हथकरघा उद्योग से आत्मनिर्भर होती महिलाएं

महिलाओं द्वारा हथकरघा से बनाए जा रहे वस्त्रों की मांग सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी है।(Pixabay)
महिलाओं द्वारा हथकरघा से बनाए जा रहे वस्त्रों की मांग सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी है।(Pixabay)
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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'आत्मनिर्भर भारत' और 'लोकल से वोकल' के अभियान को मूर्तरूप दे रही हैं मध्य प्रदेश के सीधी जिले की ग्रामीण महिलाएं। यहां के ग्रामीण इलाके की महिलाओं द्वारा हथकरघा से बनाए जा रहे वस्त्रों की मांग सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी है। इस मुहिम के जरिए महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम कर रही हैं। सीधी जिले के ग्रामीण इलाकों में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्व सहायता समूह में काम करने वाली महिलाएं हथकरघा से कपड़े बनाकर अपनी जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने में लगी हैं। महिलाओं द्वारा बनाए जाने वाले कपड़े देश के अनेक हिस्सों में आयोजित होने वाले हथकरघा मेलों में तो विक्रय के लिए जा ही रहे हैं, साथ ही दूसरे देशों में भी यहां के कपड़ों की मांग है।

राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक संजय चौरसिया ने बताया है कि, "स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा फुल और हाफ शर्ट के अलावा महिला व पुरुषों के कुर्ते, तौलिया, चादर, जैकेट आदि की मांग बहुत ज्यादा है। यही कारण है कि इनका उत्पादन बहुत ज्यादा हो रहा है। यहां बनने वाले उत्पादों को देश के अन्य राज्यों में लगने वाले सरस मेलों के साथ विदेश भी भेजा जा रहा है, ताकि इनकी मार्केटिंग करने के साथ आमदनी में भी बढ़ोतरी की जाए।"

साकेत स्व सहायता समूह की सदस्य आशा देवी ने बताया है कि हर माह में 10 से 12 हजार रुपये कमा लेती हैं, जिससे घर की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है, वहीं बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी बेहतर तरीके से हो पा रही है।

सीधी जिले के स्व सहायता समूह की महिलाओं की इस पहल से जहां लोगों के बीच हथकरघा के कपड़े लोकप्रिय हो रहे हैं और इन्हें नई पहचान भी मिल रही है, वहीं महिलाएं भी आत्मनिर्भर बन रही हैं।(आईएएनएस)

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