ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में कोरोनावायरस के 20 से अधिक प्रकार-भेद मिले हैं। संख्या ज्यादा होने की वजह से वैज्ञानिक समुदाय की सतर्कता बढ़ी है। अब इजराइल, मलेशिया और चीन के हांगकांग में ब्रिटेन से आये प्रकार-भेद मिले हैं। अफ्रीकी रोग रोकथाम केंद्र ने कहा कि नाइजीरिया में संभवत: ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका से अलग प्रकार-भेद मिला है। गंभीर स्थिति के मद्देनजर स्विट्जरलैंड, मैक्सिको, जर्मनी, इटली आदि देशों ने बड़े पैमाने पर वैक्सीन लगाने की योजना बनायी है। क्या वर्तमान कोरोना वैक्सीन प्रकार-भेद की रोकथाम कर सकते हैं, इसपर लोगों का ध्यान केंद्रित है।
सिंगापुर के न्यूज एशिया ने टिप्पणी की कि क्या वैक्सीन और वायरस मेल खाते हैं, यह वैज्ञानिकों के सामने मौजूद दीर्घकालीन चुनौती है। चाहे पूरी तरह मेल नहीं खाते, तो वैक्सीन फिर भी बीमारी पड़ने की संभावना या गंभीरता को कम कर सकता है। इसलिए वैज्ञानिक अनुसंधान करना एकमात्र उपाय है।
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कोरोना वैक्सीन । (Unsplash)
चीन कोरोना वैक्सीन के अनुसंधान में दुनिया के पहले स्थान पर है। चीनी वैक्सीन हमेशा व्यापक ध्यान आकर्षित करते हैं। स्थानीय समानुसार 23 दिसंबर को ब्राजील के साओ पाउलो स्टेट और बुटैन टैन संस्थान ने न्यूज ब्रीफिंग में कहा कि सभी परीक्षण में चीनी वैक्सीन सबसे सुरक्षित और कारगर है।
ब्राजील 15 दिनों में चीनी वैक्सीन के डेटा जारी करेगा। लेकिन पश्चिमी मीडिया ने बढ़ा-चढ़ा कर कहा कि यह अपारदर्शी है। वास्तव में चीनी वैक्सीन कंपनी बस ब्राजील, इंडोनेशिया और तुर्की में मिले डेटा इकट्ठा कर परिणाम जारी करना चाहती है, क्योंकि एक वैक्सीन के तीन परिणाम नहीं होने चाहिए। यह बिलकुल सामान्य है। फाइजर ने ब्राजील समेत बहुत-से देशों के स्वयंसेवकों में क्लिनिकल परीक्षण किया, डेटा अंत में एकीकृत तरीके से जारी किया जाता है। इसलिए चीनी वैक्सीन पर पश्चिमी मीडिया के कालिख का कोई मतलब नहीं है। (आईएएनएस)