पाकिस्तान द्वारा जबरन कब जाए गए बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में सुरमई पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है माता हिंगलाज का मंदिर जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। बलूचिस्तान ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से लोग यहां माता के दर्शन करने आते हैं मुसलमान इन्हें नानी मां पीर कहते हैं तो चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े कुछ रहस्यमय बातें।
माता का मंदिर प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है हिंगलाज की वह जगह है जहां माता का सर गिरा था। ऐसी कहानी प्रसिद्ध है कि यहां माता सती कोटरी रूप में कैद थीं जबकि भगवान शंकर भी लोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित थे बृहिणिल तंत्र अनुसार यहां सत्य का ब्रह्म ग्रंथ गिरा था। देवी की शक्ति पीठ में कामाख्या कांची त्रिपुरा हिंगलाज प्रमुख शक्तिपीठ है हिंगुला का अर्थ है सिंदूर।
इस मंदिर की माता को संपूर्ण पाकिस्तान में नानी मां का मंदिर कहा जाता है यहां की यात्रा को नानी का हाई भी कहा जाता है। मुसलमान हिंगला देवी को नई तथा वहां की यात्रा को नानी की हज कहते हैं हिंदू से ज्यादा मुस्लिम माता को मानते हैं पूरे बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना एवं पूजा करते हैं साथ ही मुस्लिम स्त्रियां जो स्थान का दर्शन कर लेते हैं उन्हें हजियानी कहते हैं उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है मुसलमान के लिए यह नानी पीर का स्थान है।
माता हिंगलाज का मंदिर एक गुफा मंदिर है यानी ऊंची पहाड़ियों पर बनी एक गुफा में माता का विग्रह रूप विराजमान है पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर जिसका कोई दरवाजा नहीं है। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर से निकलते हैं सती मंदिर के साथ गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मानता है की माता हिंगलाज देवी यहां सुभाष स्नान करने आती हैं माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्री गणेश कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और त्रिकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ है हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढ़ियां कड़नी पड़ती है मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का ही स्वरूप लगती है।