कावेरी नदी को लेकर फिर एक बार विवाद शुरू हो चुका है। यह विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु इन दो राज्यों के बीच लगभग 140 वर्षों से चल रही है।[Pixabay] 
कर्नाटक

फिर उठ रहा है कावेरी जल विवाद का मुद्दा, क्या है 1881 का इतिहास

1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक हिस्सा तमिलनाडु को देगा हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा यह अभी तय किया गया लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ।

न्यूज़ग्राम डेस्क, Sarita Prasad

कावेरी नदी को लेकर फिर एक बार विवाद शुरू हो चुका है। यह विवाद कर्नाटक और तमिलनाडु इन दो राज्यों के बीच लगभग 140 वर्षों से चल रही है। बीच-बीच में अचानक से यह मुद्दा तीव्र हो जाता है दरअसल कावेरी अंतर राज्य बेसन है जिसका उद्गम कर्नाटक है और यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर गुजरता है। दरअसल कावेरी जल नियमन समिति ने 12 सितंबर 2023 को दिए अपने आदेश में कर्नाटक सरकार को अगले 15 दिन तक तमिलनाडु 5000 क्यूसेक पानी रोज देने का निर्देश दिया था और इस निर्देश के बाद ही विवाद शुरू हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आदेश पर दखल देने से मना कर दिया। समिति के आदेश के विरोध कर्नाटक ने अपना तर्क दिया कि वह पेयजल और कावेरी बेसिन क्षेत्र में फसलों की सिंचाई की अपनी जरूरत को ध्यान में रखते हुए पानी छोड़ने की स्थिति में नहीं है क्योंकि मानसून में कम बारिश के कारण पानी की कमी हो गई है। फिर क्या था कर्नाटक के स्टार्क और समिति के आदेश के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने धरना शुरू कर दिया। 

कैसे भड़का विवाद

इस साल कर्नाटक को जून से सितंबर तक कुल 123 टीएमसी मुहैया कराना था लेकिन अगस्त में तमिलनाडु ने 15 दिनों के लिए 15000 क्यूसेक पानी मांगा था, जिसे बाद में घटकर 10000 कर दिया गया लेकिन कर्नाटक से यह 10000 क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा गया इसी बीच कर्नाटक में किसानों ने तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने को लेकर कर्नाटक में ही जगह-जगह प्रदर्शन कर दिए।

कर्नाटक के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया [Pixabay]

कर्नाटक के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने किसानों के विरोध प्रदर्शन का समर्थन किया वहीं मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने कहा हम विरोध प्रदर्शन को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करेंगे लेकिन लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए अर्थात परोक्ष रूप से विरोध प्रदर्शन का उन्होंने भी समर्थन कर डाला। आम तौर पर बारिश कम होने की स्थिति में ही कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर लोगों का गुस्सा सामने आता है अच्छे मानसून में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कोई तनाव नहीं नजर आता लेकिन जहां मानसून के समय बारिश कम होती है वही यह मुद्दा बार-बार सामने आने लगता है। 2018 में भी सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि कर्नाटक को जून और मैं के बीच सामान्य जल वर्ष में तमिलनाडु को कुछ आवंटित करना होगा लेकिन उसे वक्त भी बारिश कम होने की वजह से बवाल देखने को मिला था।

कावेरी नदी का इतिहास

कावेरी नदी का विवाद 1881 में शुरू हुआ जब मैसूर राज्य ने कावेरी नदी पर बांध बनाने की मांग उठाई थी। 1924 में ब्रिटिश और मैसूर के बीच एक समझौता हुआ और उसे समझौते के तहत कर्नाटक को 177 टीएमसी पानी पर अधिकार दे दिया गया। लेकिन 1924 में इसी समझौते को लेकर विवाद हुआ और न्याय की उम्मीद रखी गई परंतु न्याय नहीं मिला। भारत सरकार ने 1972 में इस मामले को सुलझाने के लिए कमेटी बनाई। 1976 में फिर एक बार कावेरी नदी को लेकर समझौता किया गया लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच हुए इस समझौते का पालन किसी ने नहीं किया और विवाद बढ़ता गया।

केंद्र सरकार ने 1990 में उनके अनुरोध को मान लिया और एक न्यायाधिकरण का गठन किया लेकिन हल तब भी ना निकला।[Pixabay]

जुलाई 1986 में तमिलनाडु ने अंतर राज्य जल विवाद अधिनियम के तहत इस मामले को सुलझाने के लिए आधिकारिक तौर पर केंद्र सरकार से एक न्यायाधिकरण गठन किए जाने का अनुरोध किया। केंद्र सरकार ने 1990 में उनके अनुरोध को मान लिया और एक न्यायाधिकरण का गठन किया लेकिन हल तब भी ना निकला। 1991 में न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसमें कहा गया था कि कर्नाटक कावेरी जल का एक हिस्सा तमिलनाडु को देगा हर महीने कितना पानी छोड़ा जाएगा यह अभी तय किया गया लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ। और मामला और भी ज्यादा पेचीदा होता चला गया। 2007 में अंतिम निर्णय सुनाया गया जिसमें तमिलनाडु को फाइनल अवार्ड में 419 टीएमसी फुट पानी देने का फैसला किया गया लेकिन कर्नाटक ने इस पर भी लगातार आपत्ति के है। और इसी प्रकार फैसला आते गए कर्नाटक पर दबाव बढ़ता गया तमिलनाडु में पानी की समस्या बढ़ती गई और कावेरी नदी का कोई हल नहीं निकला। जब भी मानसून के द्वारा अच्छी वर्षा होती है तब तमिलनाडु को सिंचाई और पानी से जुड़ी कोई भी समस्या नहीं होती लेकिन जिस वर्ष वर्षा कम होती है उसे वर्ष यह मुद्दा भी बहुत अधिक बढ़ जाता है।

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