
एयर इंडिया की फ्लाइट को दोपहर 1 बजकर 39 मिनट पर अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे संख्या 23 से उड़ान भरने के लिए तैयार हो गया, विमान को लंदन जाना था।
इस एयरबस के मुख्य पायलट कैप्टन सुमित सभरवाल थे, जिनके पास 8200 घंटे की उड़ान का अनुभव था, और उनके साथ सह-पायलट भी मौजूद थे, जिनका अनुभव 1100 घंटे का था। टेकऑफ़ के कुछ क्षण बाद ही पायलट ने एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल (ATC) को 'मेडे कॉल' भेजी, जो किसी गंभीर संकट की ओर इशारा करती है।
मेडे कॉल के बाद विमान का ATC से संपर्क टूट गया और चंद ही पलों में विमान एयरपोर्ट के पास ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। घटनास्थल से उठते काले धुएं और मलबे के दृश्य भयावह थे।
'मेडे कॉल' क्या होता है ?
‘मेडे’ एक विशेष आपातकालीन रेडियो सिग्नल है जिसका उपयोग तब किया जाता है जब विमान या जहाज़ में सवार लोगों की जान पर गंभीर खतरा मंडरा रहा हो। यह शब्द फ्रांसीसी शब्द "M’aidez" से आया है, जिसका अर्थ होता है — "मेरी मदद करो।"
यह कॉल पायलट या जहाज़ के कप्तान द्वारा दी जाती है, ताकि एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल या नजदीकी जहाज़ों को सूचित किया जा सके कि वे संकट में हैं और तात्कालिक मदद की ज़रूरत है।
‘मेडे’ शब्द को सबसे पहले 1923 में फ्रेडरिक मॉकफोर्ड नाम के एक रेडियो अधिकारी ने इजाद किया था। वे उस समय लंदन के क्रॉयडन एयरपोर्ट में कार्यरत थे। चूंकि उस दौर में फ्रांस और इंग्लैंड के बीच भारी हवाई यातायात था, इसलिए फ्रेंच और अंग्रेज़ी दोनों में आसानी से समझे जाने वाला शब्द खोजा गया और ‘मेडे’ को मान्यता दी गई।
साल 1927 में ‘मेडे’ को इंटरनेशनल रेडियो टेलीग्राफ कन्वेंशन में अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन कॉल के रूप में स्वीकार कर लिया गया I
‘मेडे’ कॉल तब दी जाती है जब किसी भी हवाई या समुद्री वाहन, उसमें सवार क्रू और यात्रियों की जान को सीधा खतरा हो। जैसे कि:
1) इंजन का फेल हो जाना
2) विमान का नियंत्रण खो बैठना
3) विमान में आग लगना
4) खतरनाक मौसम में फँस जाना
5) गंभीर मेडिकल इमरजेंसी
टेकऑफ़ या लैंडिंग के दौरान बड़ा तकनीकी दोष
ऐसी स्थिति में पायलट मेडे कॉल करता है, अगर कॉल करने वाले से संपर्क टूट जाए, तो किसी नज़दीकी विमान या जहाज़ द्वारा भी यह कॉल रिले (पुनः प्रसारित) की जा सकती है।
‘मेडे’ को सभी रेडियो कम्युनिकेशन पर पूरी प्राथमिकता दी जाती है। एक बार ‘मेडे’ कॉल जारी हो जाए, तो उस फ्रीक्वेंसी पर बाकी सभी कम्युनिकेशन रोक दिए जाते हैं ताकि राहत और बचाव कार्य तत्काल शुरू हो सके।
मेडे कॉल केवल वही व्यक्ति देता है जो स्थिति को प्रत्यक्ष अनुभव कर रहा हो, यानी कि विमान में मुख्य पायलट या सह-पायलट, जहाज़ में कप्तान या सीनियर अधिकारी मेडे कॉल देने के लिए उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि संकट वास्तविक है या जान पर खतरा मंडरा रहा है
यदि पायलट खुद कॉल न दे पाए तो फ्लाइट में मौजूद अन्य अधिकारी या ATC भी पास के किसी विमान के ज़रिए यह कॉल रिले करवा सकते हैं।
मौजूदा जानकारी के अनुसार, एयर इंडिया की फ्लाइट ने टेकऑफ़ के ठीक बाद 'मेडे' कॉल दी थी। इसका अर्थ है कि विमान में कुछ गंभीर तकनीकी गड़बड़ी या संकट उत्पन्न हो चुका था, जिसके चलते यात्रियों की जान को खतरा हो गया था। हालांकि, मेडे कॉल के बाद विमान ने ATC के किसी भी कॉल का जवाब नहीं दिया इससे यह संकेत मिलता है कि स्थिति तीव्र और अनियंत्रित हो चुकी थी।
यह घटना क्या सिखाती है ?
यह हादसा एक बार फिर यह याद दिलाता है कि आधुनिक तकनीक और अनुभवी पायलटों के बावजूद, हवाई यात्रा में जोखिम पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। 'मेडे' कॉल जैसे अंतरराष्ट्रीय संकेत, संकट के समय जीवन रक्षक भूमिका निभाते हैं।
जहाँ एक ओर ये संकेत तकनीकी दक्षता और मानवीय सजगता का परिचायक हैं, वहीं दूसरी ओर यह हमें यह भी सिखाते हैं कि किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए समय पर प्रतिक्रिया और समन्वय कितना ज़रूरी होता है।