चुनावी रण में कौन बनेगा राजा और किसका बजेगा बाजा, यह देखना होगा रोमांचक

सत्ता तक कौन अपनी पहुँच बनाएगा यह देखना होगा दिलचस्प। (Pinterest)
सत्ता तक कौन अपनी पहुँच बनाएगा यह देखना होगा दिलचस्प। (Pinterest)

भारत में दो चीज़ों का पर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल है, एक है भारतीय रेल और दूसरा है बिहार का सियासी खेल। कब, कौन और कैसे, बाज़ी अपनी मुट्ठी में कर जाए यह कोई नही जनता। बिहार ही वह राज्य है जहाँ खुद पार्टियां घोर संशय में रहती है कि किस पल उनकी सत्ता उलट-पुलट जाए। जनता भी अंत तक अपने प्रतिनिधि का नाम उजागर नहीं करती और न ही हर पार्टी को मोल देती है, क्योंकि बिहार 15 साल पहले भी वैसा ही था जैसा आज है।

बिहार आज भी जाति और धर्म पर वोट देने वाले राज्यों में सम्मिलित है, युवा बेरोज़गारी के मुद्दे पर आवाज़ उठाते तो हैं लेकिन तेली, ब्राह्मण के भूल-भुलैया में फ़स कर पुरानी करतूत को दोहरा देते हैं। बिहार की राजीनति में अंत तक यह भी अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि कौन सी राजनितिक पार्टी किसके साथ गठबंधन में है या नहीं। क्योंकि हाल ही में चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी ने एनडीए से हटकर अलग मैदान में उतरने का फैसला किया था। और तो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान आवाम मोर्चा ने महा-गठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए का हाथ थामा।

लोगों का मानना यह भी है कि बिहार राजनीति में अब पुराना दम-खम बचा नही, क्योंकि सभी मजबूत और पराने नेता या तो राजनीति से सन्यास ले चुके हैं या फिर स्वर्ग-सिधार चुकें हैं। जैसे की लालू यादव इस बार स्वास्थ्य और जेल में होने के कारण बिहार चुनाव में हिस्सा नहीं ले रहे, जिस वजह हर कोई उनके बेबाक और हसगुल्ले अंदाज़ की कमी महसूस कर रहा है। वहीं पिछड़ी जाती के धाकड़ नेता रामविलास पासवान का भी हाल ही में निधन हो गया, जिस वजह से उनके प्रशंसकों को भी नई ऊर्जा को अपनाने में समय लगेगा।

जनता मत

हाल ही में न्यूज़ग्राम ने बिहार के युवा वोटर अमित कुमार झा से बिहार चुनाव के सन्दर्भ में बातचीत की, उनसे जब जनता के मिज़ाज के बारे में पुछा गया तब उन्होंने कहा कि "बिहार में अभी खिचड़ी पक रही है, लेकिन लोगों की बातचीत से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि फिर से नितीश और मोदी की जोड़ी बिहार की कमान संभालेगी।" जब उनसे पूछा गया कि एक वोटर किन मुद्दों को ध्यान में रखकर वोट देगा? तब उनका जवाब था कि "विपक्ष बेरोजगारी और प्रवासी मुद्दों को ज़्यादा तूल दे रहा है लेकिन इसका वोटरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि आज गांव का युवा भी इटरनेट चलाता है, देश और दुनिया की खबर रखता है, उसे पता है की किसने काम किया है या किसने सिर्फ जनता को बरगलाया है। जहाँ पहले बिजली का नामों निशान नहीं था आज हर घर में बिजली है, आज हमारे गांव में हर घर शौचालय है। इसलिए विपक्ष का शायद ही आज कोई यकीन करेगा।" जब उनसे यह पुछा गया कि इस बार किसके चेहरे पर वोट दिया जाएगा, तब उनका साफ और सटीक उत्तर था कि "इस बार 'हर बार' की तरह मोदी के चेहरे पर ही वोट डाला जाएगा। हाँ! लोजपा का अलग होना वोट-कटवा का काम कर सकती है लेकिन इससे ज़्यादा फरक नहीं पड़ेगा।"

अंत में

बिहार चुनाव उन चुनावों में से एक है जो यह बताने का दम रखती है कि अगली बार केंद्र में कौन आएगा जिस वजह से सभी राजनीतिक दल जीतने से ज़्यादा खुद को उभारने का प्रयास करते हैं। क्योंकि 'जो चमक गया वह लम्बे समय तक चल गया।'

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