कोरोना महामारी ने 23 करोड़ भारतीयों को गरीबी में धकेला : रिपोर्ट

ग्रामीण गरीबी दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।(Pexel)
ग्रामीण गरीबी दर में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।(Pexel)
Published on
3 min read

कोरोना (Covid-19) महामारी की वजह से जिस तरह लॉकडाउन (Lock down) लगाए गए और लोगों की आजीविका पर असर पड़ा, उससे पिछले एक साल में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए। इसका दावा अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण गरीबी दर (Poverty) में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और शहरी गरीबी दर में लगभग 20 अंकों की वृद्धि हुई है।

कामकाजी भारत की स्थिति, कोविड के एक साल नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है, महामारी के दौरान राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन सीमा 23 करोड़ तक पहुंच गई। गौरतलब है कि अनूप सत्पथी समिति द्वारा अनुशंसित राष्ट्रीय न्यूनतम वेज 375 रूपये प्रतिदिन है। "

यह नोट किया गया कि यद्यपि लोगों की आय हर जगह कम हुई है , फिर भी महामारी का असर गरीब घरों पर बहुत अधिक पड़ा है। पिछले साल अप्रैल और मई में 20 प्रतिशत गरीब परिवारों ने अपनी पूरी आय खो दी।

इसके विपरीत, अमीर घरों को अपने पूर्व-महामारी आय के एक चौथाई से भी कम का नुकसान हुआ। पूरे आठ महीने की अवधि (मार्च से अक्टूबर) के दौरान, 10 प्रतिशत के निचले हिस्से में एक औसत घराने को 15,700 रुपये का नुकसान हुआ, या सिर्फ दो महीने की आय में गुजारा करने को मजबूर होना पड़ा।

इसके अलावा, रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल लॉकडाउन के दौरान देश भर में अप्रैल-मई 2020 के दौरान लगभग 10 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं। लगभग 1.5 करोड़ श्रमिक 2020 के अंत तक काम से बाहर रहे।

अधिकांश जून 2020 तक काम पर वापस आ गए थे, लेकिन यहां तक कि 2020 के अंत तक, लगभग 1.5 करोड़ लोग काम से बाहर रहे ।

रिपोर्ट के अनुसार आय में भी गिरावट दर्ज की गई। अक्टूबर 2020 में प्रति व्यक्ति औसत मासिक घरेलू आय (4,979 रुपये) जनवरी 2020 में अपने स्तर से नीचे (5,989 रुपये) थी।

महाराष्ट्र (Maharashtra), केरल (Kerala), तमिलनाडु (Tamil Nadu), उत्तर प्रदेश (Uttar Pardesh) और दिल्ली (Delhi) जैसे इलाकों में सबसे ज्यादा लोगों की नौकरियां छूटीं।

संकट से प्रभावित कई परिवारों के लिए भोजन हासिल करना भी मुश्किल हो गया। (Wikimedia Commons)

लॉकडाउन के दौरान और बाद के महीनों में, 61 प्रतिशत कामकाजी पुरुष कार्यरत रहे और 7 प्रतिशत ने रोजगार खो दिया और काम पर नहीं लौटे। महिलाओं के लिए, केवल 19 प्रतिशत ही कार्यरत रहीं और 47 प्रतिशत को लॉकडाउन के दौरान स्थायी नौकरी का नुकसान उठाना पड़ा और 2020 के अंत तक भी उनको रोजगार नहीं मिला।

रिपोर्ट से पता चला है कि कोविड की वजह से युवा श्रमिक सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। 15-24 वर्ष के आयु वर्ग में 33 फीसदी लोगों को दिसंबर 2020 तक रोजगार नहीं मिला जबकि 25 से 44 साल के बीच 6 फीसदी लोग रोजगार गंवा चुके थे।

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के उप-कुलपति, अनुराग बेहार ने कहा महामारी ने एक प्रणालीगत और नैतिक विफलता का खुलासा किया है, जो सबसे कमजोर है जो हमेशा हर चीज के लिए सबसे बड़ी कीमत चुकाती है। हमें इसे कोर से बदलना होगा।

रिपोर्ट से पता चलता है कि महामारी (Pandemic) ने अनौपचारिकता को और बढ़ा दिया है और अधिकांश श्रमिकों की कमाई में भारी गिरावट आई है जिसके परिणामस्वरूप गरीबी में अचानक वृद्धि हुई है। महिलाएं और युवा कार्यकर्ता असंतुष्ट रूप से प्रभावित हुए हैं।

संकट से प्रभावित कई परिवारों के लिए भोजन हासिल करना भी मुश्किल हो गया। इसका मुकाबला करने के लिए उनको उधार लेना पड़ा या परिसंपत्तियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकारी राहत ने संकट के सबसे गंभीर रूपों से बचने में मदद की , लेकिन समर्थन उपाय काफी साबित नहीं हुए।

रिपोर्ट के प्रमुख लेखक, अमित बसोले ने कहा अतिरिक्त सरकारी सहायता की अब दो कारणों से तत्काल आवश्यकता है – पहले वर्ष के दौरान हुए नुकसान की भरपाई और दूसरी लहर के प्रभाव की आशंका। इसमें निरंतर मुक्त राशन प्रदान करना, जून के बाद अतिरिक्त नकद हस्तांतरण, विस्तारित मनरेगा और शहरी रोजगार कार्यक्रम जैसे उपाय शामिल किए जा सकते हैं। (आईएएनएस-SM)

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com