Shree Stambheshwar Mahadev Temple: ऐसा मंदिर, जहां भगवान शिव पूरे दिन में केवल दो बार ही दर्शन देने के लिए आते हैं और पूरा मंदिर फिर जलमग्न हो जाता है। (Wikimedia Commons)
Shree Stambheshwar Mahadev Temple: ऐसा मंदिर, जहां भगवान शिव पूरे दिन में केवल दो बार ही दर्शन देने के लिए आते हैं और पूरा मंदिर फिर जलमग्न हो जाता है। (Wikimedia Commons) 
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इस मंदिर में केवल दो बार ही दर्शन देते हैं भगवान शिव, इसके बाद गायब हो जाता है ये मंदिर

न्यूज़ग्राम डेस्क

Shree Stambheshwar Mahadev Temple: भगवान शिव का स्थान देवों में सबसे ऊपर माना जाता है। जो लोग जीवन-मरण की चक्र से निकलकर मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, वे भगवान शिव की शरण में आते हैं, और शिव की पूजा करने के लिए कई मंदिर जाते है। ऐसे तो पूरे भारत में शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंग है लेकिन इसके अलावा भी भगवान शिव का ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव पूरे दिन में केवल दो बार ही दर्शन देने के लिए आते हैं और पूरा मंदिर फिर जलमग्न हो जाता है। ये जगह के बारे में सुन कर ही इतना आकर्षित लगता है यही कारण है कि यहां शिवभक्त अपने आराध्य के दर्शन करने के लिए चले आते है।

ये मंदिर कहाँ स्थित है?

शिव के इस मंदिर का नाम स्तम्भेश्वर महादेव मंदिर हैं और यह गुजरात की राजधानी गांधीनगर से लगभग 175 किमी दूर जंबूसर के कवि कंबोई गांव में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए गांधीनगर से ड्राइव करके करीब 4 घंटे का समय लगता है। यह मंदिर 150 साल पुराना है, जो अरब सागर और खंभात की खाड़ी से घिरा हुआ है। यदि आप इस मंदिर की महिमा देखना चाहते है,आपको यहां सुबह से लेकर रात तक रुकना पड़ेगा।

6 घंटे तक शिवलिंग समुद्र के पानी में रहता है, और 6 घंटे वह पानी से बाहर भक्तों को दर्शन देते है। (Wikimedia Commons)

जल अभिषेक करने आते है समुद्र देवता

इस मंदिर की खास बात यह है कि स्तंभेश्वर महादेव का शिवलिंग दिन में दो बार समुद्र में समा जाता है। कहा जाता है की समुद्र देवता दो बार शिवलिंग का अभिषेक करने आते हैं। इसी कारण 6 घंटे तक शिवलिंग समुद्र के पानी में रहता है, और 6 घंटे वह पानी से बाहर भक्तों को दर्शन देते है।

प्रायश्चित के लिए कार्तिकेय ने बनवाया यह मंदिर

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कार्तिकेय स्वामी ने वर्षों पहले इसी स्थान पर असुर तारकासुर का वध किया था। कहा जाता है की कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को उसके पाप कर्मों से मुक्ति दिला दी। लेकिन जब भगवान कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर भगवान शिव का परम भक्त था, तो अपने हाथों एक शिवभक्त की हत्या होने का उन्हें बहुत ही दुख हुआ इसके बाद प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने यहां एक शिवलिंग की स्थापना की और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यहां वर्षों तक तपस्या की।

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