'Lata Mangeshkar' भारतीय एवं अंतराष्ट्रीय मंच पर एक बहतरीन गायिका के रूप में जानी जाती हैं। अब तक उन्होंने लगभग 25000 से ज्यादा गाने अलग-अलग भाषाओं में गाएं हैं। किन्तु उन्होंने एक साक्षात्कार में यह बताया था कि एक समय ऐसा भी आया था जब उन्हें अपने नाम को सबके सामने लाने के लिए भी लड़ना पड़ा था। 'नसरीन मुन्नी कबीर' द्वारा लिए गए साक्षात्कार में लता मंगेशकर ने बताया कि उन्होंने गाने और रिकॉर्डिंग के लिए कितनी मेहनत की। Lata Mangeshkar बताती है कि "मैंने कड़ी मेहनत की, सुबह से लेकर रात तक गाने रिकॉर्ड किए। एक स्टूडियो से दूसरे में भागी। मुझे इसके(गाने) इलावा कुछ भी करने का कभी मन नहीं किया। मैं पूरा दिन भूखा रहती, क्योंकि मुझे पता भी नहीं था कि रिकॉर्डिंग स्टूडियो में कैंटीन भी होते हैं और मैं कुछ खाने के लिए खरीद सकती हूँ। मैं अक्सर पूरे दिन बिना खाना और पानी के रह जाती थी। अगर किसी ने बता दिया कि स्टूडियो में एक कैंटीन है, तो मैं कुछ खा लेती थी। केवल यही सोचा करती थी कि किसी भी तरह से मैं अपने परिवार देखभाल करूँ।"
जब लता मंगेशकर(Lata Mangeshkar) से उनके वित्तीय स्थिति के विषय में पूछा गया तब उन्होंने बताया कि "मैं यह नहीं कह सकती कि मेरी वित्तीय स्थिति अच्छी थी, लेकिन मेरे लिए तो यह बुरा भी न था, क्योंकि मेरे पास बहुत काम था। हमने नानाचौक में उन्हीं दो कमरों में रहने का फैसला किया, जहां प्रफुल्ला पिक्चर्स ने पहले हमें रखा था। मैंने वहां किराया देना शुरू कर दिया।" वह आगे बतातीं हैं कि "1952 और 1960 के बीच, हम वलकेश्वर में एक तीन बेडरूम के फ्लैट में रहते थे, जिसे हम खरीदने में सफल रहे।" यह पहली बार था जब उनके पास अपना खुद का अलग कमरा था। उन्होंने 1960 में वलकेश्वर में फ्लैट बेचा और पेडर रोड पर प्रभु कुंज में पहली मंजिल का फ्लैट खरीदा और तब से यहीं रहते हैं।"
उन्होंने यह भी बताया कि वह कमाई के पूरे पैसे 'माई(माँ)' को लाकर दे देती थीं। उनकी माँ घर चलातीं और जितना बच पाता उतना बचा लेतीं। ज़्यादा काम होने के बावजूद भी, उन्हें समय पर पैसे नहीं मिलते थे। कुछ निर्माताओं ने पैसों को रोक भी दिया था। लता मंगेशकर ने कहा कि "कई बार हमें पैसे दिए भी नहीं जाते थे। हम गायकों ने तब फैसला किया कि हमें उसी समय पैसों का भुगतान किया जाना चाहिए। सच तो यह है कि, पैसा मेरे लिए उतना मायने नहीं रखता था क्योंकि उन दिनों हमने जो गाने गाए थे, उससे मुझे बहुत खुशी मिली थी।"
लता मंगेशकर ने अपने काम के दिनों याद करते हुए बताया कि "1948 में, मैं महल, बरसात, अंदाज़, दुलारी, बड़ी बहन और गर्ल्स स्कूल में काम कर रही थी, एक फ़िल्म जिसका संगीत अनिल विश्वास ने बनाया था उसमे काम कर रही थी- ये फ़िल्में 1949 में रिलीज़ हुई थीं। इसलिए बहुत काम चल रहा था और अच्छा भी चल रहा था।" इतने व्यस्त दिनचर्या होने की वजह से वह सुबह में दो गाने, दोपहर में दो, शाम को दो और रात में दो गाने रिकॉर्ड किया करती थीं। वह सुबह घर से निकलतीं और अगले दिन सुबह 3 बजे वापस आतीं और तब जाकर खाना खाती थीं। कुछ घंटों की नींद के बाद, फिर छह बजे सुबहे उठती, ट्रेन पकड़ती और एक रिकॉर्डिंग स्टूडियो से दूसरे में जाया करती। वह कहती हैं कि "हम युवा थे, इसलिए हम कड़ी मेहनत कर सकते थे। शायद आज यह संभव नहीं है।"
(Wikimedia Commons)
लता मंगेशकर गीत को याद रखने के सवाल बताती हैं कि "उन दिनों में, अधिकांश संगीत निर्देशकों ने हमें अपने संगीत कक्ष या किराए के हॉल में बुलाया, जहां हमने रिकॉर्डिंग सत्र से दो या तीन बार पहले गाने की रिहर्सल की। इसलिए, किसी भी दिन, हम नौशाद साहब या अनिल बिस्वास के दो गीतों को रिकॉर्ड करने के लिए तैयार थे। लेकिन गानों को हमेशा पहले से रिहर्सल किया गया था।"
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लता मंगेशकर ने बताया कि उस समय प्लेबैक गायकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। निर्माता सोचते थे 'उन्हें रिकॉर्ड करने दो, भुगतान करो और जाने दो।' और कहानी खत्म। एक घटना को याद करते हुए वह बताती हैं कि 'आएगा आनेवाला' के रिकॉर्ड में लेबल पर गायिका की सूचि में कामिनी का नाम है। यह 'महल' में मधुबाला का स्क्रीन नाम था। जिस वजह से वह परेशान हो गईं कि उनके नाम कहीं भी प्रदर्शित नहीं किए जाते। उन्होंने बताया कि "मुझे ऐसा करने के लिए लड़ना पड़ा और हम निर्माताओं से पूछते रहे कि आप हमें श्रेय क्यों नहीं देते?" उसके बाद पहली बार उनके नाम स्क्रीन पर और डिस्क पर 1949 में दिखाई दिए। और उसी वर्ष दो अन्य फिल्मो में भी लता मंगेशकर के नाम आए जिनमे अंदाज़ और बड़ी बहन शामिल थे। बरहाल, 'आयेगा आनेंवाला' 'इतना लोकप्रिय हो गया कि रेडियो स्टेशन को हजारों अनुरोध पत्र आने लगे। लोग यह पूछते हुए लिखा करते थे कि 'यह गाना कौन गा रहा है? हम उसका नाम जानना चाहते हैं।' जिस वजह रेडियो पर भी घोषित किया गया कि 'यह गीत लता मंगेशकर द्वारा गाया गया है।'
लता मंगेशकर उन दिनों के स्टूडियोज़ को याद करते हुए बताया कि "उन दिनों इतने स्टूडियो नहीं थे और जो प्रसिद्ध और मुख्य थे वह सब तारदिओ(मुंबई में एक जगह) में थे। महालक्ष्मी में भी प्रसिद्ध स्टूडियो थे। उन्होंने बताया कि स्टूडियो में रिकॉर्डिंग के लिए छोटे हॉल थे। गोरेगांव में फिल्मिस्तान के पास एक छोटा रिकॉर्डिंग स्टूडियो भी था, हालाँकि कई मौकों पर बड़े स्टूडियो फ्लोर पर भी रिकॉर्ड करने का मौका मिला। यहां तक कि फिल्मिस्तान के अपने प्रोडक्शंस, नागिन और अनारकली के गाने, जो बेहद सफल फिल्में थीं, एक स्टूडियो स्टेज पर रिकॉर्ड किए गए थे।
अंत में लता मंगेशकर बताती हैं कि "जब दिन की शूटिंग समाप्त हो जाती थी और सभी लोग चले जाते थे, तो हम स्टूडियो फ्लोर पर जाकर और रातभर रिकॉर्ड किया करते थे। जगह धूल से भरी हुई होती थी, लाइटें भी गर्म जल रही थीं। पंखों से आवाज़ बहुत आता था इसलिए उसे भी नहीं चलाते थे। मैंने मुश्किल और कठोर स्थितियों में इतने सारे गाने रिकॉर्ड किए हैं।"
स्रोत: The Print