Culture

Sanatan Dharma History तकनीकियों से भरा पड़ा है

Prashant Singh

न्यूज़ग्राम हिंदी: Sanatan Dharma History से अनजान वामपंथी (Leftist) आजकल मुग़ल और अंग्रेजों का महिमामंडन करके गाते फिर रहे हैं कि मुस्लिमों से पहले भारत में 'सुई' तक नहीं बनती थी। उन्होंने शायद Sanatan Dharma तो छोड़ो, हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सभ्यता के नगर योजना तक के बारे में कभी नहीं पढ़ा। वो इतिहास के पन्नों में नव-पाषाढ़ और ताम्र-पाषाढ़ कालीन औजार नहीं देख पाए। उन्होंने Mahabharat और Ramayana की नगर व्यवस्था और तकनीकि को नहीं पढ़ा जो मुस्लिम शासन के आगमन से कई हज़ारों साल पहले अस्तित्व में था। खैर, उनकी क्या ही बात की जाए, जिन्होंने Ram-Setu तक को नकार दिया, Ram-Mandir के अस्तित्व को काल्पनिक घोषित कर दिया। ऐसे मूर्खों से क्या ही आपेक्षा की जाए कि वो Sanatan Dharma के ग्रंथों को कभी विवेक की दृष्टि से भी पढे़ंगे।

शेक्सपियर के ड्रामा को देखकर, 'व्हाट अ मैग्निफिसिएंट वर्क ऑफ़ आर्ट' कहने वाले वामपंथियों को अपने ही देश में लिखे गए कालिदास के नाटक मेघदूत में नॉनसेंस नज़र आता है। कुछ साल पहले ही आया विकिपीडिया, तोपों के बारे में कहता है कि भारत में सबसे पहले तोप का प्रयोग बाबर ने किया था जबकि Valmiki Ramayana के बालकाण्ड के पांचवें सर्ग में इसका सबसे पहले उल्लेख मिलता है जहाँ नगर व्यवस्था के संदर्भ में बात करते हुए कहा गया है, 'उच्चाद्राल्थ्वजवर्ती शतप्नीशतसंकुलाम्‌।' अर्थात् उसमें बड़ी-बड़ी ऊँची अटारियों वाले माकन, जो ध्वज पताकाओं से शोभित थे, बने हुए थे, और परकोटे की दीवारों पर सैकड़ों तोपें चढ़ी हुई थीं।

इतना ही नहीं आजकल जिस Women Club के बारे में कहा जाता है कि ये पश्चिम का तोहफा है, उन्हें ये बता दिया जाए कि वाल्मीकि जी की रामायण के पांचवे सर्ग में ही यह उल्लेख मिलता है कि अयोध्या में स्त्रियों की नाट्य समितियाँ थीं। 'वधूनाटकसंघैश्च संयुक्तां सर्वतः पुरीम्।' 

किसी विशेष विषय पर ही अपना घूँघट उठाने वाले Liberal अक्सर हिन्दुओं के साथ हुए किसी भी त्रासदी पर मौन हो, अपने मुंह पर पर्दा डाल देते हैं। राम के विषय पर उन्हें अन्यायी कहने वाले यदि Sanatan History पढ़ नहीं सकते तो कम से कम वो ये विडियो ही देख लें जिससे उनके मस्तिष्क से कूड़ा कुछ हद तक तो साफ़ हो सके।

यदि आप एक बार अपने ऐतिहासिक पुस्तकों को जैसे अर्थशास्त्र, रामायण, महाभारत, उपनिषद्, इत्यादि को उठाकर पढ़ें, तो उनसे पता चलेगा कि जिन सिद्धांतों पर ये आज उछल-उछल कर कहते हैं कि ये पश्चिम से आया है, वो वास्तविकता में सदियों पहले सनातन धर्म के इतिहास में अंकित है। उदाहरण के लिए यदि Bodhayna को पढ़ें तो Pythagoras Theorem का सिद्धांत प्राप्त हो जाएगा, अगस्त्य संहिता को पढ़ा जाए तो उल्लेख मिलेगा कि कैसे बैटरी का निर्माण किया जा सकता है।
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌। छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:। संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अर्थात् एक मिट्टी का बर्तन लें, उसमें अच्छी प्रकार से साफ किया गया ताम्रपत्र और शिखिग्रीवा (मोर के गर्दन जैसा पदार्थ अर्थात् कॉपरसल्फेट) डालें। फिर उस बर्तन को लकड़ी के गीले बुरादे से भर दें। उसके बाद लकड़ी के गीले बुरादे के ऊपर पारा से आच्छादित दस्त लोष्ट (Mercury-Amalgamated Zinc sheet) रखे। इस प्रकार दोनों के संयोग से अर्थात् तारों के द्वारा जोड़ने पर मित्रावरुणशक्ति की उत्पत्ति होगी।

डार्विन थ्योरी के द्वारा जिन्हें अब पता चला है कि मानवों का विकास कैसे हुआ, वो यदि दशावतार पर प्रकाश डालें तो समझ जाएँगे कि इसके बारे में हम बहुत पहले से जानते थे, पर नालंदा तक्षशीला विश्वविद्यलयों के तबाही के साथ हमारा इतिहास काल के गर्त में समा गया। और जो कुछ बचा भी, तो उन पुस्तकों को या तो चुरा लिया गया या फिर गंवा दिया गया। और इसके बाद भी यदि कुछ बचा तो उसे काल्पनिक करार देते हुए लाल कपड़े में बाँध कर रख दिया गया।

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