सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को फौज का नेतृत्व किया। (Wikimedia Commons)
सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को फौज का नेतृत्व किया। (Wikimedia Commons)

झारखंड के गोमो में नेताजी ने गुजारी थी आखिरी रात

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आजादी के इतिहास के पन्ने पलटते हुए जब भी हम 21 अक्टूबर 1943 यानी आजाद हिंद फौज के गठन की तारीख से गुजरेंगे तो उससे पहले झारखंड के धनबाद जिले में गोमो नाम की जगह का जिक्र जरूर आएगा। जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष छेड़ने और आजाद हिंद फौज की स्थापना के अपने इरादे को अंजाम देने के लिए देश छोड़ दिया, तो उन्होंने इस जगह पर आखिरी रात बिताई। इसे अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश शासन द्वारा नजरबंद किए गए सुभाष चंद्र बोस के देश छोड़ने की इस घटना को इतिहास के पन्नों में द ग्रेट एस्केप के नाम से जाना जाता है।

तारीख 18 जनवरी 1941 थी, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आखिरी बार यहां देखा गया था। इस स्टेशन से कालका मेल पकड़कर नेताजी पेशावर के लिए रवाना हुए, जिसके बाद जर्मनी से जापान और सिंगापुर पहुंचने और 21 अक्टूबर को आजाद हिंद फौज की अंतरिम सरकार बनाने की कहानी हमारे इतिहास का एक अमिट पन्ना है। 'द ग्रेट एस्केप' की यादों को संजोने और जीवित रखने के लिए झारखंड में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर 1-2 के बीच उनकी आदमकद कांस्य प्रतिमा स्थापित की गई है।

आजाद हिंद फौज के सदस्य के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस। (Wikimedia Commons)

इस जंक्शन पर एक पट्टिका पर 'द ग्रेट एस्केप' की कहानी भी संक्षेप में लिखी गई है। कहानी यह है कि 2 जुलाई 1940 को हॉलवेल मूवमेंट के कारण नेताजी को भारतीय रक्षा अधिनियम की धारा 129 के तहत गिरफ्तार किया गया था। तब उपायुक्त जॉन ब्रीन ने उन्हें गिरफ्तार कर प्रेसीडेंसी जेल भेज दिया। जेल जाने के बाद वह आमरण अनशन पर चले गए। उनकी तबीयत खराब हो गई। फिर 5 दिसंबर 1940 को ब्रिटिश सरकार ने उन्हें इस शर्त पर रिहा कर दिया कि ठीक होने पर उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया जाएगा। नेताजी को रिहा कर दिया गया और वे कोलकाता में एल्गिन रोड स्थित अपने आवास पर आ गए।

मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को हुई थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को 26 जनवरी को पता चला कि नेताजी कलकत्ता में नहीं हैं। दरअसल 16-17 जनवरी की रात करीब एक बजे वह अपने खास करीबी दोस्तों की मदद से सूरत बदलकर वहां से निकला था. इस मिशन की योजना बागला स्वयंसेवक सत्यरंजन बख्शी ने बनाई थी।

योजना के तहत नेताजी 18 जनवरी 1941 को अपनी बेबी ऑस्टिन कार से धनबाद के गोमो आए थे। वह एक पठान के वेश में आए थे। कहा जाता है कि भतीजे डॉ. शिशिर बोस के साथ गोमो पहुंचकर वह गोमो हटियाताड़ के जंगल में छिपा हुआ था।

जंगल में ही उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और अधिवक्ता चिरंजीव बाबू से गुप्त मुलाकात की थी। इसके बाद गोमो के लोको बाजार स्थित आदिवासियों की बस्ती में उनका तबादला मोहम्मद के पास कर दिया गया। बीती रात अब्दुल्ला के यहां गुजारी। फिर वे उन्हें पंपू तालाब के रास्ते स्टेशन ले गए।

जब वे गोमो से कालका मेल गए तो उसके बाद अंग्रेजों का कभी हाथ नहीं लगा। 2009 में, रेल मंत्रालय ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सम्मान में गोमो स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया।

Input: IANS; Edited By: Tanu Chauhan

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