क्या ‘भाग्यनगर’ का उपाय हैदराबाद को पसंद आया?

हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा 2 बड़ी पार्टी उभर कर आई। (Pixabay)
हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा 2 बड़ी पार्टी उभर कर आई। (Pixabay)

भारत में राजनीति कब किस मोड़ पलट जाए, यह कोई नहीं जानता। आज हवा इधर की तरफ तो कल उधर की। इस बार जनता ने अपने मिज़ाज को छुपा कर रखा और हैदराबाद नगर निगम चुनाव(GHMC) में अपने रुख को साफ़ कर दिया। भले ही वह रुख चुनाव के जरिए हो मगर हिंदुत्व का डंका जरूर बजा है। यह चुनाव इस नज़र से भी खास रहा क्योंकि हर पार्टी ने अपने बड़े चेहरों को चुनाव प्रचार में उतारा। भाजपा से अमित शाह, जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ जैसे धाकड़ चेहरे प्रचार के मैदान उतरे और भाजपा को 48 सीट जीताने में अहम भुमिका निभाई। वहीं असदुद्दीन ओवैसी, जिनका हैदराबाद मजबूत खेमा माना जाता है वह 44 सीट जीतकर तीसरी बड़ी पार्टी बन गई। और सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई सरकार में बैठी टीआरएस ने जिसने 55 सीट जीते।

भले ही यह नगर निगम का चुनाव था मगर हैदराबाद की जनता ने यह जता दिया है कि निज़ामी कट्टरता और उसकी हुकूमत हैदराबाद से जा चुकी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रचार के दौरान जिस तरह से हैदराबाद का नाम बदल कर प्राचीन नाम 'भाग्यनगर' रखने का प्रस्ताव रखा तब से ही देश में हिंदुत्व के विचारकों में नया जोश आ गया। सभी के द्वारा सोशल मीडिया माध्यमों से भाग्यनगर के प्रस्ताव का स्वागत किया गया, और कईयों ने 'भाग्यनगर' नाम होने के सबूत तक पेश किए हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण में कहा था "कुछ लोग मुझसे पूछ रहे थे कि क्या हैदराबाद का नाम फिर से भाग्यनगर हो सकता है? मैंने कहा क्यों नहीं. जब फैजाबाद का नाम अयोध्या हो सकता है, इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो सकता है तो हैदराबाद का नाम भाग्यनगर क्यों नहीं हो सकता।" 

गृहमंत्री अमित शाह का भाग्यलक्ष्मी मंदिर जाना इसी कड़ी का दूसरा पहलु था। क्योंकि हैदराबाद की शान चार मीनार को तो दुनिया के कई लोगों ने देखा था। मगर चार मीनार के साथ ही सटे भाग्यलक्ष्मी मंदिर को अनसुना कर दिया जाता रहा। कानूनी लड़ाई के बाद आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने मंदिर में किसी भी प्रकार के स्थायी निर्माण पर रोक लगा दिया। पुजारियों का दावा है कि यह मंदिर 800 साल पुराना है। दरअसल, कुछ लोग यह दावा भी करते हैं कि भाग्यनगर के नाम से ही भाग्यलक्ष्मी मंदिर का नाम पड़ा था।

हैदराबाद का इतिहास जो भी रहा हो किन्तु 2020 में भाजपा के लिए यह अहम चुनाव था। क्योंकि भाजपा अपना विस्तार दक्षिण भारत में भी करने की कोशिश कर रही है। हालाँकि गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई है वह भी तब, जब किसान आंदोलन अपने चरम पर है। लेकिन टीआरएस का इस चुनाव में इतने कम सीटें आने का यह कारण बताया जा रहा है कि उनके द्वारा किए गए कई वादों पर काम ही नहीं शुरू हुआ है। जिस वजह से हैदराबाद की जनता उनसे नाखुश है।

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