Uttarakhand Jageshwar Dham Temple : उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का अल्मोड़ा जिला के जागेश्वर में उत्तराखंड सरकार ने देवदार के 1000 पेड़ों को काटने का फरमान जारी किया है। पौराणिक पेड़ों की कटाई देख स्थानीय लोग और जागेश्वर धाम मंदिर के पुजारी बेहद गुस्सा और दुखी हैं। सोशल एक्टिविस्ट भी विकास के नाम पर पेड़ों की हत्या को रोकने के लिए सरकार पर दवाब बना रहे हैं। जागेश्वर धाम के मुख्य पुजारी हेमंत भट्ट जी का कहना है, कि इन देवदार पेड़ों का संबंध हिंदू धर्म की आस्था और मान्यता से है। सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अगर पेड़ों की बलि चढ़ेगा तो यह विकास नहीं विनाशकारी होगा।
जागेश्वर धाम के मुख्य आचार्य गिरीश भट्ट बताते हैं कि यहां रोजाना केवल देश नहीं बल्कि विदेश से हजारों श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए आते हैं। केवल स्थानीय ही नहीं यहां आने वाले श्रद्धालु भी पेड़ों की कटाई की खबर को सुनकर बेहद परेशान हैं। जागेश्वर में रहने वाले सौ से अधिक परिवारों को इस बात की चिंता है कि यदि पेड़ों को काटा गया तो कोई बड़ी आपदा आएगी और लोगों का जीवन खतरे में आ जायेगा। स्थानीय लोग लगातार धामी सरकार को आने वाली आपदा को लेकर आगाह कर रहे हैं।
उत्तराखंड देश का नामी पर्यटन स्थल है। यहां हर साल लाखों सैलानी आते हैं। सरकार को उत्तराखंड के विकास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उत्तराखंड में पिछले 20 सालों में 50 हजार हेक्टेयर जंगल जल चुके हैं। ऐसे में जंगल के पेड़ों की कटाई पर जल्द से जल्द रोक लगनी चाहिए। उत्तराखंड की पहचान ही पौराणिक पेड़ों और खुशनुमा पर्यावरण से होती है।
पेड़ की कटाई के लिए शख्त कानून बनाए गए है। वन संरक्षण अधिनियम 1976 के अनुसार, 12 प्रजातियों के किसी भी पेड़ को काटने वाले को जेल जाना पड़ सकता है। इनमें अखरोट, अंगू, साल, पीपल, बरगद, देवदार, चमखड़िक, जमनोई, नीम, बांज, महुआ और आम के पेड़ शामिल हैं। उत्तराखंड में 12 प्रजातियों के पेड़ों को काटना पूरी तरह से मना ही नहीं बल्कि यह गैरकानूनी भी है। इन पेड़ों को काटने वाले को जुर्माने के साथ-साथ 6 महीने की जेल होती हो सकती है। पिछले साल वन संरक्षण अधिनियम को लेकर सदन में इस पर चर्चा की गई थी, जिसमें पेड़ काटने पर लोगों को जेल की सजा छोड़कर जुर्माना देना होगा, लेकिन फिलहाल इसपर कोई आदेश जारी नहीं किया गया है।