2011 में बढ़ते भ्रष्टाचार और उसे सरकार द्वारा न रोक पाने से दुखी समाज सेवी अन्ना हजारे(Anna Hazare) ने राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर 5 अप्रैल 2011 को इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। भ्रष्टाचार को रोकने के इस मुहीम में अन्ना को किरण बेदी, डॉ. कुमार विश्वास, अभिनेता अनुपम खेर, सेना के जनरल वीके सिंह, योगेंद्र यादव जैसे बड़े नामों ने खुलकर समर्थन दिया। इस वजह से तत्कालीन केंद्र सरकार की किरकिरी होने लगी, इसके बाद सरकार ने अन्ना की मांगो को मानते हुए अनशन के पांच दिन बाद, 9 अप्रैल आज के ही दिन अन्ना के मांगो के अनुसार अधिसूचना जारी की। इस मसौदे के जारी होने के बाद अन्ना ने एक छोटी सी बच्ची के हाथ से नींबू पानी पीकर अपना अनशन तोड़ा दिया।
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हालांकि, अनशन ख़त्म होने के बाद उन्होंने कहा था कि, 15 अगस्त से पहले तक जन यह बिल अगर पास नहीं होता है, तब तुरंत फिर आंदोलन शुरू हो जाएगा। खैर, केंद्र सरकार ने इसे नजरंदाज कर दिया और यह मसौदा ठन्डे बस्ते में 15 अगस्त तक पड़ी रही। वादे के पक्के समाज सेवी अन्ना 16 अगस्त 2011 को पुनः अनशन पर बैठ गए। इसके बाद भारतवर्ष में अन्ना के समर्थन में बड़ा आंदोलन शुरू हो गया जिसे भारत के बाहर रह प्रवाशियों ने भी अपना समर्थन दिया। अनन्तः सरकार को तुरंत इस बिल को पास कर दिया।
इस आन्दोलन की आंच में तपकर अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह जैसे कई नाम हीरो बनकर राजनीति में अपना पाँव ज़माने लगे। और भ्रष्टाचार रोकने की मुहीम में केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाकर कर, खुद ही भ्रष्टाचार को रोकने की मुहीम की आहुति दे दी। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की दिल्ली में जन लोकपाल बिल 2013, 2015 और 2020 के चुनाव के समय जारी 'आप' के मेनिफेस्टो में पहले या दुसरे नम्बर पर होता तो जरुर है लेकिन कभी विधानसभा में पास नही होता। हर बार की तरह पार्टी के मुखिया केंद्र पर ठीकरा फोड़ कर निकल जाते है।
Transparency (Episode : 4) | Arvind Kejriwal ने सत्ता के लालच में सिद्धांतों से किया खिलवाड़
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