भारतीय भूमि वेद एवं पुराणों से सुसज्जित भूमि है। यहाँ की परम्पराएं भी तर्क से उत्तीर्ण हैं। महिलाऐं एवं पुरष पूजा स्थल पर मस्तक क्यों ढक कर रखते हैं इसका भी तर्क है और पूजा-पाठ के समय किस प्रकार के वस्त्र पहने जाते हैं उसका भी तर्क उपस्थित है। हिन्दू धर्म में सभी रीति-रिवाजों में तर्क और उसकी विशेषता उपस्थित है। किन्तु इन रीति-रिवाजों से लिब्रलधारी तबका सबसे अधिक चिंतित है, वह इसलिए क्योंकि इन सभी का चलन हाल के दिनों में बढ़ा है और अधिकांश नागरिक इन क्रियाओं के प्रति जागरूक हुए हैं। आइए जानते हैं वह पांच संस्कार जिनमें आध्यात्म भी है और वैज्ञानिक तर्क भी है।
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भारतीय संस्कृति में पैर छूकर आशीर्वाद लेना एक अहम रीति है। जिसका मजाक आज के आधुनिक युवा समय-समय पर उड़ाते हैं या इसे ढोंग कहते हैं। इस्लाम धर्म में तो इसे पाप करार दिया गया है। क्या आपको ज्ञात है कि हिन्दू धर्म में चरण स्पर्श करने का क्या महत्व है? यदि नहीं तो सुनिए, चरण स्पर्श करने से बड़ों के आशीर्वाद के साथ-साथ उनकी ऊर्जा भी हमारे भीतर समाहित होती है। इस तर्क को वेद एवं धार्मिक विद्वानों के साथ-साथ विज्ञान ने भी सिद्ध किया है।
विज्ञान के अनुसार, मानव शरीर में ऊर्जा की नकारात्मक और सकारात्मक दोनों धाराएं उपस्थित होती हैं। मानव शरीर के दाएँ भाग में धनात्मक अर्थात सकारात्मक और ऋणात्मक अर्थात नकारात्मक धाराएं प्रवाहित होती हैं। इसलिए दोनों धाराएं मिलकर एक परिपथ यानि सर्किट को पूरा करती हैं। और जब हम चरण स्पर्श करते हैं तब उनकी ऊर्जा हमारे भीतर भी समाहित हो जाती है।
कुछ समय पहले नमस्ते या हाथ जोड़कर अभिवादन करना आधुनिक युग के लिए 'Old Fashion' हो गया था। किन्तु जब सभी को महामारी का ज्ञात हुआ तब बड़े से बड़े नेता और अभिनेता ने भी हाथ-जोड़कर अभिवादन करने के क्रिया को अपना लिया। आज अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी नमस्ते करते हुए बड़ी-बड़ी हस्तियां दिखाई देती हैं। किन्तु क्या आप जानते हैं कि हाथ जोड़कर नमस्ते करने का क्या महत्व है? यदि नहीं तो सुनिए, नमस्कार मुद्रा में आप दोनों हथेलियों को एक साथ जोड़ते हैं और इसी दबाव से उन दबाव-केंद्रों पर भी जोर पड़ता है जिनसे हम कई तरह बिमारियों से मुक्त होते हैं। नमस्कार मुद्रा एक्यूप्रेशर का सबसे प्राचीनतम इस्तेमाल में लाए जाने वाली रीति है। यदी हम नमस्कार को आध्यात्मिक नजरिये से देखेंगे तो इसमें काफी समय लग जाएगा वह इसलिए क्योंकि इसके पीछे दिया गया तर्क लम्बा है।
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बड़े-बुजुर्गों द्वारा कहा गया है कि ललाट पर तिलक मुख के तेज को अधिक रूप देता है। तिलक वह आशीर्वाद है जिसका केंद्र-बिंदु ही अध्यात्म है। किन्तु लिबरल युग में तिलकधारी को 'पंडित' या अन्य नाम से बुलाते हैं। ऐसा नहीं है कि केवल पुरोहित या साधु-संत ही तिलक धारण करते हैं। इसे कोई भी व्यक्ति जो ईश्वर में विश्वास रखता है वह धारण कर सकता है। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी उपस्थित है कि, कपाल के मध्य में दो भौंहों के बीच एक छोटा सा स्थान होता है; इस स्थान को हमारे शरीर में एक प्रमुख तंत्रिका बिंदु कहा जाता है। कुमकुम, चंदन या लाल तिलक लगाने से शरीर में ऊर्जा बनी रहती है और एकाग्रता के विभिन्न स्तरों को नियंत्रित किया जा सकता है। एक और कारण यह भी है कि जब हम माथे के बीच में कुमकुम या चंदन का तिलक लगाते हैं, तो हम स्वचालित रूप से अदन्य-चक्र दबाते हैं; यह हमारे चेहरे की मांसपेशियों में रक्त की आपूर्ति को सक्रिय करता है।
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आध्यात्मिक स्थान जैसे मंदिर, गुरूद्वारे इत्यादि जगहों पर प्रशाद, भोज या लंगर जमीन पर बैठाकर ही कराया जाता है। यह वह स्थान होता है जहाँ किसी की जेब या हैसियत मायने नहीं रखती है, बस महत्वपूर्ण है आपकी आस्था और ईश्वर के प्रति आपका लगाव। जमीन पर बैठकर खाना खाने का चलन सनातन धर्म में प्राचीन काल से देखा जा रहा है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि, जमीन पर बैठने के लिए हम सुखासन का प्रयोग करते हैं जो हमारे पाचन तंत्र को सुचारु रूप से चलाने में मदद करता है और पाचन क्रिया को मजबूत करता है। किन्तु आज के समय में इस क्रिया की कमी ही कई बिमारियों का कारण है।
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सभी हिन्दू घरों में माता-पिता या दादा-दादी अपने बच्चों को गायत्री मंत्र का उच्चारण जरूर सिखाते हैं। यह केवल मंत्र उच्चारण नहीं है बल्कि इससे स्वास्थ्य में अत्यधिक वृद्धि होती है। एक वैज्ञानिक शोध में यह सामने आया था कि गायत्री मंत्र के जाप से प्रति सेकंड लगभग 110,000 विभिन्न प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं। यह थी बात गायत्री मंत्र की किन्तु 'ओम-ॐ' उच्चारण भी कई बिमारियों को दूर करता है। ॐ के उच्चारण से बीपी यानि रक्तचाप नियंत्रण में रहता है और स्वांस पर पकड़ मजबूत होती है। ॐ उच्चारण एकाग्रता एवं सतर्कता दोनों के लिए लाभदायक है।