आने वाली पीढ़ियों को कश्मीर के गौरवशाली अतीत और उदार संस्कृति की कहानी बयां करेंगे बामजई स्मारक

बामजई स्मारक (Umar Ganie, आईएएनएस)
बामजई स्मारक (Umar Ganie, आईएएनएस)

कोई भी खंडहर सिर्फ खंडहर नहीं होता, बल्कि स्मृतियों और इतिहास का घर होता है। हर खंडहर की दीवारों के पीछे अतीत से जुड़ी यादें छिपी रहती हैं। स्वामी विवेकानंद, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, जमशेदजी नसरवानजी टाटा, उर्दू कवि-दार्शनिक सर मोहम्मद इकबाल, कश्मीर के क्रांतिकारी कवि महजूर और कई अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों की यादों का भी एक ऐतिहासिक घर है, जो इन महान शख्सियतों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक चर्चाओं के अकेले गवाह के रूप में खड़ा है। यह घर कश्मीर के इतिहास और लोककथाओं पर शोध के अग्रणी पंडित आनंद कौल बामजई(Pandit Anand Kaul Bamzai) का है। अपने अंदर सदियों का इतिहास समेटे यह घर श्रीनगर शहर के जैना कदल इलाके शांत झेलम के किनारे स्थित है। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अक्टूबर 1915 में कश्मीर का दौरा किया था। इसी समय वह जैना कदल इलाके में अपने मेजबान पंडित आनंद कौल बामजई(Pandit Anand Kaul Bamzai) के इस घर, जिसे 'बारादरी' (हवा के मुक्त प्रवाह की अनुमति देने वाला भवन) कहा जाता था, में रुके थे। यहीं से उन्होंने शरद ऋतु की शामों में झेलम नदी की सहजता, उसकी शान्ति और मस्तचाल में तैरते हुए हंसों की पंक्तियों को निहारते हुए अपने विचारों का साम्य झेलम के पानी के साथ बिठाने की कोशिश की थी। यही नहीं गुरुदेव ने इन तमाम मनोहर ²श्यों को अपनी आंखों और अपने चित्रों में संजोया होगा। कश्मीर के मुगल गार्डन और झेलम के अपने चित्रों के माध्यम से, टैगोर ने कश्मीर को बंगाल और दुनिया के बाहर पेश किया।

गुरुदेव टैगोर ने कश्मीर में अपने इस प्रवास के दौरान 'बालाका' कविता श्रृंखला की रचना की थी। 'बालाका' का अर्थ बगुला होता है, लेकिन गुरुदेव ने शांतिनिकेतन में अपने शिष्यों से कहा कि उन्होंने वास्तव में इस काव्य श्रृंखला में गीज (कलहंस) की उड़ान का उल्लेख किया था। गुरुदेव टैगोर के साथ बांग्ला भाषा के कवि सत्येंद्र नाथ दत्ता, उनके बेटे रविंद्र नाथ और प्रतिमा देवी भी कश्मीर गए थे। गुरुदेव को पंडित आनंद कौल बामजई(Pandit Anand Kaul Bamzai) ने आमंत्रित किया था, जो राजा अमर सिंह की काउंसिल ऑफ रीजेंसी के कार्यालय में शेरिफ के रूप में काम करते थे। कौल बाद में 1914 से 1915 तक श्रीनगर नगर पालिका के अध्यक्ष बने। वह एक लेखक, विद्वान और इतिहासकार थे, जिन्होंने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के माध्यम से कुछ किताबें भी प्रकाशित की थीं। बामजई कला और साहित्य के संरक्षक रहे हैं और डोगरा महाराजा की सरकार में उनकी स्थिति ने दूर-दूर के लोगों को आकर्षित किया है। कश्मीर के इन ऐतिहासिक बामजई आवासों को अब इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इन्टैक) द्वारा विरासत स्थल के रूप में अपनाया गया है। वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति और कश्मीर के समृद्ध उदार, बौद्धिक, गौरवशाली अतीत की महानता आज भी इन घरों में झलकती है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (इन्टैक) के कश्मीर चैप्टर के निदेशक वास्तुकला हकीम समीर हमदानी कहते हैं, "इन बामजई आवासों को विरासत स्थल के रूप में गोद लेना तीन मापदंडों-इतिहास, पुरातत्व और वास्तुकला- पर आधारित है। ये घर तीनों मापदंडों पर खरे उतरते हैं।"

इनटैक कश्मीर के प्रमुख सलीम बेग ने 'आईएएनएस' को बताया, "न केवल गुरुदेव, बल्कि इंडियन स्कूल ऑफ पेंटिंग के संस्थापक अवनिंद्र नाथ टैगोर भी पंडित आनंद कौल के साथ उनकी कश्मीर यात्रा के दौरान अतिथि के रूप में रहे।" दिलचस्प बात है कि अवनींद्र नाथ पहले भारतीय चित्रकार हैं, जिन्होंने कश्मीर को चित्रित किया और इस तरह इसे भारतीय चित्रकारों के स्कूल से परिचित कराया। ब्रिटिश चित्रकारों के अलावा, अवनिंद्र नाथ ने एक भारतीय चित्रकार के दृष्टिकोण से कश्मीर के प्राकृतिक वैभव को घर लाने में अग्रणी भूमिका निभाई। समय के थपेड़ों ने इन दोनों घरों के चारों ओर की ईंट-पत्थर की दीवार को तो तोड़ा है, लेकिन दो लकड़ी और ईंट के ढांचे की भव्यता और इसकी सांस्कृतिक महिमा को छीनने में यह सफल नहीं हो पाया है। इन हेरिटेज भवनों के जीर्णोद्धार कार्य की देखरेख प्रमुख राजमिस्त्री गुलाम नबी कर रहे हैं। वह पिछले छह महीने से इस काम की निगरानी कर रहे हैं। फुरकान अहमद कासिद जो वर्तमान में इन घरों के मालिक हैं, बड़ी ही भावुकता से कहते हैं, "हमें इस विरासत संपत्ति के मालिक होने पर गर्व है, लेकिन इससे भी अधिक, हमारी रुचि इन दोनों को उनके मूल गौरव को बहाल करने में है।"

फुरकान ने आईएएनएस से कहा, "यही कारण है कि हम एक इमारत में रहते हैं जबकि दूसरे को बहाल किया जा रहा है। हम उन दिनों का इंतजार कर रहे हैं जब पर्यटक और स्थानीय लोग इस विरासत का हिस्सा बनने के लिए यहां आएंगे।" इन्टैक द्वारा पैदा की गई ये नई मुहिम स्थानीय लोगों की अपने गौरवशाली अतीत के साथ ऐतिहासिक जुड़ाव और भावनात्मक जुड़ाव की और ले जाये, इसकी आशा कश्मीर की उदार संस्कृति और बामजई स्मारकों दोनों में है। देखना होगा कि क्या इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए उसकी सारी महिमा में बदल दिया जाएगा या जो समय पहले नहीं कर पाया वो समय इस इमारत की भव्यता को मिटा देगा, जैसे इसने मुसलमानों और स्थानीय पंडितों के बीच सदियों पुरानी दोस्ती को खत्म कर दिया था?(आईएएनएस-SHM)

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