लंकापति रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि वह शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे और उनके गुण सभी देवताओं से कहीं ज्यादा थे। लंकापति रावण को लोग अनीति अनाचार स्तंभ काम क्रोध लोभ धर्म बुराई न जाने किन-किन चीजों का प्रतीक मानते हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दशानन रावण में कितने ही रक्षसत्व हो लेकिन उनके गुण को अनदेखा नहीं किया जा सकता तो चलिए आज हम लंका पति रावण के जन्म की कथा और उनके गुण को जानते हैं।
रावण में अवगुण की अपेक्षा गुण ज्यादा थे। रावण एक प्रकांड विद्वान था वेद शास्त्रों पर उसकी अच्छी पड़ती और वह भगवान भोले शंकर का अनन्य भक्त था। उसे तंत्र मंत्र सीढ़ियां तथा कई गुण विद्वानों का ज्ञान था। ज्योतिष विद्या में भी उसे महारत हासिल थे। रावण के पास कई चमत्कारी व रहस्य आत्मक शक्तियां थी जिसका यदि वह सही तरीके से इस्तेमाल किया होता तो आज वह घृणा का पात्र नहीं बनता आज उसे लोग नफरत की भावना से देखकर उसके पुतले को विजयदशमी में नहीं जलाते बल्कि उसे सम्मान मिलता।
रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथ में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य पद्म पुराण कथा श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण के रूप में पैदा हुआ। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पल सत्य मुनि का पोता था अर्थात उनके पुत्र विश्वश्रवण का पुत्र था। विश्वश्र्व की वरवरिणी और कैकई नामक दो पत्नियों थी। वरवरिण के कुबेर को जन्म देने पर सउदिया दहा वर्ष के किसी ने अशुभ समय में गर्भधारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ में रावण तथा कुंभकरण जैसा क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए। तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म श्राप के कारण हुआ है। वेनारद एवं प्रताप भानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं।
रावण को दशानन कहते हैं उनका नाम दशानन उसके दासग्रिव नाम पर पड़ा। कहते हैं कि माहातपस्वी रावण ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर एक-एक कर अपने 10 सर अर्जित किए थे। उसे कठोर तपस्या के बल पर ही उसे 10 सर प्राप्त हुए जिन्हें लंका युद्ध में भगवान राम ने अपने बाणों से एक-एक कर काटा था।
यदि रावण ने कठोर तपस्या से अर्जित अपने उन 10 सिरों की बुद्धि का सार्थक और सही इस्तेमाल किया होता तो शायद इतिहास में अपनी प्रखंड विद्वंता के लिए अमर हो जाता और लोग उससे घृणा नहीं करते बल्कि उसकी पूजा करते।