जानिए ‘ बिहार की बुढ़वा’ होली की अनोखी परंपरा​​​​​

बिहार की बुढ़वा होली परम्परा{unplash}
बिहार की बुढ़वा होली परम्परा{unplash}
Published on
Updated on
2 min read

बिहार की होली की अलग पहचान रही है। रंगोत्सव होली को कई इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। ऐसे में बिहार में होली के एक दिन बाद 'बुढ़वा होली' मनाए जाने की अनोखी परम्परा है। होली पर्व के एक दिन बाद बुढ़वा होली मनाई जाती है। इस दिन भी लोग होली की मस्ती में डूबे लोग एक-दूसरे के घर जाकर फगुआ (फाल्गुन के गीत) गाते हैं। बिहार में बुढ़वा होली मगध प्रमंडल की खास विशेषता है। औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, नवादा, अरवल आदि जिलों में बुढ़वा होली मनाए जाने की प्रथा पुरानी है।

बुढ़वा होली मनाए जाने की परम्परा कब और कैसे शुरू हुई, इसका कोई प्रमाण तो नहीं है, लेकिन मान्यता यह है कि होली के दिन कई घरों में भगवान (कुलदेवता) की पूजा होती है, इस कारण लोगों ने बुढ़वा होली को मान्यता दे दी। इस दिन भी पूरी तरह लोग अबीर-गुलाल में डूबे रहते हैं।
बुढ़वा होली के दिन गांव में झुमटा (स्त्रियों का नृत्य) निकलता है, जबकि पुरूषों की टोली अलग निकलती है और पूरा गांव फाग के रंग में डूब जाता है। इस दिन होली की शुरूआत गांव में एक धार्मिक स्थल से होती है।

दोपहर बाद लोग धार्मिक स्थल पर जुटते हैं और फिर से होली का धमाल शुरू हो जाता है। वहां से टोली के रूप में लोग गांव में घर-घर जाते हैं और मीठे पकवानों व भांग से टोली का स्वागत किया जाता है। इस दौरान ढोल-मंजीरे पर फगुआ गूंजता रहता है। कई इलाकों में एक साथ चार-पांच गांवों का समूह इकट्ठा हो जाता है। कुछ लोग इसे बुजुर्गों के सम्मन से भी जोड़कर देखते हैं। लोगों का कहना है कि यही एक पर्व है जिसमें बूढों का नाम है। इस होली में बूढ़े-बुजुर्ग भी पूरे जोश के साथ मंडली में शामिल होते हैं।

गया के रहने वाले प्रबोध प्रसाद बताते हैं कि मगध के लगभग सभी गांवों-शहरों में बुढ़वा होली मनाई जाती है, परंतु गया में इस होली की अपनी खासियत है। वह मानते हैं कि अब इस होली में कुछ गलत परम्परा भी देखने को मिल रही है, जिस कारण सभ्य लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बुढ़वा होली के साथ होली पर्व का समापन हो जाता है।

–आईएएनएस{NM}

Related Stories

No stories found.
logo
hindi.newsgram.com