Citizenship Amendment Act : केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए लागू करने के बाद जहां विपक्षी दल रूठ गए, तो दूसरी ओर देश में खुशियां भी मनाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल जहां ममता बनर्जी का राज्य है वहां कई लोग सीएए को लेकर खुशियां मना रहे हैं। पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय के एक वर्ग ने सीएए को लेकर कहा है कि यह उनके लिए दूसरा स्वतंत्रता दिवस है। पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना में लोगों के बीच अलग ही आनंद का माहौल है। आइए जानते हैं कौन हैं मतुआ समुदाय और ये क्यों इतना खुश है।
पूर्वी पाकिस्तान से आने वाला मतुआ समुदाय हिंदुओं का एक कमजोर वर्ग है। ये लोग भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान और बांग्लादेश के निर्माण के बाद भारत आ गए थे। पश्चिम बंगाल में 30 लाख की लगभग आबादी वाला यह समुदाय नदिया और बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर और दक्षिण 24 परगना जिलों में रहता है। इस राज्य की 30 से अधिक विधानसभा सीटों पर प्रभुत्व है।
इनका जश्न मनाने का वजह यह है कि सीएए नियम जारी होने के बाद मोदी सरकार अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करना शुरू कर देगी। इनमें हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शामिल हैं।
1860 के आसपास अविभाजित भारत के बंगाल में मतुआ महासंघ एक धर्मसुधार आन्दोलन शुरू हुआ था। वर्तमान में मतुआ समुदाय के लोग भारत और बांग्लादेश दोनों देश में मौजूद हैं। मतुआ समुदाय हिन्दुओं का एक कमजोर वर्ग है, जिसके अनुयायी विभाजन और बांग्लादेश निर्माण के बाद भारत आ गए थे। इस समुदाय की शुरुआत हरिचंद्र ठाकुर ने की थी। यह समुदाय हिंदुओं की जाति प्रथा को चुनौती देने वाली समुदाय है।
हरिचंद्र की शिक्षाएँ अनुयायी के लिए शिक्षा को प्रमुखता से महत्वपूर्ण और जनसंख्या के उत्थान के लिए अनुयायी के कर्तव्य के रूप में स्थापित करती हैं, इसलिए यह समुदाय के लोग हरिचंद्र को भगवान का अगला अवतार मानने लगे थे। इसके बाद में ठाकुर परिवार बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल आकर बस गया। समय के साथ साथ ठाकुर परिवार समुदाय के लिए आराध्य बना रहा। इसके बाद हरिचंद्र ठाकुर के पड़पोते परमार्थ रंजन ठाकुर समुदाय के प्रतिनिधि बन गए।