टिकटॉक को 30 करोड़ तो क्या 30 रुपये भी वापस नहीं करेगा भारत, विधवा विलाप छोड़े विपक्ष: ओपिनियन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Image: Wikimedia Commons) *Representational Image*
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Image: Wikimedia Commons) *Representational Image*

टिकटॉक समेत 59 चीनी ऐप पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, लेफ्ट-लिब्रल वामपंथी समुदाय में जिस प्रकार का हाहाकार मचा है उसे देख कर अत्यंत सुख की अनुभूति हो रही है। ये देख कर समझ आ रहा है की सरकार का निशाना बिलकुल सही जगह लगा है। ये विधवा विलाप तो ऐसे कर रहे हैं, जैसे टिकटॉक इनके पूज्य पिताजी की कंपनी थी। हाँ, वांपथियों की बात करें तो, चीनी कंपनी के लिए पिताजी वाली बात कहना ज़्यादा गलत भी नहीं होगा। 

ग़ौरतलब है की कोरोना से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा स्थापित किए गए, PMCares फ़ंड में टिकटॉक ने 30 करोड़ रुपये का दान किया था। ये दान उस वक़्त किया गया था, जब भारत, चीन से सीमा विवाद में नहीं बल्कि चीन द्वारा ही फैलाये गए कोरोना वायरस से जंग लड़ रहा था। उस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर देश में काम कर रहे लगभग सभी उद्योगपतियों ने PMCares फ़ंड में अपने स्वेक्षा और अपनी क्षमता अनुसार दान किया था। 

प्रधानमंत्री के आह्वान पर बाकी उद्योगपतियों के माफ़िक टिकटॉक ने भी 30 करोड़ का दान किया था। लेकिन कल, भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बाद, टिकटॉक या चीन के तरफ से जितने बयान नहीं आए, उससे ज़्यादा हंगामा, भारत के वामपंथी, और विपक्षी पार्टियों ने मचा दिया है। 

इन सभी लोगों का कहना है की, मोदी सरकार का इन चीनी कंपनियों से करोड़ों दान ले कर उन पर प्रतिबंध लगाना गलत है, अर्थात मोदी सरकार को पैसा वापस लौटा देना चाहिए।

सवाल ये है की आखिर हम क्यूँ लौटाएँ ये पैसे? भारत सरकार ने 30 करोड़ ले कर टिकटॉक के साथ ना कोई करार किया था, और ना ही उस पैसे के बदले में किसी भी प्रकार का फायदा पहुंचाने का वादा। बीते कई सालों में टिकटॉक जैसे चीनी ऐप ने भारत के बाज़ार में अरबों रुपये छापे हैं, और उस हिसाब से उनका 30 करोड़ का ये दान, एक समुद्र में बूंद के बराबर भी नहीं है। 

सीमा पर विवाद शुरू हुआ तो इन्होने कह दिया की, सरकार को चीनी कंपनियों से लिए गए दान को भी वापस कर देना चाहिए। इसके लिए ज़ोरदार हंगामा भी किया गया। तर्क था की, इनसे पैसे लेकर सरकार चीन से साँठ-गाँठ  कर रही है। लेकिन इसके उलट, सरकार ने, भारत में उनका धंधा ही चौपट कर दिया। सरकार के इस निर्णय से विपक्ष का 'साँठ-गाँठ' वाला ढ़ोल तो फट गया, तो ये अलग सुर अलापने लगे। अब ये कहने लगे की, "देखो पैसे लेकर बैन कर दिया, कितना गलत किया"। अरे भाई, तो इन्हे पेट में तकलीफ़ क्यूँ हो रही है? कोई इनके जेब से तो पैसे नहीं लिए ना। चूना, दुश्मनों को लगाया है, और तकलीफ़ इन्हे हो रही। ये रिश्ता क्या कहलाता है? इन्हे तो खुश होना चाहिए की हमारे देश से जिन्होंने टकराने की हिम्मत की, उनसे हमने दान भी लिया और उल्टा उनपर चढ़ाई भी की। लेकिन ये दुखी हो गए, विधवा विलाप करने लग गए। 

कहने लग गए की, "मोदी जी ने चीटिंग की है।" अरे मेरे भाई, जिस कंपनी ने दान किया, उसका आधिकारिक बयान तो आया नहीं, लेकिन तुम बड़े उनके वकील और प्रवक्ता बने घूम रहे हो। और हाँ, तुम चीटिंग कह रहे, तो चीटिंग ही सही। चीन जैसे धूर्त देश के साथ क्यूँ ना करें ऐसा बर्ताव? 30 करोड़ क्या 30 रुपये वापस नहीं किया जाना चाहिए। अब टिकटॉक के लिए इंसाफ़ मांगते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा मत खुलवा देना? जी प्रशांत भूषण साहब, आपकी ही बात कर रहा हूँ।  

इसी क्रम में एक आल्ट न्यूज़ के संस्थापक प्रतीक सिन्हा हैं, जिन्होंने सरकार से सवाल किया है की, "आखिर किस आधार पर इन 59 ऐप पर प्रतिबंध लगाए गए हैं"।  उनका कहना है की, अगर ये देश की सुरक्षा से जुड़े कारणों के वजह से लिया गया निर्णय है तो बाकी देशों ने इन ऐपों पर अब तक प्रतिबंध क्यूँ नहीं लगाया है।
प्रतीक सिन्हा जी, बात इतनी सी है की, भारत ने दुनिया भर के देशों का ठेका अपने सर नहीं ले रखा है, और ना मोदी जी पूरी दुनिया के प्रधानमंत्री हैं। ज़्यादा तकलीफ़ है तो आप उन देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों से ये सवाल करने के लिए आज़ाद हैं। उम्मीद करता हूँ की आपको जवाब मिल जाए, और मिलना भी चाहिए। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की आप जैसे महान व्यक्तित्व के सवाल का जवाब देने में दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष गौरवान्वित महसूस करेंगे। 

आम आदमी पार्टी के नेता, संजय सिंह ने भी हमेशा की तरह इस निर्णय पर भी राजनीति करने की कोशिश की है।

आमतौर पर इन लोगों को सरकार के द्वारा लिए गए हर निर्णय से तकलीफ़ है। सरकार अगर बैन न कर, दूसरे देशों की कार्यवाही का इंतज़ार करती, तो यही लोग कहते की, सरकार देश को ताक पर रख कर सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है। सरकार को गैर जिम्मेदार और चीनी एजेंट बताया जाता। अब जब बैन लगा दिया है तो, ये पूछ रहे हैं की, "बाकी देशों ने तो नहीं लगाया आपने क्यूँ लगा दिया"। चित भी इनकी पट भी इनका। इनको समझाते-समझाते आपका सर फट जाए, लेकिन ये ना समझने वाले।  

भारत का विपक्ष इस निर्णय पर कितना भी विधवा विलाप कर ले, लेकिन जिन्हे तकलीफ पहुंचानी थी, उन्हे पहुँच चुकी है। चीन के विदेश मंत्रालय के बयानों से चीन की स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। भारत ने इस प्रतिबंध के जरिये ये स्थापित कर दिया है की, ज़रूरत पड़ने पर भारत, चीन के खिलाफ कड़े निर्णय लेने से पीछे नहीं हटेगा।

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