बाबरी विध्वंस पर लिब्रहान रिपोर्ट निराधार : सत्यपाल जैन

30 सितंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया है।(Wikimedia Commons)
30 सितंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया गया है।(Wikimedia Commons)
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By – आरती टिक्कू सिंह

वरिष्ठ वकील और भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य सत्यपाल जैन ने कहा है कि लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट, जिसने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को दोषी ठहराया था, वह निराधार और गलत तथ्यों पर आधारित थी।

जैन ने लिब्रहान आयोग से पहले आरोपी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं का प्रतिनिधित्व किया था।

जैन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल भी हैं। उन्होंने बाबरी विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत के फैसले के बाद आईएएनएस से एक विशेष साक्षात्कार में खुलकर बातचीत की।

लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 30 सितंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया, जिनमें भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कई अन्य लोग शामिल हैं। साक्ष्यों के अभाव और अदालत के सामने घटना पूर्व नियोजित होने के संबंध में पर्याप्त तथ्य नहीं होने के चलते सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।

उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी। (Wikimedia Commons)

बाबरी ढांचे से संबंधित विवाद करीब 500 साल पुराना रहा है। जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था, उसे हिंदू भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। मस्जिद को छह दिसंबर, 1992 को कार्यकर्ताओं के एक बड़े समूह की ओर से ध्वस्त कर दिया गया था। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री पी. वी. आर. नरसिम्हा राव थे।

बाबरी मस्जिद का विध्वंस विश्व हिंदू परिषद और अन्य साथी संगठनों के कार्यकर्ताओं के एक बड़े समूह द्वारा अवैध रूप से किया गया था। (Wikimedia Commons)
बाबरी मस्जिद का विध्वंस विश्व हिंदू परिषद और अन्य साथी संगठनों के कार्यकर्ताओं के एक बड़े समूह द्वारा अवैध रूप से किया गया था। (Wikimedia Commons)

संयोग से सत्यपाल जैन भी विध्वंस के दिन अयोध्या में अन्य भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेताओं के साथ मौजूद थे।

विवादित ढांचे के विध्वंस और इसके बाद अयोध्या में हुए दंगों की जांच के लिए केंद्र सरकार ने दिसंबर 1992 में लिब्रहान आयोग का गठन किया था। लिब्रहान आयोग का नेतृत्व हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम. एस. लिब्रहान ने किया।

आयोग को हालांकि तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी, लेकिन रिपोर्ट पेश करने में हर बार देरी होती चली गई और आयोग को रिपोर्ट पेश करने के लिए 48 बार समयसीमा दी गई।

अंत में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद एकल व्यक्ति आयोग ने जून 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। नवंबर 2009 में संसद में पेश की गई रिपोर्ट में 68 लोगों को शामिल किया गया, जिनमें से ज्यादातर भाजपा के शीर्ष नेता थे, जिन पर आरोप लगाया गया कि इन्होंने मस्जिद के विध्वंस की सुनियोजित योजना बनाई।

जस्टिस एम.एस. लिब्रहान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट सौंपते हुए। (Wikimedia Commons)
जस्टिस एम.एस. लिब्रहान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट सौंपते हुए। (Wikimedia Commons)

जैन ने तर्क देते हुए कहा, "पहली बात यह कि भाजपा और आरएसएस का पूरा शीर्ष नेतृत्व आयोग के समक्ष उपस्थित हुआ था, मगर तब किसी ने भी सवाल नहीं उठाया।"

वरिष्ठ अधिवक्ता ने आयोग के समक्ष आडवाणी, उमा भारती और अन्य का प्रतिनिधित्व किया था।

जैन ने कहा, "दूसरी बात यह है कि आयोग द्वारा 17 साल की जांच के दौरान गैर-भाजपा दलों (कांग्रेस, संयुक्त मोर्चा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग) 11 साल तक सत्ता में रहे। 2009 में लिब्रहान की रिपोर्ट सामने आने के बाद कांग्रेस पांच साल तक सत्ता में रही।"

उन्होंने कहा, "लेकिन वे ट्रायल के दौरान भाजपा के शीर्ष नेताओं के खिलाफ अपने आरोप साबित करने के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सके।"

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह नरसिम्हा राव, देवगौड़ा, आई. के. गुजराल और मनमोहन सिंह की सरकार की जिम्मेदारी थी कि वे नेताओं के खिलाफ सबूत इकट्ठा करते, मगर वे किसी भी तरह के झूठे सबूत भी पेश करने में बुरी तरह विफल रहे।

जैन ने कहा कि लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट जारी होने के बाद भी, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार 2014 तक कोई सबूत नहीं जुटा सकी।

यूपीए सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन। (Wikimedia Commons)
यूपीए सरकार की दूसरी वर्षगांठ के अवसर पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन। (Wikimedia Commons)

जैन ने कहा कि जब युवा कार्यकर्ताओं के समूह ने विध्वंस किया, तब भाजपा के सभी शीर्ष नेता बाबरी मस्जिद के गुंबदों से 1000 मीटर दूर धरने पर थे। उन्होंने कहा, "28 वर्षों में कोई भी संरचनाओं को ध्वस्त करने वाले किसी भी नेता की एक भी तस्वीर तक पेश नहीं कर सका है।"

उन्होंने कहा कि सभी नेताओं ने हिंसक भीड़ को कानून का पालन करने के लिए कई अपील की थी। जैन ने कहा, "लिब्रहान रिपोर्ट निराधार है और तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने पर आधारित है।"

चंडीगढ़ के पूर्व सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता जैन को 30 जून, 2023 तक एक और कार्यकाल के लिए केंद्र द्वारा पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के रूप में फिर से नियुक्त किया गया है।(आईएएनएस)

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