'झारखंड' के शाब्दिक अर्थ से जेहन में इस प्रदेश की छवि जंगल-झाड़ से घिरे प्रदेश के रूप में उभरती है और इस आधार पर आम तौर पर यह धारणा बन सकती है कि इस प्रदेश की हवा सेहत के लिए अच्छी होगी। लेकिन, हकीकत की धरातल से सामना होते ही यह धारणा ध्वस्त हो जाती है। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एआईक्यू) के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।
21 अक्टूबर को दोपहर 3 बजे झारखंड में पिछले 24 घंटे का औसत एआईक्यू 182 रिकॉर्ड किया गया, जबकि इसी अवधि में पूरे देश की औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स 136 थी। इन 24 घंटों में 20 अक्टूबर की रात 8 बजकर 37 मिनट पर सबसे खराब एआईक्यू 252 मापा गया, जबकि सबसे बेहतर आईक्यू 21 अक्टूबर को दिन के 2.35 मिनट पर 112 रिकॉर्ड किया गया।
इस राज्य के तकरीबन सभी प्रमुख शहरों की हवा में प्रदूषण का जहर घुल रहा है। जनवरी, 2020 में एयर पॉल्यूशन पर ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में झारखंड के झरिया शहर को देश का सबसे प्रदूषित शहर आंका गया था।
देश भर के 287 शहरों में वायुमंडल में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 10) डेटा के विश्लेषण के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट में झारखंड के ही धनबाद को देश का दूसरा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर बताया गया था। झरिया और धनबाद देश के सबसे बड़े कोयला उत्पादक इलाके हैं। धनबाद को देश का कोल कैपिटल कहा जाता है। जाहिर है, देश भर की ऊर्जा जरूरतों के लिए सबसे ज्यादा कोयला देने के बदले इन शहरों को वायु प्रदूषण की बड़ी सौगात मिल रही है।
करीब छह महीने पहले नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (National clean air program) के तहत लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरमेंट ( लाइफ) नामक संस्था की स्टडी रिपोर्ट के अनुसार अनुसार धनबाद के लोग वायु प्रदूषण की वजह से अपने जीवन का 7.3 साल गंवा देते हैं।
शिकागो यूनिवर्सिटी की संस्था एपिक की ओर से इसी साल जून महीने में जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक पर झारखंड को रखें तो वायु प्रदूषण की वजह से यहां के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में औसत 4.4 साल की कमी आ जाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के सबसे ज्यादा प्रदूषित राज्यों में झारखंड आठवें नंबर पर है।
भारत के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण पर्षद (सीपीसीबी) ने 2015 से 2019 के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद देश के 124 शहरों की हवा को स्वास्थ्य के लिए खतरनाक पाया था। इन शहरों की सूची में झारखंड के धनबाद, रांची, रामगढ़ और जमशेदपुर शहर भी शामिल थे।
झारखंड स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने इसी महीने यानी अक्टूबर में झारखंड की औद्योगिक इकाइयों से फैलने वाले प्रदूषण से आम लोगों को अवगत कराने के लिए स्टार रेटिंग प्रोग्राम लांच किया है। यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की इकाई एपिक इंडिया के सहयोग से लाए गए इस प्रोग्राम के जरिए प्रदूषण और इसके नियंत्रण के उपायों के आधार पर औद्योगिक इकाइयों की रेटिंग की जा रही है और इसका ब्योरा वेबसाइट पर जारी किया जा रहा है।
वेबसाइट पर झारखंड की 68 औद्योगिक इकाइयों का ब्योरा दर्ज है। इसके मुताबिक सितंबर 2022 में इन 68 में से 36 औद्योगिक इकाइयों को रेड यानी खतरनाक कैटेगरी में रखते हुए एक स्टार की रेटिंग दी गई है। मात्र 23 औद्योगिक इकाइयां ऐसी हैं, जिन्हें प्रदूषण नियंत्रण के उपायों के लिए 5 स्टार रेटिंग दी गई है। 5 उद्योगों को फोर स्टार, 3 उद्योगों को थ्री स्टार और एक उद्योग को 2 स्टार रेटिंग दी गई है।
सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में सरायकेला-खरसावां जिला स्थित अमलगम स्टील, बीके स्टील इंडस्ट्रीज, बिहार स्पांज आयरन लिमिटेड, जमशेदपुर क्लोरोकेम, पश्चिम सिंहभूम के एसीसी लिमिटेड, पूर्वी सिंहभूम में जमशेदपुर केमिकल्स एंड मिनरल्स, धनबाद के निरसा स्थित अंकुर बायोकेम प्रा. लि., रामगढ़ के ब्रह्मपुत्र मेटालिक्स, इनलैंड पावर, जय दुर्गा आयरन, कामेश्वर एलॉय एंड स्टील, पलामू के रेहला स्थित ग्रासिम इंडस्ट्रीज सहित कुल 36 औद्योगिक इकाइयां शामिल हैं।
देश-विदेश की संस्थाओं के लिए पर्यावरण पर कई शोध कर चुके रांची निवासी पर्यावरणविद नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रांची शहरी क्षेत्र की हवा को स्वास्थ्य के लिए अनुकूल बताता है, जबकि यहां की हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर के आधार पर गणना करें तो यहां के लोग हर रोज अपने घरों में मौजूद रहकर भी लगभग 10 सिगरेट के बराबर हानिकारक हवा अपने लंग्स में खींचते हैं।
धनबाद (Dhanbad) स्थित आईआईटी-आईएसएम के एनवायरमेंट इंजीनियरिंग विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो गुरदीप सिंह कहते हैं कि झारखंड के कोयला और खनिज उत्पादक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक है। देश की जरूरतों के लिए कोयला और दूसरे खनिजों का उत्पादन तो नहीं रोका जा सकता, लेकिन इन इलाकों में वायु प्रदूषण के लिए सबसे बेहतर उपाय यह है कि अधिक से अधिक संख्या में पेड़ लगाए जाएं। पेड़ भी स्थानीय प्रजाति के होने चाहिए।
झारखंड में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह हैं कि कोयला के ओपन कास्ट माइंस। सीसीएल, बीसीसीएल और ईसीएल जैसी कोयला कंपनियां अंडरग्राउंड की जगह ओपन कास्ट माइन्स से कोयला उत्पादन पर ज्यादा जोर दे रही हैं। अंडरग्राउंड की तुलना में ओपन कास्ट खदानें ज्यादा प्रदूषण फैलाती हैं।
सीसीएल की वेबसाइट के अनुसार कुल 43 माइंस यहां हैं जिसमें से पांच अंडरग्राउंड और 38 ओपन कास्ट हैं। झारखंड में पिछले कुछ सालों में सौ से अधिक खदान बंद हो गये हैं। इनमें अधिकतर अंडरग्राउंड माइंस हैं। राज्य में कोयला, पत्थर, बॉक्साइट, माइका सहित कई खनिजों का अवैध खनन बड़े पैमाने पर होता है। इनकी वजह से भी हवा में हर रोज प्रदूषण का जहर घुल रहा है।
शहरीकरण की तेज रफ्तार ने भी आबोहवा को गहरे तौर पर प्रभावित किया है। झारखंड सरकार के वर्ष 2019-20 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक राज्य की शहरी आबादी 24.05 प्रतिशत है, जो हर वर्ष 2.3 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। इसी तरह हर साल राज्य में लगभग 6 लाख नई गाड़ियां निबंधित हो जाती हैं।
संसद के पिछले सत्र में केंद्र सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, शहरों में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण और एयर क्वालिटी को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने पूरे देश में 10 लाख से अधिक जिन 42 शहरों के लिए आर्थिक सहायता की जो विशेष योजना शुरू की है, उनमें झारखंड के तीन शहर रांची, धनबाद और जमशेदपुर शामिल हैं। इन तीनों शहरों के लिए केंद्र ने इस साल 80 करोड़ रुपये की राशि दी है। यह योजना 2025-26 तक जारी रहेगी।
आईएएनएस/RS