“यह रिहाई कुछ ऐसी लगती है मानो एक कैद से छूटकर दूसरे कैद में आ गया” मिर्ज़ा निसार हुसैन (Mirza Nisar Hussain) की इस मनोदशा की अपनी एक अलग कहानी है। कल्पना करिए यदि 23 साल आपको किसी ऐसे जुर्म की सजा सुनाई जाए जो आपने कभी की ही नहीं तो आपकी मनोदशा कैसी होगी? कुछ ऐसे ही मनोदशा कश्मीर (Kashmir) के रहने वाले मिर्ज़ा निसार हुसैन की हो गई जब वे वापस 23 साल एक ऐसे जुर्म की सजा काटकर लौटे जो उन्होंने कभी किया ही नहीं। दरअसल मिर्ज़ा निसार हुसैन (Mirza Nisar Hussain) और उनके भाई को 1996 के बम विस्फोट के मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था और 2019 में राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा उन्हें रिहा किया गया। इस घटना से कई सवाल उठाते हैं जैसे इन कश्मीरीयों के साथ ऐसा बर्ताव क्यों? इस घटना से हमारे देश के संविधान और न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाते हैं।
मिर्जा निसार हुसैन (Mirza Nisar Hussain) महज़ 16 साल के थे, और अपने खानदानी कालीन के कारोबार के सिलसिले में कुछ मजदूरों को लेकर नेपाल गए थे। मिर्जा को नेपाल में किसी कारोबारी से पैसे लेने थे लेकिन किसी कारणवश कारोबारी ने दो दिन की मोहलत मांगी और इन्हीं दो दिनों में मिर्जा की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। 23 जुलाई 1996 को पुलिस ने मिर्जा निसार हुसैन को गिरफ्तार कर लिया और दिल्ली ले गए। दिल्ली में मिर्जा की मुलाकात उसके भाई मिर्ज़ा इफ्तिखार हुसैन से हुई और तब उन्हें पता चला कि उन्हें दिल्ली लाजपत नगर में हुए बम धमाकों के केस में गिरफ्तार किया गया है। दरअसल साल 1996 में दिल्ली के लाजपत नगर मार्केट के भीड़-भाड़ भरे इलाक़े में एक भीषण बम विस्फोट हुआ, इसमें 13 लोग मारे गए थे और 38 घायल हो गए थे। मिर्जा ने बताया की पुलिस ने चार्ज शीट फाइल करने में 5 साल का समय लगा दिया था और 14 साल जेल में गुजारने के बाद बाद 2010 में इनकी कार्यवाही चालू की गई।
हालांकि 2010 में मिर्जा निसार हुसैन (Mirza Nisar Hussain) के भाई को रिहाई मिल गई थी लेकिन मिर्जा निसार हुसैन को फांसी की सजा सुनाई गई थी। जैसे तैसे इस मुकदमे से मिर्जा निसार हुसैन को छुटकारा मिला और उन्हें बाइज्ज़त बरी कर दिया गया, लेकिन फ़िर राजस्थान में हुए बम धमाका के मामले में मिर्जा निसार हुसैन को गिरफ्तार कर राजस्थान जेल में उम्र कैद की सजा सुना दी गई। राजस्थान के समलेटी में 23 मई 1996 को हुए विस्फोट हुआ था, इस धमाके में 14 लोग मारे गए थे और 37 लोग घायल हो गए थे। अपने परिवार से इतने साल दूर रहने के कारण वैसे ही मिर्जा निसार हुसैन का परिवार बिखर चुका था इसके साथ ही साथ उनकी आर्थिक तंगी भी चरम पर थी क्योंकि इन मामलों ने उनके कारोबार को भी ठप कर दिया था। एक बार फिर मिर्जा हुसैन को अपनी बेगुनाही के लिए राजस्थान हाई कोर्ट में लड़ाई लड़नी पड़ी, और अंत में जुलाई 2019 में राजस्थान कोर्ट के द्वारा निसार को बेगुनाह करार दिया गया और उन्हें बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया।
2019 में लगभग 23 साल बाद जब मिर्जा वापस कश्मीर पहुंचे तो उनके घर की टूटी दीवारों, दरारें 23 साल पहले की सारी कहानी बयां कर रही थी। कश्मीर पूरी तरह बदल चुका था। मिर्जा ने बताया कि जब वह कश्मीर पहुंचे तो उस समय आर्टिकल 370 लग चुका था। कश्मीर को दो भागों में बांट दिया गया था। कर्फ्यू लगा दिया गया था। सड़कों पर चलने पर भी मनाही थी। इन कश्मीरीयों को बिना किसी कारण 23 साल जेल में बिताने पड़े उनकी मनोदशा काफी बदली हुई थी और उनके अंदर निराशा भरी हुई थी। जब कोई व्यक्ति जेल में होता है तब उसका परिवार कई तरह की लड़ाइयां लड़ रहा होता हैं और जब वह बाहर आता है तब भी वे और उसके परिवार लड़ाइयां लड़ते हैं।
हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां खुद पर लगा एक दाग चाहे लाख कोशिश कर ली जाए पर छुड़ाना नामुमकिन होता है। मिर्जा की मनोदशा कुछ ऐसी हो गई थी कि लोग उसे देखते तो अलग तरह की सवाल पूछते हैं और उन्हें कश्मीर के हालिया बदलाव और यहां के लोगों को देखकर जेल जैसा अनुभव ही होता। उन्हें ऐसा लग रहा था कि वह एक कैद से छूटकर दूसरे कैद में आ गए हैं। मिर्जा की जिंदगी से भारत की प्रशासन व्यवस्था और न्याय व्यवस्था दोनों पर सवाल उठाते हैं क्या इस तरह किसी बेगुनाह को सजा देना सही था? प्रशासन व्यवस्था की लापरवाही ने एक 16 साल के युवक की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया और न्याय व्यवस्था की देरी ने उस युवक को बेगुनाह साबित करने में 23 वर्ष का समय लगा दिया। Rh/SP