भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी- दिल्ली) और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) सात सहयोगी परियोजनाओं पर काम करने के लिए एक साथ आए हैं। इन परियोजनाओं के लिए दोनों संस्थानों के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। आईआईटी-दिल्ली और आयुर्वेदिक संस्थान के परस्पर सहयोग से कैंसर जैसी बीमारी के विषय में भी शोध किया जाएगा। प्रारंभिक स्तर पर कैंसर का पता लगाने और स्तन कैंसर में आयुर्वेदिक दवाओं की प्रतिक्रिया का आकलन किया जाएगा।
आईआईटी-दिल्ली के निदेशक रामगोपाल राव ने सहयोगी परियोजनाओं के कहा, "पारंपरिक ज्ञान का प्रौद्योगिकी से समामेलन करके बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होने की उम्मीद है। पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों की मान्यता महत्वपूर्ण है। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ता इस पर ध्यान केंद्रित करेंगे और आयुर्वेद संस्थान संकाय के साथ मिलकर सत्यापन के पहलू पर काम करेंगे।"
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इसके तहत आयुर्वेद में अंर्तविषय अनुसंधान के दौरान इंजीनियरिंग विज्ञान सिद्धांतों को लागू किया जाएगा। आईआईटी-दिल्ली और अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान जिन विषयों पर काम करेंगे, उनमें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्राव पर छह आयुर्वेदिक रसों (स्वाद) का प्रभाव जांचना। हर्बल योगों का विकास कर खाना पकाने के तेल के फिर से उपयोग में हानिकारक प्रभावों को कम करना। एक बायोडिग्रेडेबल, हर्बल घाव ड्रेसिंग विकसित किया जाएगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी- दिल्ली) । ( Wikimedia Commons )
इसके अलावा तंत्रिका तंत्र पर 'ब्रह्मरी प्राणायाम' के प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा। न्यूरोडीजेनेरेटिव में फंसे प्रोटीन पर भस्मास के प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा। एक 'धूपन-यंत्र' विकसित करके घाव भरने की सहायता के लिए एक धूमन उपकरण विकसित किया जाएगा।
नई दिल्ली स्थित एआईआईए की निदेशक प्रो. तनुजा केसरी ने कहा, "दोनों संस्थानों का लक्ष्य विकास करना है। आयुर्वेदिक निदान और उपचार के मूल सिद्धांतों की गहरी समझ से नवीन नैदानिक उपकरण और उपकरण विकसित करना है।" गौरतलब है कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी ज्ञात चिकित्सा प्रणालियों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। पिछले एक दशक में, आयुर्वेद के सत्यापन में नए सिरे से रुचि पैदा हुई है। (आईएएनएस)