लड़ाई है या फिर धर्म :- इजराइल में जहां जुडैसम यानी यहूदी धर्म था वहीं ईरान में जोरास्ट्रियम यानी पारसी धर्म[Pixabay] 
धर्म

यहूदियों और पारसियों के बीच अस्तित्व की लड़ाई है या फिर धर्म की?

इन दोनों धर्म में जहां आपसी जुड़ाव था वही कुछ बातों को लेकर मतभेद भी बहुत अधिक था और फिर क्या धीरे-धीरे जब यह मतभेद बढ़ाते गया तो दोनों धर्म के बीच नफरत की भावना भी पनपना लगे

न्यूज़ग्राम डेस्क, Sarita Prasad

आप सब जानते होंगे कि हमास और इजरायल के बीच जंग छिड़ चुकी है इस जंग छिड़ने के बाद कई लोगों की मौत की खबरें भी आ रही है इसी पर एक सवाल उठ रहे है कि इन दोनों देशों के बीच की लड़ाई अस्तित्व की लड़ाई है या फिर धर्म की? ऐसा कहा जाता है कि इस्लाम की उत्पत्ति के पहले से ही ईरान की इजराइल से दुश्मनी चली आ रही है। प्राचीन काल में इजराइल में जहां जुडैसम यानी यहूदी धर्म था वहीं ईरान में जोरास्ट्रियम यानी पारसी धर्म। अब दुनिया में यह दो बड़े धर्म थे और तीसरा धर्म उनके बीच पैंगन धर्म था। इन दोनों धर्म में जहां आपसी जुड़ाव था वही कुछ बातों को लेकर मतभेद भी बहुत अधिक था और फिर क्या धीरे-धीरे जब यह मतभेद बढ़ाते गया तो दोनों धर्म के बीच नफरत की भावना भी पनपना लगे तो चलिए आज हम आपको इन दोनों धर्म से मिलवाते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि ईरान और इजरायल के बीच युद्ध के कारण क्या है?

पारसी धर्म

आज पारसियों के पास अपना खुद का कोई देश नहीं है लेकिन एक वक्त था जब यहूदियों के पास भी खुद का अपना कोई देश नहीं था दोनों ही धर्म के अनुयाई उनकी ही भूमि से खदेड़ दिए गए थे। मुश्किलों के बाद यहूदियों ने अपनी भूमि इसराइल पुनः हासिल कर ली। पर पारसी अभी भी अपनी भूमि से बेदखल है कहते हैं कि एक ऐसा दौर था जबकि दोनों ही पश्चिम और मध्य एशिया में अपनी ताकत रखते थे। हालांकि पारसी धर्म की उत्पत्ति ईरान में हुई थी। इस धर्म के संस्थापक जरथुस्त्र थे। यह धर्म करीबन 3500 वर्ष पुराना है हालांकि पारसियों के वंश परंपरा जरथुस्त्र से बी पुरानी है। इस धर्म के लोग इकेश्वरवादी हैं और अपने ईश्वर को आहूरा माजदा कहते हैं। हालांकि अन्य देवी और देवताएं भी हैं इस धर्म में। पारसी लोगों का उद्देश्य है दूसरों के प्रति अच्छे कर्मों द्वारा ईश्वर की सेवा करना। देवी गुण को प्राप्त करना और विकसित करना विशेष रूप से सकारात्मक मस्तिष्क और धार्मिकता बनाए रखकर ईश्वर के साथ सामंजस्य स्थापित करना और अपने भीतर ईश्वर के मार्गदर्शन की आवाज को सुनना।

यह धर्म करीबन 3500 वर्ष पुराना है हालांकि पारसियों के वंश परंपरा जरथुस्त्र से बी पुरानी है।[Pixabay]

जरथुस्त्र के करोड़ों अनुयाई रूस से लेकर सिंधु नदी तक फैले थे। पारसियों ने तीन महाद्वीपों और दो राष्ट्रीययों पर लंबे समय तक शासन किया। पारसी लोग कहीं अन्य देश और कबीलो से लड़ रहे थे। काव्यान वश में जल, रुस्तम आदि वीर हुए जो तुर्रानी से लड़कर फिरदौस के शाहनामे में अपना यश अमर कर गए। सातवीं सदी में खलीफाओं के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति होने के बाद यहां पर अन्य धर्म स्थापित हो गया। अधिकतर पारसी इस्लाम में कन्वर्ट हो गए और जो नहीं होने चाहते थे वह अपना देश छोड़कर भारत में बस गए।

यहूदी धर्म

यहूदी धर्म की उत्पत्ति लेवंत यानी शाम में हुई थी। जबकि उस वक्त जेरूसलम इस क्षेत्र में होता था यही उत्पत्ति का मुख्य स्थान है। हजरत मूसा यहूदी जाति के प्रमुख व्यवस्था कर थे। इस धर्म के लोग इकेश्वरवादी लोग हैं और अपने ईश्वर को यहोवा कहते हैं। यह शब्द ईसाइयों और यहूदियों के धर्म ग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है। इनका उद्देश्य है जीवन जैव मनाने के लिए। ईश्वर के आदेश और उनके साथ किए वादे को पूरा करने के लिए अच्छे काम करें ईश्वर से प्रेम करें और समाज को सुधारने का कार्य करें। मूसा ने इसराइल में इसराइलियों को ईश्वर द्वारा मिले 10 आदेश दिए जो आज भी यहूदी धर्म के प्रमुख सैद्धांतिक है।

यहूदी धर्म की उत्पत्ति लेवंत यानी शाम में हुई थी। जबकि उस वक्त जेरूसलम इस क्षेत्र में होता था यही उत्पत्ति का मुख्य स्थान है।[Pixabay]

यहूदी के कल से लेकर सम्राट सोलमैन तक यहूदी साम्राज्य का विस्तार होता रहा। जिसमें साउंड इशबाल डेविड और सुलेमान जैसे प्रसिद्ध राजा हुए। सुलेमान के बाद इस राज्य का पतन होने लगा और संयुक्त इसराइल दो हिस्सों में बढ़कर इसराइल और जुड़ा के बीच में बट गया। करीब 700 ईसा पूर्व में साम्राज्य ने जेरूसलम पर हमला करके यहूदियों के 10 कबीलो को तीतर भीतर कर दिया था। और यहां पर अपना शासन स्थापित कर दिया। इसके बाद 72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य के हमले के बाद यहूदी शक्ति कमजोर होने लगी और रोमन का इस क्षेत्र पर अधिकार हो गया रोमन के हमले में पवित्र मंदिर टूट गया इतिहास में इस घटना को एक्सोडस कहा जाता है। ईसा मसीह को सूली पर लटकाने के बाद यहूदी का सबसे बुरा दौर शुरू हुआ और फिर वह कभी एक देश के रूप में नहीं रह सके बाद में यह संपूर्ण क्षेत्र अरब के फिलिस्तीन मुसलमान के कब्जे में चला गया 1948 में इसके दो हिस्से हुए जिसमें से पूरा इजराइल का निर्माण हुआ। और तब से लेकर अब तक इनके बीच इन दोनों धर्म के बीच लड़ाई जा रही है। तो यह लड़ाई अपने अस्तित्व की लड़ाई और अपने धर्म की लड़ाई दोनों की लड़ाई है।

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