Kisan Diwas : किसानों का ऐसा मसीहा जिसे देखते ही गोली मारने का था आदेश

चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर,1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में एक जाट परिवार में हुआ था।
चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर,1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में एक जाट परिवार में हुआ था।

By – रमेश सर्राफ धमोरा

देश के लाखों किसान, केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनकारी बर्ताव अपनाए हुए हैं। एक तरफ भारतीय जनता पार्टी किसानों को भविष्य में होने वाले मुनाफे को समझाने में जुटी है, तो वहीं दूसरे हाथ पर विपक्ष की पार्टियां सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ जम कर विरोध कर रही हैं। दिल्‍ली- हरियाणा की सीमा, सिंघू बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने ' किसान दिवस (Kisan Diwas) ' के अवसर पर लोगों से एक समय का भोजन त्यागने की अपील की है।

भारत में किसान दिवस (Kisan Diwas) हर वर्ष 23 दिसंबर को चौधरी चरण सिंह के सम्मान में मनाया जाता है। उनका मानना था कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। चाहे कोई भी लीडर आ जाए, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ, जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता।

गांव की एक ढाणी में जन्मे चौधरी चरण सिंह गांव, गरीब व किसानों के तारणहार बने। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गांव के गरीबों के लिए समर्पित कर दिया। इसीलिए देश के लोग मानते रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है।

स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने चौधरी ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आह्वान किया कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे।

चरण सिंह के शुरुआती साल

चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर,1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में एक जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश किया। उनके पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्य विरासत में चरण सिंह को सौंपा था। चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गए थे।

चरण सिंह ने स्वाधीनता आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश किया था। (Charan Singh Archives, Facebook)

आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर सन् 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत शुरू की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था। सन् 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के 'पूर्ण स्वराज्य' उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।

महात्मा गांधी से थे प्रभावित

सन् 1930 में महात्मा गांधी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने नमक कानून तोड़ने को डांडी मार्च किया। आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया। इस कारण चरण सिंह को 6 माह कैद की सजा हुई। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।

सन् 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार हुए। फिर अक्टूबर, 1941 में मुक्त किए गए। 9 अगस्त, 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवा चरण सिंह ने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी। मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था।

एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी, वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभाएं करके निकल जाता था। आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया। राजबंदी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई। जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक शिष्टाचार, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है।

गरीबों को दिलाया उनका अधिकार

चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई, 1952 को उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला।

किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। कांग्रेस में उनकी छवि एक कुशल नेता के रूप में स्थापित हुई। देश की आजादी के बाद वह राष्ट्रीय स्तर के नेता तो नहीं बन सके, लेकिन राज्य विधानसभा में उनका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जाता था। आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए फिर चुने गए।

किसानों के मसीहा

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य सन् 1951 में बनना शुरू हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग संभाला। सन् 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। वह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था। चरण सिंह स्वभाव से भी कृषक थे। वह कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे।

सन् 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। वह उत्तर प्रदेश की जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे, इसीलिए प्रदेश सरकार में योग्यता एवं अनुभव के कारण उन्हें ऊंचा मुकाम हासिल हुआ।

चरण सिंह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था। (Charan Singh Archives, Facebook)

उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे। उन्होंने कृषकों के कल्याण के लिए काफी कार्य किए। समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कृषि मुख्य व्यवसाय था। कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।

चरण सिंह की ईमानदाराना कोशिशों की सदैव सराहना हुई। वह लोगों के लिए एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्हें भाषणकला में भी महारत हासिल थी। यही कारण था कि उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी।

मर्यादित आचरण

चौधरी साहब 3 अप्रैल, 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। तब उनकी निर्णायक प्रशासनिक क्षमता की धमक और जनता का उन पर भरोसा ही था कि सन् 1967 में पूरे देश दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता भी नहीं खड़का। 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फरवरी, 1970 को वह मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अपने सिद्धांतों व मर्यादित आचरण से कभी समझौता नहीं किया।

सन् 1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।

सन् 1979 में वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में चोधरी साहब ने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच मतभेद हो गया। 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने। चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा।

अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए – Karima Baloch, The Pakistani Human Rights Activist Found Dead

एक कुशल लेखक

चौधरी चरण सिंह एक कुशल लेखक भी थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था। उन्होंने 'अबॉलिशन ऑफ जमींदारी', 'लिजेंड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियाज पोवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस' नामक पुस्तकों का लेखन भी किया। उनमें देश के प्रति वफादारी का भाव था।

चौधरी चरण सिंह को एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है। (Charan Singh Archives, Facebook)

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी टोपी को कई बड़े नेताओं ने त्याग दिया था, लेकिन चौधरी चरण सिंह इसे जीवन र्पयत धारण किए रहे। देश के इतिहास में उनका नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है।

वर्ष 2001 में केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार द्वारा किसान दिवस (Kisan Diwas) की घोषणा की गई, जिसके लिए चौधरी चरण सिंह जयंती से अच्छा मौका नहीं था। उनके किए कार्यो को ध्यान में रखते हुए 23 दिसंबर को भारतीय किसान दिवस की घोषणा की गई। तभी से देश में प्रतिवर्ष किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 29 मई, 1987 को 84 वर्ष की उम्र में जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया। (आईएएनएस)

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