इतिहास यदि हमें सही दिशा दिखाता है तो यह एक स्वर्णिम भविष्य को हमारे समक्ष खड़ा कर देता है, किन्तु यदि इतिहास ही हमें कुछ ऐसी प्रथाओं की आग में झोंक दे जिनमें वहम और स्वांग हो तो हम सही और गलत में अंतर करना भूल जाते हैं। हाल के दिनों में कुछ ऐसा ही हो रहा है। एक तरफ मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले Hijab को सही ठहराया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसी Hijab को महिलाओं पर थोपी गई एक प्रथा बताई जा रही है। किन्तु अब प्रश्न यह उठता है कि क्या सच में मुस्लिम महिलाओं के लिए Hijab पहनना आवश्यक है या हिजाब का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी इस्लामी कट्टरता को बढ़ावा दे रहे हैं?
आपको बता दें कि कुरान में सभी मर्दों को कमुख करार देते हुए लिखा है कि "ईमानवालों से कहो कि वे अपनी आँखें बंद रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यह उनके लिए अधिक शुद्ध है। निश्चय ही अल्लाह भली-भाँति जानता है कि वे क्या करते हैं।" इसी को ध्यान में रखते हुए क्या हिजाब का इजात हुआ? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि कई लोग(जिनमें अधिकतर विशेष समुदाय से नाता रखते हैं) यह मानते हैं कि यदि महिलाएं Hijab या बुर्का से अलग कपड़े पहनती हैं तो वह बलात्कार को बढ़ावा देती हैं।
क़ुरान में लिखा गया गया है कि "मुहम्मद को आदेश दिया गया है कि वे अपने परिवार के सदस्यों और अन्य मुस्लिम महिलाओं को बाहर जाने पर बाहरी वस्त्र पहनने के लिए कहें, ताकि उन्हें परेशान न किया जाए"-कुरान 33:59, यह वह तर्क हैं जो मौलवी और इस्लामिक जानकार लोगों को बांटते हैं। किन्तु एक लेखक जिनका नाम रेज़ा असलान है, उन्होंने दुनिया के सामने हिजाब के पीछे छुपा कुछ अलग तर्क सामने रखा है। असलान ने बताया था कि "मुस्लिम महिलाओं ने मुहम्मद की पत्नियों का अनुकरण करने के लिए हिजाब पहनना शुरू किया था, जिन्हें "इस्लाम में विश्वास करने वालों की माताओं" के रूप में जाना जाता है, और कहा गया है कि "मुस्लिम समुदाय में लगभग 627 ई. तक घूंघट या हिजाब पहनने की कोई परंपरा नहीं थी।"
अब क्या यह मान लिया जाए कि हिजाब को इस्लामिक कट्टरपंथियों ने महिलाओं पर थोपने का कार्य किया है? ऐसा इसलिए क्योंकि आज के समय में जो लोग हिजाब के समर्थन में बात कर रहे हैं जिनमें महिलाएं अधिक संख्या में शामिल हैं, उन्होंने ना तो कभी हिजाब पहना है और न ही इसका उपयोग किया है। आप को बता दें कि सोशल मीडिया वेबसाइट 'ट्विटर' पर कुछ दिन पहले #LetUsTalk हैशटैग काफी ट्रेंड कर रहा था, जहाँ उन महिलाओं की बात की गई थी जिन्होंने हिजाब का विरोध किया था। साथ ही उन घटनाओं की भी बात की गई हैं जिसमें इस्लामिक चरमपंथियों ने एक लड़की को केवल इसलिए मार दिया क्योंकि उसने हिजाब न पहनकर स्वतंत्र जीने का समर्थन किया।
अब आपको बताते हैं कि इन देशों में चेहरा ढकने पर दी जाती है सजा-
फ्रांस वह पहला यूरोपीय देश है जिसने स्कूलों में धर्म को प्रद्रशित करने वाले कपड़ों पर प्रतिबंध लगाई थी। साथ ही सरकार ने 2011 में सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब या पूरा तरह चेहरा ढकने पर भी पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया था।
रूस के स्त्रावरोपूल क्षेत्र ने स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया दिया था। मामला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने भी इस फैसले को सही ठहराया। रूस की सरकार का कहना है कि हिजाब या बुर्का का आधुनिक और प्रगतिशील रूस में कोई जगह नहीं है।
आपको बता दें कि इटली और श्रीलंका में भी बुरका या हिजाब पहनने पर रोक है। यदि महिला बुर्का या हिजाब का उपयोग करती है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जाती है। श्रीलंका ने आतंकी हमले के बाद ऐसी सख्ती बरती है।
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