Mohammed Shami: अमरोहा के बेटे मोहम्मद शमी को राष्ट्रपति ने अर्जुन पुरस्कार दिया है। क्रिकेट के इस अर्जुन को मुरादाबाद की पिच पर तराशा गया है। शमी खुद भी इसका श्रेय उनके बचपन के कोच बदरुद्दीन को देते हैं। यहां दो साल तक किए गए अभ्यास ने ही उनको आज इस मुकाम तक पहुंचाया है।
लगातार कोशिश के बाद यूपी की टीम के ट्रायल में जब वह सफल नहीं हुए तब कोच ने उन्हें बंगाल जाने की सलाह दी थी। आज भी शमी जब किसी मुश्किल में होते हैं तो कोच बदरुद्दीन सिद्दीकी को याद करते हैं।
शमी कुछ कर दिखाने के लिए आतुर थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। बदरुद्दीन ने फोन पर उन्हें बताया था कि वनडे या टी-20 में जो गीली गेंद तुम्हारी परेशानी का कारण है, उसी से अभ्यास करो।
इसके बाद शमी ने गीली गेंद से अभ्यास शुरू किया। इससे उनकी ग्रिप मजबूत हो गई और धीरे-धीरे स्विंग भी मिलने लगा। इस अभ्यास का असर आईपीएल में देखने को मिला और शमी ने दोबारा वनडे टीम में जगह बना ली।
कोच बदरुद्दीन सिद्दीकी बताते हैं कि 15 साल की उम्र में शमी को उनके बड़े भाई हसीब क्रिकेट सिखाने उनके पास लाए थे। जब शमी पहली बार अपने कोच से मिले तो उन्होंने शमी से आधे घंटे गेंदबाजी कराई।शमी ने पहली गेंद जिस गति व जोश के साथ फेंकी आखिरी बॉल तक वह बना रहा। तब कोच उनका जुनून देख कर कहा कि आपका भाई अच्छा गेंदबाज बनेगा। शमी 15 साल की उम्र में रोजाना 25 किमी दूर से मुरादाबाद के सोनकपुर स्टेडियम में अभ्यास करने आते थे।
दो साल अभ्यास के दौरान शमी ने अंडर-19 टीम के ट्रायल दिए लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद कोच बदरुद्दीन ने उन्हें बंगाल भेज दिया। गांव की जिस पिच पर शमी खेलते थे बेशक आज वह वीरान पड़ी है लेकिन गांव के युवाओं के लिए वह प्रेरणा का स्त्रोत है। 90 के दशक में शमी के पिता तौसीफ अहमद ने गांव सहसपुर अलीनगर में क्रिकेट का ट्रेंड शुरू किया था। एक इंटरव्यू में शमी ने बताया कि उनके पिता अपने कुछ साथियों के संग गांव में आम के बगीचे के पास वाले मैदान में क्रिकेट खेलते थे।