चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद पूरे भारत में देशभक्ति की एक लहर आ गयी है। भारत ने शहीद हुए 20 भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी तो वहीं दूसरी तरफ चीनी सरकार, मारे गए सैनिकों के आंकड़े देने में भी कतरा रही है। कई सूत्रों के अनुसार मारे गए चीनी सैनिकों की संख्या 40 के भी पार है। नतिजन चीन के नागरिकों में, चीनी सरकार के खिलाफ विरोध पनपता जा रहा है। इंडिया टुडे के एक रिपोर्ट के अनुसार, चीनी सोशल मीडिया ऐप Weibo पर, चीन के नागरिकों ने सरकार से सवाल करने शुरू कर दिए हैं। उनकी मांग है की सरकार, मारे गए चीनी सैनिकों के आंकड़े जारी करे और उन्हे सम्मान पूर्वक श्रद्धांजलि दी जाए। अंदर ही अंदर बढ़ रहे इस विरोध की वजह से चीन की सत्ताधारी पार्टी बौखला गयी है।
उनकी बौखलाहट, चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स में हर रोज़ छपने वाले भारत विरोधी लेखों में देखा जा सकता है। ग्लोबल टाइम्स को चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र माना जाता है। आसान भाषा में समझिए तो, ग्लोबल टाइम्स, चीनी सरकार के प्रवक्ता के रूप में काम करती है।
बीते कई दिनों से ग्लोबल टाइम्स, लगातार भारत विरोधी लेखों के ज़रिए हमारी सरकार और हमारे नागरिकों को उकसाने की कोशिश कर रहा है। भारत को कमजोर बताना, 1962 के युद्ध का ज़िक्र कर भारत के मनोबल को गिराने की कोशिश करने जैसे काम, ग्लोबल टाइम्स लगातार कर रहा है। आज भी ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख के ज़रिये ये बताने की कोशिश की है की, चाइना जान कर अपने मारे गए सैनिकों की संख्या नहीं बता रहा है। उस लेख में ग्लोबल टाइम्स लिखता है की, "भारत की नरेंद्र मोदी सरकार भी चीन से पंगा नहीं लेना चाहती है, क्यूंकी उन्हे पता है नतीजे भारत के लिए सही नहीं होंगे"।
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के खिलाफ कड़े निर्णय लेने का दिखावा कर, मात्र अपने देश के लोगों को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि असलियत में वो मामले को ठंडा करना चाहते हैं। ऐसे लेखों के ज़रिये ग्लोबल टाइम्स, भारत के नागरिकों में भारत की सरकार और सेना के प्रति शक पैदा करवाना चाहता है। हालांकि, कई लोग चीन के इस जाल में फँसते हुए भी नज़र आ रहे हैं। कइयों ने ग्लोबल टाइम्स की इस रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारत की सरकार पर सवाल खड़े करने भी शुरू कर दिये हैं। ऐसी घटनाओं से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि, एक कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में साबित करने की योजना को बल मिल सकता है। इन सब के बीच, ग्लोबल टाइम्स बार-बार दोनों देशों की सेना के बीच तुलना कर, भारतीय सेना को कमजोर बताने का भी प्रयास कर रहा है।
ग्लोबल टाइम्स कहता है की "भारत सरकार, मारे गए सैनिकों की तुलना कर अपने कट्टर राष्ट्रवादियों को खुश करने की कोशिश में लगा हुआ है, जिसकी वजह से सरकार पर दबाव कम होता हुआ नज़र आ रहा है। जबकि चीन, भारत से लड़ाई नहीं चाहता, इसीलिए वो मारे गए चीनी सैनिकों के आंकड़े जारी कर भारत सरकार को दबाव में नहीं लाना चाहता है"। ग्लोबल टाइम्स का कहना है की, "अगर चीन मारे गए चीनी सैनिकों के आंकड़े जारी कर देगा (जो की चीन के मुताबिक, भारत से कम है) तो भारत के कट्टर राष्ट्रवादियों द्वारा सरकार पर दबाव बनाया जाने लगेगा। ऐसे राष्ट्रवादियों को खुश करने के लिए भारत सरकार चीन से युद्ध की स्थिति पैदा करने पर मजबूर हो सकती है, जिसका नतीजा भारत के लिए सही साबित नहीं होगा"। ग्लोबल टाइम्स ये भी कहता है की अगर भारत फिर से सीमा पर विवाद पैदा करने की कोशिश करेगा तो उसका हश्र 1962 से भी बुरा होगा।
हालांकि, इन गीदड़भभकियों की पोल 15 जून को ही खुल गयी थी जब एलएसी पर भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने हुए थे। रिपोर्ट के मुताबिक, 300-400 भारतीय सैनिकों से भिड़े 2000-2500 चीनी सैनिकों को मुंह के बल खानी पड़ी थी।
ऐसी कोरी बातों से चीनी सरकार, एक तीर से दो निशाने लगाना चाह रही है। भारत को भड़काने और कमजोर साबित करने की कोशिश के साथ साथ, वो अपने देश के नागरिकों का गुस्सा भी शांत करने का प्रयास कर रही है। अगर आप ध्यान से देखें तो आपको पता चलेगा की, मारे गए सैनिकों को लेकर की गयी टिपन्नी, भारत के लिए नहीं,बल्कि उनके अपने नागरिकों के लिए थी, जो चीनी सरकार से लगातार, मारे गए सैनिकों के आंकड़े छुपाने को लेकर सवाल पूछ रही है।
हमारे देश के नागरिकों की तरह, चीन के नागरिकों में भी, भारत के खिलाफ गुस्सा पनप रहा है। चीनी नागरिक भी वहाँ की सरकार से भारत पर कार्यवाही की उम्मीद कर रहे है। 15 जून को चीनी सेना द्वारा किए गए कायराना हरकत के बाद भी चीन के ज़्यादा सैनिकों के मरने की खबर ने, चीनी नागरिकों में पनप रहे गुस्से को और भी बढ़ा दिया है, जिसकी वजह से खुद चीनी सरकार पर भारत से युद्ध करने का दवाब बना हुआ है। और यही वजह है की वो लगातार भारत सरकार, और हमारी सेना को उकसाने का प्रयास कर रही है।
चीनी सरकार के "हम युद्ध नहीं चाहते है" का दावा बिल्कुल ही खोखला है। चीनी सेना का झूठ, धोखा और प्रपंच से भरा इतिहास इस बात का गवाह है। उदाहरण के तौर पर, 6 जून को दोनों देशों के बीच हुए समझौते में चीन और भारत, अपनी-अपनी सेना को पीछे खींचने पर राज़ी हुए थे, लेकिन यहाँ भी चीन ने धोखाधड़ी कर अपनी सेना को पीछे नहीं हटाया था। बाद में यही, 15 जून को हुए खूनी संघर्ष कर कारण बना।
भारत सरकार लगातार चीन को करारा जवाब दे रही है, चाहे वो सीमा पर हो या व्यवसाय में हो। अभी हाल ही में टेलीकॉम से लेकर रेलवे तक में, भारत सरकार ने चीनी कंपनियों को दिये गए ठेकों को रद्द कर दिया है। ग्लोबल टाइम्स के ज़रिये चीनी सरकार द्वारा भारत को धमकाने की कोशिश में चीन की बौखलाहट साफ झलक रही है।
अभी थोड़ी देर पहले, चीनी सेना ने 15 जून को हुए संघर्ष में अपने कमांडिंग ऑफिसर के मारे जाने की बात की पुष्टि की है।