Gautam Buddha ने सबको शामिल करके चलने का रास्ता चुना

Gautam Buddha ने सबको शामिल करके चलने का रास्ता चुना [Unsplash]
Gautam Buddha ने सबको शामिल करके चलने का रास्ता चुना [Unsplash]

न्यूज़ग्राम हिन्दी: Gautam Buddha ने जब अपनी आँखें खोलीं तो उनके पाँच साथियों के साथ ही पूरा संसार उनकी तरफ आशा की दृष्टि से देख रहा था, कि अब बुद्ध कुछ गंभीर उपदेश देंगे। कुछ ऐसा अनुभव सांझा करेंगे जो अंदर तक झकझोर देगा। पर उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा बल्कि उन्होंने खाना खाने की मांग की, जिससे उनके साथी निराश हो गए। बुद्ध ने ऐसा क्यूँ किया होगा, ये प्रश्न हर किसी के अंदर था। असल में Gautam Buddha को वह सब कुछ खुद में ही प्राप्त हो गया था जो वो बाहर ढूँढ़ रहे थे। पूर्णिमा की उस रात में चाँद सम्पूर्ण था, केवल आकार में ही नहीं, बल्कि रोशनी में भी। वह रात बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Poornima) के नाम से जाना जाता है, जिसे हर वर्ष मनाया जाता है। उन्हें उस रात आत्मज्ञान प्राप्त हुआ।

Buddha Poornima के दिन बुद्ध को प्राप्त हुआ आत्मज्ञान 

इस संसार में जो कुछ भी दृश्य या अदृश्य रूप से है, वो सब कुछ हमारे भीतर स्थित है। हर प्रश्न स्वयं में उत्तर के साथ हमारे भीतर ही प्रस्तुत है। इस तरह के विचारों के बीज उनमें प्रस्फुटित हो उठे थे, जो किसी सामान्य के लिए हजम करना थोड़ा मुश्किल है। तो, यहाँ कहा जा सकता है कि वो आत्मचिंतन और मनन करने वाले व्यक्तियों के मिसाल थे।

तृष्णा एक ऐसा शब्द है जिसमें दु:खों के लगभग सभी आयाम समाए हुए हैं। [Unsplash]
तृष्णा एक ऐसा शब्द है जिसमें दु:खों के लगभग सभी आयाम समाए हुए हैं। [Unsplash]

असल में Buddha तार्किक बुद्धि से ऊपर उठ चुके थे, इसलिए वो बुद्ध हैं। जो तार्किक बुद्धि के स्तर पर ही रहता है वह दु:खी रहता है और जो इससे नीचे हैं वो मूर्खों की श्रेणी में गिने जाते हैं। उस ध्यान की अवस्था में उन्हें समझ में आ गया था कि जो कुछ भी है वो ये जीवन है जिसकी बाधाओं को यदि हटा दिया जाए तो जीवन जीना अत्यंत सरल हो जाएगा। इसी आत्मबोध का हिस्सा था उनका ये कहना कि जीवन के दु:खों का मूल कारण हमारी तृष्णा है।

वैसे देखा जाए तो वास्तव में तृष्णा एक ऐसा शब्द है जिसमें दु:खों के लगभग सभी आयाम समाए हुए हैं। कोई किसी को खो देने से दु:खी है तो कोई किसी असफलता से, तो कोई किसी अन्य कारण से। पर मूल में देखें तो तृष्णा ही सबसे महत्वपूर्ण वजह है, जिसके कारण दुख का हमारे जीवन में प्रवेश होता है। इस क्रम में किसा-गौतमी (Kisa Gotami) की कथा काफी प्रसिद्ध है। एक ऐसी स्त्री जो सभी सांसारिक मोह को त्यागकर भिक्षुणी हो गई और बुद्ध के पदचिह्नों पर आगे बढ़ी।

तृष्णा ही सबसे महत्वपूर्ण वजह है सभी दु:खों का: Gautam Buddha

दरअसल एक बार बुद्ध किसी गाँव में प्रवचन देने के लिए पधारे। उसी गाँव में एक स्त्री के पुत्र की मृत्यु हो चुकी थी। उस महिला ने सुना कि कोई सिद्ध संत आए हुए हैं। वो तुरंत अपने बच्चे का शव लेकर महात्मा बुद्ध के पास पहुंची और रोते हुए मिन्नतें करने लगी कि उसके पुत्र को अपने चमत्कार से ठीक कर दें। पर बुद्ध ने ऐसा नहीं किया, जबकि शायद वो ऐसा कर सकते थे। बल्कि उन्होंने उस महिला से कहा, 'मैं आपके पुत्र को जीवित कर दूंगा, यदि आप किसी ऐसे घर से एक मुठ्ठी राई ले आयें, जिसके घर में आज तक कोई मृत्यु ना हुई हो।' वो महिला बिना सोचे वहाँ से राई लेने के लिए दौड़ी। उसे ऐसा कोई घर नहीं मिला जहाँ आज तक कोई मृत्यु नहीं हुई हो। वह निराश मन से बुद्ध के पास लौटी और कहा मैं समझ गई आप जो समझाना चाहते थे।

बुद्ध ने कहा इस दुनिया में हर किसी की मृत्यु एक न एक दिन होनी है, इसपर यदि हम सोचें कि उसे टाल दिया जाए तो यह एक मूर्खतापूर्ण सोच है। ऐसा नहीं था कि यह ज्ञान महिला को नहीं था पर सांसारिक जीवन में हमारे इर्द-गिर्द इतनी समस्याएं हैं जिनके चंगुल में हम आसक्त होते जाते हैं और यहीं से वो ज्ञान धूमिल होकर तृष्णा के कलेवर से ढँक जाता है।

किसीको भी दो तरीके से ही जीता जा सकता है 

बुद्ध वास्तव में एक सम्राट थे, जिसने अपनी इंद्रियों के निग्रह से लेकर योग की आठ विद्याओं पर जीत हासिल कर ली थी। एक ऐसे सम्राट जिनके अधीन अशोक जैसा सम्राट भी हो गया। बुद्ध कहते थे, व्यक्ति अथवा राज्य पर दो तरह से ही राज किया जा सकता है। या तो जीतकर या फिर शामिल करके। बुद्ध ने सबको शामिल करने का रास्ता चुना। और बुद्ध एक हद तक इसमें सफल भी हुए। कहते हैं वो पाँच साथी जो उन्हें छोड़कर चले गए थे वही उनके प्रथम पाँच शिष्य बने जिनको उन्होंने प्रथम बार वाराणसी के सारनाथ में प्रवचन दिया।

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