ओडिशा राज्य में मानवता कल्याण के लिए शांति देवी जी का नाम बहुत महत्वपूर्ण है। हाल ही में उन्हें भारत का चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्म श्री' से सम्मानित किया गया है। उन्होंने सात लम्बे दशकों तक मानव कल्याण के लिए काम किए हैं। हर क्षण सामाजिक सुधारों के लिए तत्पर रहने वाली शांति देवी को 'कोरापुटिया गांधी' भी कहा जाता है।
18 अप्रेल 1934, बालासोर जिले में जन्मी शांति देवी, 'सेवा समाज' नामक स्वैच्छिक संस्था का नेतृत्व करती हैं। जिनका उद्देश्य उन सभी लड़कियों को आश्रय और मूलभूत सुविधा देना है जो या तो अपने परिवार से बिछड़ चुके हैं या उन्हें बेसहारा छोड़ दिया गया था। इस कार्य के लिए शांति देवी जी ने गुनपुर में एक आश्रम भी स्थापित किया है। शांति देवी का विवाह 'महात्मा गांधी' के अनुयायी रहे, डॉ. रतन दास से हुई। जिसके पश्चात वह बालासोर से कोरापुट आ गईं। शांति देवी विनोबा भावे की विचारधारा से बहुत प्रभावित थी।
शांति देवी आदिवासी अनाथ बालिकाओं तक शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करती हैं।(सांकेतिक चित्र, फाइल फोटो)
शांति देवी और उनके पति रतन दास ने मिलकर आश्रम की स्थापना की जिसका लाभ उन आदिवासी बच्चों को मिल रहा जो अनाथ और बेसहारा हैं। आज उनके द्वारा स्थापित चार लड़कियों के लिए आश्रम रायगढ़ शहर के चार जिलों में हैं ,जो कि लिमापाड़ा, जबहारगुडा, गुनपुर और रायगडा में स्थापित हैं। उन्हें 1994 में महिला और बच्चों के विकास और कल्याण के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
शांति देवी जी ने आचार्य विनोबा भावे जी के साथ भूदान आंदोलन में काम किया था और उसके बाद 1961 में, वह उत्कल नवजीवन मंडल की सचिव बनीं। शांति देवी आज भी कोरापुट में रहती हैं और सामाजिक कार्यों और सुधारों को तेजी से उनके लक्ष्य तक पहुंचती हैं।
पद्म श्री पुरुस्कार राष्ट्रपति द्वारा विशिष्ट सेवा के लिए प्रदान किया जाता है। पुरस्कार समिति की सिफारिश के आधार पर और प्रधानमंत्री, गृह मंत्री तथा राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर इन पदम सम्मानों की घोषणा की जाती है।(SHM)