बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में इस बार जनता ने ऐसा उत्साह दिखाया कि पूरे देश का ध्यान बिहार की ओर खिंच गया। 6 नवम्बर, गुरुवार को मतदान (Voting) हुए, जिसमें 18 जिलों की 121 सीटों पर कुल 64.69% वोटिंग दर्ज की गई, जो पिछली बार से करीब 8.5% ज़्यादा है। आपको बता दें, बिहार के चुनावी इतिहास में यह अब तक की सबसे ज़्यादा वोटिंग मानी जा रही है।
राजनीतिक (Politics) विश्लेषकों का कहना है कि यह वोटिंग (Voting) रुझान सत्ता परिवर्तन का संकेत भी हो सकता है, क्योंकि बिहार में जब-जब 5% से ज़्यादा वोटिंग बढ़ी है, तब-तब सरकार बदली (Change) है। इस बार 8% का इज़ाफ़ा हुआ है, यानी सियासी (Politics) पारा चरम पर है। आपको बता दें, पहले चरण में बिहार के मतदाताओं ने मतदान को जन आंदोलन बना दिया। 2020 में पहले फेज़ में 56.1% वोटिंग हुई थी, लेकिन इस बार यह बढ़कर 64.69% हो गई है। इस बार कुल 3.75 करोड़ वोटरों में से 2.43 करोड़ से अधिक लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। दिलचस्प बात यह है कि 1951 से अब तक बिहार के किसी विधानसभा चुनाव में इतना अधिक मतदान कभी नहीं हुआ।
आपको बता दें, मुज़फ़्फ़रपुर और समस्तीपुर में वोटिंग सबसे ज़्यादा हुई है, मुज़फ़्फ़रपुर में 70.96% और समस्तीपुर में 70.63%। वहीं पटना में सबसे कम 57.9% वोटिंग दर्ज हुई है। उसके बाद मधेपुरा, वैशाली, सहरसा और खगड़िया में भी 65% से ज़्यादा मतदान हुआ। कुल मिलाकर आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में मतदान का उत्साह शहरों से कहीं ज़्यादा रहा है।
इतिहास गवाह है, बिहार में जब-जब वोट बढ़ा है, तब-तब सत्ता बदली है। बिहार के चुनावी इतिहास पर नज़र डालें तो यह ट्रेंड बार-बार दोहराया गया है। आपको बता दें, 1967 में वोटिंग 7% बढ़ी और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। उसके बाद 1980 में 6.8% वोटिंग (Voting) बढ़ी और जनता पार्टी हार गई, और उस बार कांग्रेस लौटी। फिर 1990 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था 5.8% वोटिंग बढ़ी और कांग्रेस पार्टी फिर से हार गई, जबकि जनता दल की सरकार आ गई। यानी बिहार में जब-जब 5% से ज़्यादा वोटिंग बढ़ी है, तब-तब सत्ता का समीकरण पलट गया है। और इस बार तो यह बढ़ोतरी 8.5% हुई है। यह नीतीश कुमार सरकार के लिए सबसे बड़ा इम्तिहान भी बन सकती है।
पहले चरण की 121 सीटों पर इस बार कुल 1314 उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। इन सीटों पर 2020 के चुनाव में महागठबंधन को 61 सीटें और एनडीए को 59 सीटें मिली थीं, यानी दोनों के बीच बस दो सीटों का फासला था। आपको बता दें, इस बार भी मुकाबला कांटे का है, लेकिन इस बार के समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं।
2020 में अलग लड़ने वाले चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा अब एनडीए में हैं, जबकि मुकेश सहनी इस बार महागठबंधन के साथ हैं। पहले चरण में आरजेडी 72 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, कांग्रेस 24 सीटों पर और माले 14 सीटों पर। वहीं बीजेपी 48 सीटों पर, जेडीयू 57 सीटों पर और एलजेपी (रामविलास) 13 सीटों पर मैदान में है। एआईएमआईएम 8 सीटों और जन सुराज पार्टी 114 सीटों पर चुनाव लड़कर अपनी किस्मत आज़मा रही है। कई जगहों पर दोस्ताना टक्कर यानी ‘फ्रेंडली फाइट’ भी देखने को मिल रही है, जिससे नतीजे और दिलचस्प हो सकते हैं।
पिछले चार चुनावों में जब भी वोटिंग (Voting) बढ़ी है, हर बार उसका फायदा नीतीश कुमार (Nitish Government) को ही हुआ है, लेकिन वह बढ़ोतरी केवल 2-3% की थी। इस बार बढ़ोतरी 8.5% हुई है। यह या तो जनता का जबरदस्त समर्थन है या सरकार के खिलाफ़ खामोश गुस्सा। आपको बता दें, राजनीतिक (Politics) जानकारों का मानना है कि अगर बढ़ी हुई वोटिंग ‘एंटी-इंकम्बेंसी वेव’ है, तो इस बार सत्ता परिवर्तन (Change) तय है।
निष्कर्ष
बिहार में इस बार की वोटिंग ने सारे समीकरण उलट दिए हैं। इतिहास गवाह है कि बिहार में जब जनता ने बड़ी संख्या में वोट डाले हैं, तब सरकार गिरी है। 1967 से अब तक तीन बार ऐसा हुआ है, और हर बार वोटिंग 5% से ज़्यादा बढ़ी है। आपको बता दें, अबकी बार यह आंकड़ा 8% पार कर चुका है, यानी संकेत साफ़ हैं जनता ने बदलाव की घंटी बजा दी है।
अब सवाल यह है कि क्या यह नीतीश कुमार (Nitish Government) के लिए जन समर्थन का संकेत है, या फिर जनता चुपचाप नई सरकार की तैयारी कर चुकी है? अब सबकी नज़रें 11 नवंबर के दूसरे चरण की वोटिंग और 14 नवम्बर के नतीजों पर टिकी हैं, क्योंकि यह तय है कि बिहार की सियासी कहानी अब नए अध्याय की दहलीज़ पर है। [Rh/PS]