प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, सभ्यताओं ने जल प्रवाह को मोड़ने, सिंचाई करने और बिजली की आपूर्ति करने के लिए पानी का बड़े पैमाने पर उपयोग किया है। नई सोच और संरचनाओं के तहत बांधों का भी निर्माण किया गया। ताकि नदियों के पानी को कृषि के लिए इस्तेमाल किया जा सके। आपने कई बांधों के बारे में सुना होगा पढ़ा होगा जैसे, टिहरी बांध, सरदार सरोवर बांध (Sardar Sarovar Dam), हीराकुंड बांध आदि। लेकिन क्या आप जानते हैं कि विश्व का सबसे प्राचीन बांध कौन सा है और किस देश में स्थित है?
आइए जानते हैं उस प्राचीन बांध के बारे में-
आज से करीब 2000 साल पहले भारत, तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिला स्थित कावेरी नदी (Cauvery river) पर "कल्लनई बांध" (Kallanai Dam) का निर्माण किया गया था। यह बांध न सिर्फ भारत के बल्कि विश्व के सबसे प्राचीनतम बांधों में से एक है। इस बांध का निर्माण सिंचाई को बनाए रखने और विनियमित करने के किए बनाया गया था। पृथ्वी के जलमार्गों में इस सिंचाई प्रणाली ने कृषि में एक विश्वव्यापी क्रांति को जन्म दिया था। जिससे मानव आबादी, पशु-पक्षी और पर्यावरण के साथ-साथ सभी का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ। यह बांध भले ही कितना पुराना हो लेकिन आज भी इस बांध को सिंचाई कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है।
पहली शताब्दी में चोल वंश के राजा करिकल द्वारा कावेरी नदी पर इस बांध का निर्माण करवाया गया था। इस बांध को बनाने का कारण यह था कि कावेरी नदी की जलधारा बहुत तेज बहाती है और बरसात के मौसम में बाढ़ का खतरा भी उत्पन्न हो जाता है। इसी वजह से कावेरी नदी पर बांध का निर्माण कराया गया ताकि पानी की गति को थोड़ा कम किया जा सके और इसके पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके। 329 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा यह बांध उस समय जलमार्गों को नियंत्रित करने का ऐसा उपक्रम था जिसे दुनिया ने कभी नहीं देखा था।
जहां चोलों (Chola Dynasty) ने मनुष्य को पर्यावरण का निर्माता बनाने के लिए एक बेहतरीन ढांचे का आविष्कार किया था वहीं अंग्रेजों ने इस शक्ति का विशेष रूप से शोषण किया था। (Wikimedia Commons)
वर्ष 1804 में एक मिलिट्री इंजीनियर ने बांध का निरीक्षण करते हुए पाया था कि, अगर बांध की ऊंचाई को थोड़ा बढ़ा दिया जाए तो लोगों को सिंचाई के लिए और अधिक पानी मिल पाएगा। जिसके बाद बांध की ऊंचाई को 0.69 मीटर बढ़ाया गया। इससे जहां पहले केवल 69 हजार एकड़ जमीन की सिंचाई होती थी, वहीं अब करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है।
बांध से जुड़ी एक और घटना है जिसे जानना आवश्यक है-
जब ब्रिटिशों ने हम पर राज करना स्थापित किया तब ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी ने कावेरी डेल्टा और कावेरी नदी पर भी अपना नियंत्रण हासिल कर लिया था क्योंकि पानी की तेज धारा के कारण और हजार वर्षों से टीके इस बांध का कुछ भाग नष्ट हो गया था।
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जिसके बाद प्रमुख ब्रिटिश इंजीनियर सर ऑर्थर कॉटन (Arthur Cotton) को डेल्टा का अध्ययन करने के लिया कहा गया। और 1830 – 40 के बीच उन्होंने बांध को मजबूत करने के लिए एक योजना लागू की। इस योजना के लागू होने के बाद सिंचित डेल्टा में पानी की दरों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई। हालांकि ब्रिटिशों की मंशा कभी भी सही नहीं थी। चोलों द्वारा बनाए गए इस बांध में कुछ परिवर्तन कर कॉटन ने अविश्वसनीय सफलता जरूर अर्जित की थी। लेकिन चोलों द्वारा बनाए गए बांध के डिज़ाइन की जानकारी दुनिया के बाकी हिस्सों तक भी फैला दिया था और उन्होंने ही इस बांध को 'ग्रैंड एनीकट' (Grand Anicut Dam) नाम दिया और इसे 'वंडर्स ऑफ़ इंजीनियरिंग' कहा था।
जहां चोलों (Chola Dynasty) ने मनुष्य को पर्यावरण का निर्माता बनाने के लिए एक बेहतरीन ढांचे का आविष्कार किया था वहीं अंग्रेजों ने इस शक्ति का विशेष रूप से शोषण किया था।