कश्मीर में 3 घंटे से भी कम समय में 3 लोगों की हत्या

कश्मीर में 3 घंटे से भी कम समय में 3 लोगों की हत्या।(Canva)
कश्मीर में 3 घंटे से भी कम समय में 3 लोगों की हत्या।(Canva)
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से जम्मू कश्मीर को भारत का एक अलग राज्य घोषित कर दिया गया साथ ही आतंकवादी रैंक में शामिल होने वाले कश्मीरी युवाओं में 40% से अधिक की गिरावट देखी गई। लेकिन यह बात आतंकी संगठनों को हजम नहीं हुई और उन्होंने एक बार फिर से जम्मू कश्मीर में आतंकी हमले करने शुरू कर दिए। इस साजिश के दौरान की गई हत्या कोई आम हत्या नहीं बल्बल्कि एक सोची-समझी साजिश के तहत की गई हत्या थी।

हाल ही में मंगलवार को कश्मीर में 3 घंटे से भी कम समय में तीन नागरिकों की हत्या आतंकवादी द्वारा कर दी गई। जम्मू-कश्मीर विकास के पथ पर अग्रसर है और इस बीच यह होने वाली हत्याएं एक संदेश के तौर पर देखी जा रही हैं। हम कश्मीर में निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा के सामने हजारों कश्मीरी पंडितों को वापस लाने का इरादा रखते हैं, जिसमें भारतीय सेना अपना पूरा योगदान दे रही हैं। कश्मीर में लगभग 31 साल पहले मंगलवार की तरह आतंकी कृतियों के माध्यम से लोगों को अपने घरों से बाहर कर दिया गया था। अलग-अलग अनुमान के मुताबिक 5 से 7 लाख कश्मीरी पंडितों ने अपना घर बार छोड़ दिया था और वह जम्मू शहर और देश के दूसरे हिस्सों में शरणार्थी बन गए थे।

माखन लाल बिंदरू उन सभी लोगों के लिए एक सम्मानित और भरोसेमंद व्यक्ति थे, जिन्होंने श्रीनगर शहर के इकबाल पार्क के पास उनकी दुकान 'बिंदरू मेडिकेट' से दवाइयां खरीदीं थी। जब 1990 के दशक की शुरुआत में उनके रिश्तेदारों और दोस्तों सहित बिंदरू का अधिकांश समुदाय घाटी से बाहर चला गया, मगर वह यहीं पर डटे रहे। उन्होंने अपनी दुकान पर दवाई बेचना चालू रखें जो उस समय श्रीनगर में हरि सिंह हाई स्ट्रीट के शीर्ष छोर स्थित थी। बिंदरू की दुकान से कुछ ही दूरी पर भारतीय सुरक्षा बल का बनकर था। आतंकवाद जब चरम पर रहा, उस दौरान आतंकवादियों ने एक दर्जन से अधिक बार ग्रेनेड फेंके और बंकर पर फायरिंग की। ऐसी नाजुक परिस्थितियों के बावजूद बिंदरू अटल रहे। वह एक आम कश्मीरी थे, जो एक सामान्य जीवन जी रहे थे। लंबे समय से कश्मीर में रहते हुए उनके लिए यह सब सामान्य हो गया था और उन्हें यह विश्वास हो गया था कि डरने की कोई बात नहीं है। उन्होंने अपना व्यापार श्रीनगर के इकबाल पार्क के बाहर एक बड़ी दुकान में स्थानांतरित कर दिया। उनकी पत्नी ने पीक आवर्स के दौरान जरूरतमंदों को दवा देने में उनकी मदद करना शुरू कर दिया।

कश्मीर में आतंकी हमला। (WIKIMEDIA COMMONS)

उनके डॉक्टर बेटे ने भी उसी दुकान की पहली मंजिल में एक क्लिनिक स्थापित किया था, जहां वह मरीजों का इलाज करते थे। मंगलवार की शाम बिंदरू अपने काउंटर के पीछे थे और दुकान पर मुश्किल से एक ग्राहक रहा होगा, जब अचानक से आतंकियों ने दुकान में घुसकर उन पर नजदीक से फायरिंग कर दी। अस्पताल के डॉक्टरों ने अपने बयान में कहा कि उन्हें चार गोलियां लगी थीं और अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई थी। बिंदरू की हत्या कोई साधारण बदला लेने वाली हत्या नहीं थी। आतंकवाद कि यह निर्दय घटना ऐसे समय में हुआ थीथी, जब भारत सरकार ने कश्मीरी पंडितों की संपत्तियों को पुन: प्राप्त करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी, जिन्होंने घाटी से भागते समय इन संपत्तियों को मुसीबत में बेच दिया था। कश्मीरी पंडितों ने इसका पिछले 30 वर्षों से इंतजार किया है और पिछले 30 वर्षों के दौरान प्रवासी पंडितों को घाटी में वापस लाने के लिए जमीनी स्तर पर सरकार काम होता हुआ दिखाई दे रही है।

एक निर्दोष कश्मीरी पंडित की हत्या करके, जिसने पलायन न करके वहीं बसे रहने का फैसला किया था, आतंकवादियों का इरादा समुदाय को एक शक्तिशाली संदेश भेजने का है। प्रवासी समुदाय के पहले से ही डगमगाए विश्वास को सरकार कैसे फिर से शुरू करती है, यह देखना होगा। मंगलवार को दूसरी नागरिक की हत्या बिहार के एक रेहड़ी-पटरी वाले की थी। वह गरीब व्यक्ति श्रीनगर के लाल बाजार इलाके में सड़क किनारे भेलपुरी बेचता था। उसे आतंकवादियों ने अनुच्छेद 370 और 35ए के रद्द होने के बाद बाहरी लोगों को कश्मीर में बसने की अनुमति नहीं देने के नापाक मंसूबे पर जोर देने के लिए मार डाला।

तीसरी हत्या उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा जिले में हुई। बिंदरू की हत्या के तीन घंटे से भी कम समय में आतंकियों ने शाह मोहल्ला के मुहम्मद शफी लोन को मार गिराया था। लोन एक टैक्सी ड्राइवर था, जिसे हाल ही में सूमो टैक्सी ड्राइवर्स यूनियन का अध्यक्ष चुना गया था। क्षेत्र में ऐसी भी बातें की जा रही हैं कि कुछ साल पहले लोन के घर पर एक मुठभेड़ हुई थी, जिसमें कुछ आतंकवादी मारे गए थे। कहा जा रहा है कि आतंकवादियों को लोन पर शक था कि उन्होंने सुरक्षा बलों को आतंकवादियों की मौजूदगी की सूचना दी थी। अफवाह विश्वसनीय हो या न हो, इस बात में शायद ही कोई संदेह हो कि आतंकी ने लोन को क्यों मारा। केवल संदेह के आधार पर हत्या करना कश्मीर में आतंकवादी हत्याओं की पहचान रही है। इन संदेश हत्याओं की पृष्ठभूमि में, यह स्पष्ट है कि जब तक घाटी में रहने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक कश्मीरी पंडित प्रवासियों को वापस लाने का प्रयास भी जल्दबाजी में उठाया गया कदम माना जाएगा।

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