हो गए बरस हिन्दुओं की मौत को, ‘आज’ पूछता है इतिहास क्या था?

बांग्लादेश में हुए नरसंहार के बाद मिले कंकाल।(Wikimedia Commons)
बांग्लादेश में हुए नरसंहार के बाद मिले कंकाल।(Wikimedia Commons)

अंग्रेजों द्वारा किए गए भारत के विभाजन के बाद, पाकिस्तान भी दो तरफ बंट चुका था। एक तरफ था पूर्वी पाकिस्तान जो कि आज का बांग्लादेश है और पश्चिमी पाकिस्तान जो कि असल पाकिस्तान है। किन्तु 1971 में भारतीय सेना और पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति बहिनी के प्रहार से पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। यह लड़ाई 26 मार्च 1971 को शुरू हुई थी जिसका परिणाम 16 दिसम्बर 1971 निकला। आज हम बांग्लादेश की आजादी पढ़ते हैं, भारतीय सेना के पराक्रम को कइयों बार सुनाया गया है। किन्तु पूर्वी पाकिस्तान का एक ऐसा भी काला अतीत है जिस से हमें कोसों दूर रखा गया। वह है 'करोड़ों बंगाली हिन्दुओं का नरसंहार' जिसे पाकिस्तान की सेना द्वारा अंजाम दिया गया था।

पाकिस्तानी सेना का यह घिनौना कृत्य 26 मार्च की लड़ाई के साथ ही शुरू हो गया था। जिस वजह से मार्च के अंत तक 15 लाख हिन्दू अपने घरों से विस्थापित हो गए थे या कराए जा चुके थे। और दिसंबर के अंत तक एक 1 करोड़ बंगाली हिन्दुओं को अपना बसेरा छोड़ना पड़ा। इनमे से अधिकांश वह बंगाली-हिन्दू थे जो भारत में शरणार्थी के रूप में आए थे।

पाकिस्तानी सेना ने लाखों बंगाली-हिन्दू महिलाओं और बच्चियों का बलात्कार किया। उसके एक-एक पाकिस्तानी सिपाही के सर पर हिन्दू को मारने का सनक चढ़ रहा था। यही कारण है कि 20 से 30 लाख हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, 2 लाख हिन्दू महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्ण बलात्कार किया गया। किन्तु यह तो केवल सरकारी आंकड़ा है। एक बांग्लादेशी पत्रकार के अनुसार मरने वालों की संख्या इससे बहुत अधिक थी और महिलाओं के साथ हुए जघन्य अपराध का आंकड़ा भी 4 लाख के करीब था। इन महिलाओं को गिरफ्तार कर जिन कैम्पों में रखा वहां भी इनके साथ दिल दहला देने वाला व्यवहार किया जाता था। वह कैंप नहीं 'रेप कैंप' थे।

किन्तु क्या किसी ने इस विषय पर बात की है? क्या हमें इस काले इतिहास से वाकिफ कराया गया है? इसका उत्तर है नहीं, क्योंकि उस समय की सरकार भी चुप थी और आज की सरकारें भी चुप हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि लेखक गैरी जे बास द्वारा लिखी गई किताब "The Blood Telegram: Nixon, Kissinger and a Forgotten Genocide" में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि भारत सरकार और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बांग्लादेश में हो रहे हिन्दुओं के साथ बर्बरता की जानकारी थी किन्तु वह इसलिए चुप रही क्योंकि वह जन संघ को किसी भी विरोध का या उठने मौका नहीं देना चाहती थी।

पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली हिन्दुओं के घर जला दिए गए थे।(सांकेतिक चित्र, VOA)

जब अपनों ने मुँह फेर लिया फिर तो इस्लामिक कट्टरता से हम और क्या अपेक्षा कर सकते हैं। पाकिस्तान की सेना ने केवल और केवल इसलिए हिन्दुओं को निशाना बनाया क्योंकि वह उनकी जमीनें, उनकी संपत्ति अपने में और मुसलमानों में बाँटना चाहती थी। मई में पाकिस्तान का जनरल न्याज़ी अपने सैनिकों से पूछता था कि कितने हिन्दुओं को मारा और लिखित में आदेश भी जारी कर दिया था कि 'हिन्दुओं को मारो'। इस्लाम के कट्टरधारियों ने कत्लेआम मचाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ा। उनका केवल और केवल मकसद था हिन्दुओं की मौत और इस्लाम को बढ़ावा देना और इसमें पश्चिमी पाकिस्तान का बहुत बड़ा हाथ था। जिसने बंटवारे के समय भी कुछ ऐसा ही किया था।

"जैसा कि आर.जे. रुमेल लिखते हैं":

केवल 267 दिनों में इंसान की मृत्यु दर अविश्वसनीय थी। सिर्फ अठारह जिलों में से पांच के लिए बांग्लादेश के अखबारों में प्रकाशित कुछ अधूरे आंकड़ों में, पाकिस्तानी सेना ने ढाका में 100,000 बंगालियों, खुलना में 150,000, जेसोर में 75,000, कोमिला में 95,000, और चटगांव में 100,000 लोगों को मारे। अठारह जिलों में कुल 1,247,000 मारे गए हैं। यह एक अधूरी संख्या था, और आज तक कोई भी पूरी संख्या को नहीं जानता है।  के कुछ अनुमान [रुमेल की "सरकार द्वारा मृत्यु"] बहुत कम हैं – एक 300,000 मृतक कहता है – लेकिन अधिकांश की सीमा 1 मिलियन से 3 मिलियन तक है। पाकिस्तानी सेना और संबद्ध अर्धसैनिक समूहों ने कुल मिलाकर पाकिस्तान में हर साठ में से एक व्यक्ति को मार डाला; पूर्वी पाकिस्तान में हर पच्चीस बंगाली, हिंदू और अन्य में से एक। यदि पाकिस्तान में सभी के लिए हत्या की दर वार्षिक है तो याह्या मार्शल लॉ शासन सत्ता में था (मार्च 1969 से दिसंबर 1971), तो यह एक शासन सोवियत संघ, चीन से कम्युनिस्टों के अधीन अधिक घातक था, या सैन्य के तहत जापान (द्वितीय विश्व युद्ध के माध्यम से भी)। (रुमेल, Death By Government, पृष्ठ 331।)

बांग्लादेश में 1971 में हुए नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन।(Wikimedia Commons)

इस नरसंहार और बांग्लादेश के आज़ादी के बाद भारत बांग्लादेश के रिश्ते दोबारा सुधरने लगे। किन्तु आज भी बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा एक आम सी घटना है और उसके खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए कई हिन्दू सड़कों पर भी उतरते हैं, किन्तु इस्लामिक कट्टरता और मुस्लिम बहुल राष्ट्र से हम किस न्याय की अपेक्षा करें? राजनीतिक मंच पर तो कह सकते हैं की भारत, बांग्लादेश एक साथ है, किन्तु अल्पसंख्यकों के नाम पर यह दरयादिली कहीं छुप जाती है। इस मामले में पाकिस्तान की बात न ही करें तो अच्छा है, जहाँ भीड़ द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़ दिया जाता है, जहाँ बेटियों का अपहरण कर धर्मपरिवर्तन कराया जाता है और सरकार तमाशबीन बनकर सब कुछ देखती रहती है।

आज यदि युवाओं को बांग्लादेश में हुए नरसंहार के विषय में रत्ती भर पर ज्ञान होता तो वह धर्मनिरपेक्ष का नाटक नही खेल रहे होते। यदि किसी भी सरकार ने बांग्लादेश या पाकिस्तान के खिलाफ इस जघन्य अपराध का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया होता तो हम हिन्दुओं के लिए इन्साफ मांग रहे होते।

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