जानें कौन थीं रानी कमलापति ,जिनके नाम पर अब हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रखा गया है

रानी कमलापति रेलवे स्टेशन , भोपाल [ Twitter ]
रानी कमलापति रेलवे स्टेशन , भोपाल [ Twitter ]
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 नवंबर को देश के पहले अति आधुनिक रानी कमलापति (Rani Kamlapati) रेलवे स्टेशन का भोपाल में उद्घाटन किया। यह स्टेशन पहले हबीबगंज रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता था। हाल ही में इसका नाम बदलकर गोंड रानी के नाम पर रखा गया और इसे पुनर्विकसित किया गया था। भोपाल शहर में स्थित रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पश्चिम मध्य रेलवे का हिस्सा है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर कमलापति करने के निर्णय के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। चौहान ने कहा कि रानी कमलापति (Rani Kamlapati) गोंड समुदाय का गौरव और भोपाल की अंतिम हिंदू रानी थी , जिसका राज्य अफगान कमांडर दोस्त मोहम्मद ने छल से हड़प लिया था।


आदिवासी आइकन की याद में 'जनजातीय गौरव दिवस' को चिह्नित करने के लिए भोपाल में हो रहे आदिवासी सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा ,"आज का दिन भोपाल के लिए, मध्यप्रदेश के लिए और पूरे देश के लिए गौरवपूर्ण इतिहास और वैभवशाली भविष्य के संगम का दिन है। भारतीय रेलवे का भविष्य कितना आधुनिक और उज्जवल है इसका प्रतिबिंब भोपाल के इस भव्य रेलवे स्टेशन में जो भी आएगा उसे दिखाई देगा। "

उन्होंने कहा , "रानी कमलापति स्टेशन में भारतीय रेलवे का पहला सेंट्रल कॉनकोर्स बनाया गया है, जहां सैकड़ों यात्री एक साथ बैठकर ट्रेन का इंतजार कर सकते हैं। सभी प्लेटफॉर्म इस कॉनकोर्स से जुड़े हैं। इसलिए यात्रियों को अनावश्यक भागदौड़ करने की जरूरत नहीं होगी। "


रानी कमलापति कौन थी?

रानी कमलापति (Rani Kamlapati) 18वीं शताब्दी में भोपाल क्षेत्र की गोंड रानी थीं। वह निज़ाम शाह की सात पत्नियों में से एक थीं। उनके पिता चौधरी कृपा-रामचंद्र थे , जो 16 वीं शताब्दी में वर्तमान के सीहोर जिले के राजा हुआ करते थे। रानी कमलापति अपनी सुंदरता और बहादुरी के लिए प्रसिद्ध थीं। रानी को धनुष , घुड़सवारी और मल्लयुद्ध का सम्पूर्ण ज्ञान था और वह अपनी सेना की सेनापति भी थी।

इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने सात मंजिला 'कमलापति पैलेस' का निर्माण करवाया था , जो वर्तमान में मध्य प्रदेश में संरक्षित स्मारकों में से एक के रूप में एएसआई के अधीन है। इस महल की वास्तुकला धर्मनिरपेक्ष है , जो लखौरी ईंटों से बना है और टूटे हुए खंभों पर मेहराबदार है। रानी के नाम का सम्मान करने के लिए मर्लों को कमल का आकार दिया गया है।

दरअसल रानी कमलापति के पति निजाम शाह को उनके भतीजे आलम शाह ने जहर देकर मार डाला था। आलम शाह अपने चाचा की संपत्ति हड़पना चाहता था , साथ ही उसे रानी कमलापति को पाने का भी लोभ था। अपने इसी मंसूबे को पूरा करने के लिए उसने निजाम शाह की हत्या कर दी, जिसके बाद रानी बेसहारा हो गयी। पर उन्होंने हार नहीं मानी और अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए दोस्त मोहम्मद खान, जो कभी मुगल सेना का हिस्सा था, उससे हाथ मिला लिया। खान ने 1 लाख रुपयों के बदले में रानी कमलापति से आलम शाह को मारने का सौदा कर लिया। गोंड किंवदंतियों की माने तो रानी ने खान की कलाई पर राखी बांधी थी कि वह उनके सम्मान की रक्षा करेगा।

खान ने अपना वादा निभाया और आलम शाह को मार डाला। आलम की मृत्यु के बाद रानी कमलापति (Rani Kamlapati) ने साम्राज्य पर अपना अधिकार कर लिया। पर रानी सौदे के मुताबिक 1 लाख रुपयों का इंतजाम नहीं कर सकीं , जिसके बाद उन्हें अपने साम्राज्य का एक हिस्सा खान को देना पड़ा। रानी ने उन्हें साम्राज्य के प्रशासक के रूप में भी नामित किया था। जब कमलापति ने साम्राज्य संभाला, तब उनका पुत्र नवल शाह एक वयस्क था। खान को साम्राज्य का एक हिस्सा सौंपने के फैसले से वह खुश नहीं था। नतीजतन, नवल शाह और खान के बीच एक जंग छिड़ गई, जिसमें रानी के पुत्र नवल शाह की मृत्यु हो गई ।

1723 में बेटे की मौत से दुखी रानी कमलापति ने अपने महल की झील में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

हालांकि , इसका कोई लिखित रिकॉर्ड नहीं है। किन्तु गोंड जनजाति में यह कथा जोर-शोर से सुनाई जाती है।

बता दें कि गोंड जनजाति भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से एक है। देश में इसकी आबादी लगभग 1.2 करोड़ है।

Input : Various Sources

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