बिहार के केला किसानों के लिए केले के अवशेष उपयोगी साबित हो सकते है|

बिहार के केला किसान{Wikipedia commons}
बिहार के केला किसान{Wikipedia commons}

Bihar के केला उत्पादक किसान केले के आभासी तने यानी (स्यूडोस्टेम) से रेशा निकालकर उसका प्रसंस्करण कर उसे मूल्य वर्धित उत्पादों में परिवर्तित करके अपनी आय में भारी वृद्धि कर सकते हैं। केले के रेशे से बैग, चप्पल, कालीन, मैट, हैट आदि के अलावा कई तरह के सजावटी समान बनाए जा सकते हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा से जुड़े वैज्ञानिकों ने केले के थम से रेशा निकालने तथा उससे विभिन्न उत्पादों को बनाने एवं महिलाओं को प्रशिक्षित करने का कार्य कर रहा है।

विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एस के सिंह ने बताया कि वर्ष 2017-18 के आंकड़े के अनुसार बिहार में केले की खेती 31.07 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जा रही है। बिहार के करीब चार लाख से साढ़े चार लाख लोग केले की खेती, कटाई, हैंडलिंग और केले के परिवहन आदि से जुड़कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि बिहार के प्राय: केला उत्पादक किसान केले से घौद (केला का गुच्छा) की कटाई करने के बाद केले के आभासी तने को काटकर खेत के बाहर फेंक देते हैं, जो बाद में या तो बर्बाद हो जाता है या फिर सूखने पर किसान उसे जला देते हैं, जिससे वातावरण को भारी नुकसान पहुंचता है।

उत्पादक किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है वे केले के अनुपयोगी तने को उपयोगी बनाया जाए। उन्होंने बताया कि सामान्यत: केला के आभासी तने से रेशा निकालने वाली मशीन की कीमत पचास हजार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये के मध्य है। इस मशीन के माध्यम से किसान एक दिन में लगभग 15 से 20 किग्रा सूखा रेशे आसानी से निकाल सकते हैं।

आठ घंटे की शिफ्ट, श्रम लागत, परिसंपत्ति मूल्य, ओवरहेड्स, बिजली, पानी आदि सभी खचरे को जोड़ने के बाद इस रेशे की निकासी पर लगभग 70 से 80 रुपये प्रति किलो का खर्च आता है। किसान इस रेशे को लगभग 150 रुपये के दर से बेच सकते हैं। उन्होंने बताया कि केले से निकाला गया रेशा फाइबर जूट के रेशों के समान होता है और इसका उपयोग उन वस्तुओं के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिसमें जूट के रेशों का उपयोग होता है। जूट के रेशों की कीमत एवं केले से निकले रेशों की लागत समान होने से केलो के रेशो का महत्व आने वाले समय में काफी बढ़ेगा।

उन्होंने कहा कि आवश्यकता इस बात की है की केले से निकाले जाने वाले रेशे पर होने वाले खर्च को और कम किया जाय। इस पर कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक गंभीरता से अनुसंधान करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा अब तक 250 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, जिसका उन्हें लाभ मिल रहा है।

–आईएएनएस{NM}

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com