सुप्रीम कोर्ट(Supreme court) ने मंगलवार को कहा कि सड़क दुर्घटना में पीड़ित के मानसिक और शारीरिक नुकसान की गणना पैसे से नहीं की जा सकती, लेकिन क्षतिपूर्ति का कोई दूसरा तरीका नहीं है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने दुर्घटना के समय 5 वर्ष के बालक को दिए गए मुआवजे को ब्याज सहित बढ़ाकर 49.93 लाख रुपये कर दिया। लड़के को गंभीर चोटें आई हैं और वह अब लकवाग्रस्त है।
खंडपीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि अपीलकर्ता अपने दोनों पैरों को हिलाने में सक्षम नहीं है और पैरों में सूजन, मूत्र असंयम और आंत्र कब्ज और बिस्तर के घाव थे। व्यक्तिगत चोट के मामलों में नुकसान का निर्धारण आसान नहीं है। मानसिक और शारीरिक नुकसान की गणना पैसे के संदर्भ में नहीं की जा सकती है, लेकिन पीड़ित को मुआवजे के भुगतान के अलावा कोई अन्य तरीका नहीं है।
शीर्ष अदालत का फैसला लड़के द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया, जिसमें मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए 18.24 लाख रुपये के मुकाबले 13.46 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था।
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पीठ ने कहा कि अदालत ने टैक्सी खर्च के दावे को इस कारण से खारिज कर दिया है कि टैक्सी चालक को पेश नहीं किया गया है। कई टैक्सी ड्राइवरों को पेश करना असंभव है।
"मुआवजा 49,93,000 रुपये आता है, साथ ही न्यायालय द्वारा पहले ही दिए गए ब्याज और उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई है, यानी दावा आवेदन दाखिल करने की तारीख से वसूली तक 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष।" आईएएनएस|(DS)