भारत में अंधविश्वास का काला साया आज भी हमारे समाज पर गहरा छाया हुआ है। कई बार लोग अन्य लोगों के जीवन, स्वास्थ्य और फैसलों को अशुभ मान कर निर्णय ले लेते हैं, कभी नज़र दोष, कभी विशेष तारीखें, और कभी ‘मोक्ष’ (Moksha) के अंधे विश्वास की आड़ में कई ऐसे फैसले ले लिए जातें है जो काफी घातक हैं। पारिवारिक कलह, डर, मानसिक अस्थिरता, ये सभी तत्व मिलकर जीवन को त्रासदी में बदल देते हैं। दिल्ली की एक शांत बुराड़ी कॉलोनी में भी ऐसा ही हुआ, जहाँ एक ही घर में पूरे परिवार की 11 मौतें हुईं। कुछ लोगों ने इसे 'मोक्ष प्राप्ति' का तरीका बताया, लेकिन पुलिस जांच और पुलिस के सामने आई डायरी की रहस्यमयी पंक्तियों ने इस घटना को सिर्फ़ एक अंधविश्वास तक सीमित नहीं रहने दिया।
घटना का विवरण: यह क्या सच में था?
जुलाई 2018 की ओस भरी सुबह बुराड़ी के चुंदावत परिवार के घर पर पुलिस पहुंची तो सामने था एक हादसा जो बुजुर्गियों की कसक छोड़ने वाला था। 11 शव, जिनमें से दस लकड़ी की छत से लटके हुए पाए गए और एक वृद्ध महिला एक अलग कमरे में मृत अवस्था में पड़ी थी।
सभी की आंखें कपड़े से ढकी हुई थीं, मुँह पर कपड़ा टेप था, और हाथ पीछे बाँधे गए थे। पूरी घटना ने पुलिस को पहले हत्या का संदेह दिलाया, लेकिन जब 11 डायरीज़ मिलीं, जिनमें आत्महत्या-निर्देश, तंत्र-मंत्र की बात और 'मोक्ष प्राप्ति' की बातें लिखी थीं, तब कहानी पूरी तरह बदल गई। पुलिस ने इस घटना को "mass suicide under occult influence" यानी अंधविश्वास प्रेरित सामूहिक आत्महत्या माना।
क्यों किया इतने लोगों ने सुसाइड?
परिवार के एक सदस्य, ललित चुंदावत, ने दावा किया कि उनके दिवंगत पिता की आत्मा उनसे संवाद कर रही थी और मोक्ष की राह सुझाती थी। इसके चलते परिवार ने “आध्यात्मिक कृति” की यात्रालिका शुरू की।
साझा मानसिक रोग ‘Shared Psychosis’ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि परिवार में यह folie en famille था, जिसमें एक व्यक्ति की मानसिक स्थिति पूरी फैमिली में फैल जाती है और सब विश्वास में खो जाते हैं।
मास-रिस्क और गलत सूचनाएं: डायरीज़ में यह भी लिखा था कि ख़त्म होने वाले समय में आसमान हिल जाएगा, धरती कांपेगी और पिता का आत्मा परिवार को मुक्ति दिलाएगा। ये सब धार्मिक विश्वासों की हदें पार कर गया था।
अंधविश्वास से जुड़ी अन्य घटनाएँ: एक व्यापक समस्या
ऐसी घटनाएं भारत में केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ‘witch hunt’ और दुखद 'mass suicides' के लगातार मामले बढ़ते नज़र आ रहें हैं। झारखंड में अकेले 2000 से 2021 के बीच 3,000 से अधिक कथित 'witch-hunting' की घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जहाँ महिलाएं घर की सुख शांति या अन्य किसी काम के सही से होने के लिए जली, पीटे गए या ही मार डाली गईं।
हाल ही में हरियाणा-उत्तराखंड इलाकों में धार्मिक समारोह और काले जादू के डर से मौतें हुईं हैं। कभी जहर पी कर, कभी आत्महत्याएं जैसे मामले लगातार देखने को मिलते हैं। भारत के कई कोनो में अंधविश्वास के कारण बलि देने जैसी परंपराएं आज भी जीवित हैं। ये घटनाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि सामाजिक और धार्मिक अंधविश्वास एक पूल बने हैं, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और कानून की समझ कमजोर पड़ जाती है।
पुलिस जांच से सामने आई कई बातें
दिल्ली पुलिस ने शुरुआत में हत्या का केस दर्ज किया था, लेकिन जैसे-जैसे डायरी, परिवार के व्यवहार और मानसिक ट्रेल की जांच बढ़ी, मामला mass suicide की ओर झुका। पुलिस ने साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी (Psychological Autopsy) समिति बनाई, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और पुलिस अधिकारी सभी मिले हुए थें।
जांच में यह सामने आया कि परिवार रोज एक साथ पूजा करता, हवन करता, और 'चिट्ठियाँ' लिखता, जिसे पंचांग और तंत्रग्रंथ समझ लिया गया। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, मोबाइल, खाद्य बिल, खरीदारी रिकॉर्ड, डायरी एंट्रियों और पड़ोसियों के गवाह बयान एकत्रित किए। अंततः परिवार को 'self-induced ritual death' माना गया, जिसमें ललित को मुख्य प्रेरक बताया गया था।
यह कहानी न केवल दिल्ली की चुंदावत फैमिली की है, बल्कि पूरे भारत के उस संस्कृति और शिक्षा के संकट की है जिसमें अंधविश्वास एक गहरी चोट बनकर लगातार समाज को खा रहा है। जब परिवार कर्मचारी आत्महत्या को मोक्ष समझ बैठे, तो यह सिर्फ एक गृहप्रसंग नहीं, बल्कि एक चेतावनी थी, कि कब तक हम अज्ञानता और अंधश्रद्धा से लड़ेंगे? सच यह है कि मोक्ष के साथ मौत का अनुशासन नहीं पाया जाता, बल्कि मानवता, न्याय और सोच की जागरूकता से ही समाज को संरक्षित किया जा सकता है। [Rh/SP]