात देवभूमि उत्तराखंड के हरिद्वार की है। साल 1918 में हरिद्वार के गांव कटारपुर में कुछ लोगों ने बकरीद के दिन सार्वजनिक गौहत्या करने की घोषणा की। आज से पहले हरिद्वार की भूमि पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। इसलिए हिंदुओं ने इस बात की शिकायत पास के ज्वालापुर थाने में करी। हालांकि यह सब कारनामा थाने के इंस्पेक्टर और अंग्रेजी शासन के दिशा निर्देश पर ही हो रहा था इसलिए इस पर कोई कारवाही नहीं हुई। कहीं से मदद ना मिलने पर हिंदुओं ने यह मामला अपने हाथ में लिया। यह ऐलान किया कि चाहे कुछ भी हो वे हरिद्वार की इस भूमि पर गौ हत्या नहीं होने देंगे। 17 सितंबर के दिन बकरीद पर तो ऐसा कुछ नहीं हुआ हालांकि 18 सितंबर को गौ हत्यारों ने कुछ गायों का जुलूस निकाला और सार्वजनिक रूप से उनकी हत्या करने के लिए उन्हें इमली के पेड़ से बांध दिया।
एक ओर गौ हत्या के नारे लग रहे थे तो वहीं दूसरी ओर हनुमान मंदिर के महंत रामपुरी महाराज के साथ कई वीर हिंदू गौ माता की रक्षा के लिए अपनी जान दांव पर लगाने के लिए तैयार थे। बजरंग बली का नारा लगाते हुए वीरों ने हमला किया और कुछ गौ हत्यारों को वहीं मार दिया। इस लड़ाई में दोनों पक्षों के लोग घायल हुए । गौभक्त रामपुरी महाराज के शरीर पर चाकू से कई घाव किए गए थे जिसके कारण वे बच ना सकें।
गौरक्षा के लिए बलिदान पर्व(Wikimedia Commons)
पुलिस प्रशासन तक जैसे ही यह ख़बर पहुंची तो उन्होंने हिंदुओं की धर पकड़ शुरू कर दी। करीब एक सौ बहत्तर लोगों को जेल में बंद किया। कई हिंदुओं के घर में घुसकर उन्हें पीटा गया। गुरुकुल महाविद्यालय के भी कुछ छात्रों को जेल में बंद किया गया। इस पूरी घटना की जानकारी गुरुकुल महाविद्यालय के आचार्य ने महात्मा गांधी को दी हालांकि उन्होंने इस पर कुछ नहीं बोला। मदनमोहन मालवीय जी जो की गौभक्त भी थे उन्होंने इस मामले में अपना पूरा सहयोग किया।
8 अगस्त 1919 को 4 भक्तों को फांसी की सज़ा सुनाई गई और एक सौ पैतालीस लोगों को काले पानी की सज़ा के लिए अंडमान के जेल भेजा गया। इस घटना के बाद कई लोगों ने गांव छोड़ दिया। अगले आठ सालों तक कटारपुर और आसपास के कई गांवों में कोई फसल नहीं उगी।
8 फरवरी 1920 को 4 गौभक्तों को वाराणसी के जेल में फांसी दी गई। उस दिन प्रयागराज में पूरे दिन हड़ताल रखा गया। इन वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल से गौरक्षा बलिदान पर्व मनाया जाने लगा।
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