संविधान में उल्लेख नहीं, तो क्यों पार्टियां अस्तित्व में हैं?

Dr. N Bhaskar Rao सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के संस्थापक अध्यक्ष हैं। (Canva)
Dr. N Bhaskar Rao सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के संस्थापक अध्यक्ष हैं। (Canva)
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The Constitution is 'We The People', not 'We The Party'. – Dr. N Bhaskar Rao.

NewsGram की तीन सदस्यीय टीम, Dr. Munish Raizada, Jyoti Shukla और Swati Mishra, नई दिल्ली अशोक विहार स्थित CMS (Centre for Media Studies) के संस्थापक अध्यक्ष Dr. N Bhaskar Rao के इंटरव्यू के लिए पहुंचती है। इस देश की राजनीतिक व्यवस्था और उससे संबंधित कई मुद्दों पर बातचीत करती है। आइए पहले जानते हैं कि, कौन हैं डॉ. एन भास्कर राव।

Dr. N Bhaskar Rao सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (CMS) के संस्थापक अध्यक्ष हैं। वह भारत में सामाजिक अनुसंधान में अग्रणी हैं और करीब 40 वर्षों से अधिक की विशिष्ट पृष्ठभूमि के साथ एक प्रख्यात जन संचार विशेषज्ञ हैं। विभिन्न विषयों पर अपने असंख्य शोध अध्यनों के साथ भारत में एप्लाइड सोशल साइंस रिसर्च को जन्म देने का श्रेय भी डॉ. राव को ही जाता है। डॉ. राव ने सरकार और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ वरिष्ठ सलाहकार पदों पर भी कार्य किया है।

आइए अब डॉ. एन भास्कर राव के विचारों के जरिए समझते हैं उन महत्वपूर्ण मुद्दों को, जिनको राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए सालों से नजरंदाज किया जा रहा है।

ज्योति शुक्ला: डॉ. एन भास्कर राव जी, कुछ अपने बारे में बताइए।

डॉ. भास्कर राव: मैं सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में कार्यत हूं। मैंने शासन – प्रशासन के मुद्दों पर कई किताबें लिखी हैं। अभी हाल ही में मैंने अपनी दो किताब Rejuvenating Republic and Next big game Changer for election in India उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को भेट की हैं। जिनमें नागरिक सक्रियता, सुशाशन, गणतंत्र का कायाकल्प और शासक की तीसरी आंख जैसे प्रस्तावों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

डॉ. मुनीश रायजादा: भारतीय संविधान में दलीय व्यवस्था का या राजनीतिक पार्टियों का उल्लेख नहीं किया गया है। फिर आखिर कैसे यह पार्टियां आज राजनीति में इतनी सक्रिय हैं?

डॉ. भास्कर राव: यह अपने आप में दिलचस्प बात है कि संविधान में कहीं भी दलीय व्यवस्था का या राजनीतिक पार्टियों का उल्लेख नहीं किया गया है लेकिन फिर भी आज यह पार्टियां अस्तित्व में हैं और आज हर जगह इनका वर्चस्व है। गांधी जी ने कहा था कि राजनीतिक दल, आने वाले समय में भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरेंगे। यहां तक की संवैधानिक समूह के सदस्य और डॉ. भीम राव अंबेडकर ने भी कभी इस बात पर जोर नहीं दिया की राजनीतिक दल होना चाहिए, उन्होंने यह जरूर उल्लेख किया था कि चुनाव होना चाहिए लेकिन इसके लिए राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज इस विषय पर कोई बात नहीं करता है। लेकिन मेरा मानना है कि इस विषय पर बात करना जरूरी है क्योंकि आज सभी समस्याओं की जड़ राजनीतिक पार्टियां/दल है। आज आप राजनीतिक दल के बिना कोई काम नहीं कर सकते हो और यह अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है। मेरी यह किताब Next – Big Game Changer for election in India इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करती है।

आज आप राजनीतिक दल के बिना कोई काम नहीं कर सकते हो और यह अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है। मेरी यह किताब Next – Big Game Changer for election in India इसी विषय पर विस्तार से चर्चा करती है।

स्वाती मिश्रा: जब संविधान में लिखित नहीं है कि राजनीतिक दल होना चाहिए तो ये राजनीतिक दल आखिर हैं क्यों? क्या कभी किसी ने इस बात को चुनौती नहीं दी?

डॉ. भास्कर राव: राजनीतिक पार्टियां ही सभी समस्या की जड़ हैं, जब तक लोगों को यह बात समझ में आई तब तक राजनीतिक पार्टियां लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हावी हो चुकी थी। आपको याद हो तो 'संसद' पहले चुनाव के बाद ही अस्तित्व में आया था। और अगर अब आप कोई परिवर्तन लाना भी चाहते हो तो उसे संसद में बैठे लोग ही संशोधित करेंगे। लेकिन संसद में जो लोग आज बैठे हैं, वो हैं कौन? वो सब यही राजनीतिक दल ही तो हैं। संसद में भी जब यही लोग हैं तो इस बात को चुनौती देगा कौन? कौन संशोधन करेगा? कोई भी नहीं। आप, मैं, और हमारे जैसे लोग ही इसे चुनौती दे सकते हैं। जनता को बता सकते हैं की "राजनीतिक दल कैसे देश के लिए एक विलन बनते जा रहे हैं।"

डॉ. मुनीश रायजादा: Party less democracy या Party less election पर आपकी क्या राय है?

डॉ. भास्कर राव: मैं आपको बताना चाहूंगा की Party less democracy और Party less election के बीच केवल थोड़ा ही अंतर है। अगर आपके पास पार्टी लेस डेमोक्रेसी है तो पार्टी लेस इलेक्शन को हासिल करना बहुत आसान हो जाता है। मेरे यह मानना है कि हम राजनीतिक दलों को रहने दे सकते हैं लेकिन चुनाव पार्टी रहित होना चाहिए। हम इस जड़ बन चुकी व्यवस्था में धीरे – धीरे ही आगे बढ़ सकते हैं। हम अचानक से सभी बदलाव नहीं ला सकते। पहला और जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यही है कि हमें राजनीतिक दलों को कम करना होगा। इस जड़ बन चुकी व्यवस्था को तोड़ना होगा। भारत में जितने भी राजनीतिक दल हैं वह केवल अपने लिए काम कर रहे हैं, ना की जनता के लिए। और इस बात को जनता तक पहुंचाना और उन्हें समझाना बहुत जरूरी है। "It's like Frog and Snake, frog is the people and snake is the party and Frog is already in snake's mouth." तो सबसे पहले जनता को ही लोकतंत्र का सही मतलब समझना होगा। यह सोच, की 'हम' बदलाव नहीं ला सकते या सिविल सोसाइटी बदलाव नहीं ला सकती ये तथ्य ही गलत है। अगर कहीं से भी बदलाव की आवाज नहीं उठी, तो आगे चल कर केवल इन पार्टियों का ही राज होगा। तो मानसिकता को बदलना होगा और अपने–अपने स्तर पर सभी को प्रयास करना होगा। तभी इस देश में बदलाव की एक लहर को कायम किया जा सकता है।

डॉ. मुनीश रायजादा: आपको क्या लगता है, क्या राजनीतिक बदलाव लाया जा सकता है?

डॉ. भास्कर राव: मैं कहूंगा की मुझे इस क्षेत्र में काम करते 50 वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं। मैंने इस विषय पर बहुत शोध किए हैं, सोचा है। लोगों से बातचीत करके समझने का प्रयास किया है और अब मेरा इतने वर्षों का रिसर्च कहता है कि 'बदलाव' लाया जा सकता है। मेरा यह भी मानना है कि हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी जी जैसे लोग हैं, जो इस विषय पर बातचीत करते हैं, राजनीतिक सुधारों के विषय में भी बात करते हैं। इसके अलावा उनके पास बहुत से विचार भी हैं, तो मेरा मानना है कि अगर प्रयास किया जाए तो बदलाव लाया जा सकता है। और एक और महत्वपूर्ण बिंदु है जो मैं कहना चाहूंगा कि "The best hope is the people, who are not in the grip of the Party." सबसे ज्यादा शक्तियां जनता के हाथ में है इस तथ्य को जनता को समझना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, तभी आने वाले समय में बदलाव की लहर को उच्च स्तर तक ले जाया जा सकता है।

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